Trump Tech Tariff Policy: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर ग्लोबल कंपनियों की नींद उड़ा दी है. पहले भारत पर 50% टैरिफ लगाने के बाद अब ट्रंप का अगला निशाना है, सेमीकंडक्टर और कंप्यूटर चिप्स. ओवल ऑफिस से आई इस धमकी में साफ संकेत दिए गए हैं कि अगर कंपनियां अमेरिका में उत्पादन नहीं करतीं, तो उन्हें 100% टैरिफ झेलने के लिए तैयार रहना होगा. यह कदम न केवल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करेगा, बल्कि स्मार्टफोन्स, कारें और घरेलू गैजेट्स जैसी चीज़ों की कीमतों को भी आसमान तक पहुंचा सकता है.

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Trump Tech Tariff Policy

Trump Tech Tariff Policy

किसे मिलेगी छूट, कौन फंसेगा टैक्स जाल में?

राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बयान के दौरान एप्पल के सीईओ टिम कुक के साथ मुलाकात की, जहां उन्होंने दो टूक कहा—“जो कंपनियां अमेरिका में निर्माण कर रही हैं या आने वाले समय में करने जा रही हैं, उन्हें यह टैरिफ नहीं देना होगा.” यानी “मेक इन USA” प्लान में जो कंपनियां शामिल होंगी, वे बच निकलेंगी. लेकिन जो कंपनियां अभी भी चीन, वियतनाम या ताइवान से माल बनाकर अमेरिका ला रही हैं, उन्हें इस टैक्स का दोगुना भुगतान करना होगा.

पहले मिली थी राहत, अब फिर से कस रहा शिकंजा (Trump Tech Tariff Policy)

गौरतलब है कि तीन महीने पहले ही अमेरिकी प्रशासन ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर टैरिफ से राहत दी थी. लेकिन अब रुख बदल चुका है. ट्रंप का कहना है कि अमेरिका को खुद के लिए चिप्स बनानी होंगी—और इसके लिए दुनिया की कंपनियों को अपने मैन्युफैक्चरिंग लोकेशन बदलने होंगे. राष्ट्रपति के मुताबिक, इससे अमेरिका की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ेगी और रोजगार के नए मौके पैदा होंगे. यानी “अमेरिका फर्स्ट” की पुरानी नीति फिर से ज़ोर पकड़ रही है.

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कुछ कंपनियों की बल्ले-बल्ले! क्यों उड़ रहे हैं इनके शेयर? (Trump Tech Tariff Policy)

जहां एक ओर कुछ कंपनियां इस फैसले से परेशान हैं, वहीं दूसरी ओर एप्पल, इंटेल और एनवीडिया जैसी कंपनियां इस पॉलिसी का फायदा उठाती दिख रही हैं. इन कंपनियों ने पहले ही अमेरिका में निवेश की घोषणाएं कर रखी हैं और अपने उत्पादन यूनिट्स को विस्तार देने में लगी हैं. शेयर बाजार में भी इसका असर दिखा. एप्पल और एनवीडिया के शेयरों में बढ़त दर्ज की गई, क्योंकि निवेशकों को भरोसा है कि ये कंपनियां अब टैक्स के भारी बोझ से बच जाएंगी.

TSMC का बड़ा दांव और ग्लोबल रेस की शुरुआत (Trump Tech Tariff Policy)

ताइवान की दिग्गज चिप निर्माता कंपनी TSMC ने पहले ही अमेरिका में सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई हुई है. कंपनी का कहना है कि वह आने वाले चार वर्षों में अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स बढ़ाएगी, ताकि अमेरिकी ग्राहकों—जैसे एनवीडिया, को लोकल चिप्स मिल सकें. इससे अमेरिका को न सिर्फ इनोवेशन का हब बनाया जा सकेगा, बल्कि चीन जैसी सप्लाई डिपेंडेंसी से भी छुटकारा मिलेगा.

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आखिर क्यों जरूरी है सेमीकंडक्टर पर कंट्रोल?

अमेरिकी सरकार के आंकड़े साफ दिखाते हैं कि 1990 में जहां दुनिया के 40% सेमीकंडक्टर अमेरिका में बनते थे, अब यह आंकड़ा घटकर सिर्फ 12% रह गया है. ट्रंप प्रशासन इस गिरावट को रणनीतिक खतरे के तौर पर देख रहा है. इसी वजह से जापान, साउथ कोरिया और यूरोपीय यूनियन जैसे देश पहले ही अमेरिका के साथ ट्रेड डील्स कर चुके हैं, जिससे उन पर इस टैरिफ पॉलिसी का असर नहीं पड़ेगा.

क्या यह धमकी सिर्फ दबाव की रणनीति है या असली एक्शन प्लान? (Trump Tech Tariff Policy)

फिलहाल यह योजना कोई आधिकारिक घोषणा नहीं है, बल्कि व्हाइट हाउस के रणनीतिक रोडमैप का हिस्सा है. लेकिन टेक इंडस्ट्री में इसका शोर तेज़ हो चुका है. अगर ये टैरिफ लागू होते हैं, तो यह सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट की दिशा बदल सकते हैं.

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