वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। कोविड-19 संक्रमण के दौरान आर्थिक संकट का हवाला देकर डीपीएस बालको स्कूल में पढ़ने वाली पुत्री की ट्यूशन फीस में छूट की मांग करने वाले याचिकाकर्ता पर तथ्यों को छिपाकर याचिका दायर करने का गंभीर आरोप मानते हुए हाईकोर्ट ने 15,000 का जुर्माना लगाया है। जस्टिस संजय अग्रवाल के सिंगल बेंच ने आदेश में कहा कि, न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखना अनिवार्य है और झूठे तथ्यों के आधार पर दायर याचिकाएं न्यायालय के समय की बर्बादी है।

कोरबा के बालको निवासी ईश्वरीलाल साहू ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई, जिसमें बताया गया , कि वह कुमार कार्गो साल्यूशन में श्रमिक हैं, जो बालको को सेवाएं देती हैं और उनके परिवार में वृद्ध व दिव्यांग पिता, माता, पत्नी और बेटी हैं। कोविड काल में आय सीमित होने की बात कहते हुए उन्होंने ट्यूशन फीस में छूट की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने शिक्षा विभाग द्वारा कोविड काल में जारी निर्देशों का हवाला दिया, जिसमें आर्थिक रूप से प्रभावित अभिभावकों को राहत देने की बात कही गई थी।

डीपीएस स्कूल प्रबंधन ने याचिकाकर्ता के उस काल के वेतन पर्चे न्यायालय में प्रस्तुत किए, जिससे उनकी आय में कोई बड़ी कमी नहीं आने की बात साफ हुई। कोर्ट ने पाया कि वास्तविक आर्थिक संकट नहीं था और याचिकाकर्ता ने सच को छिपाकर कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने कहा कि, यदि ऐसे मामलों पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई तो अन्य लोग भी न्यायिक प्रणाली की उदारता का गलत फायदा उठाएंगे। साथ ही यह भी कहा कि, निराधार दावे न्यायिक व्यवस्था को बाधित करते हैं और संसाधनों को व्यर्थ करते हैं। हाईकोर्ट ने 15,000 की राशि 60 दिनों के भीतर डीपीएस स्कूल को देने का निर्देश दिया है। समय पर भुगतान नहीं करने की स्थिति में 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा।