कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच का एक गफलत भरा आदेश चर्चाओं में है। टाइपिंग मिस्टेक के चलते यह सब गफलत हुई, ऐसे में जिसे जमानत मिलना थी उसे खारिज कर दी गई,जबकि जिसकी खारिज होना थी उसे जमानत का आदेश दे दिया। हालांकि हाईकोर्ट का आदेश अपलोड होने के बाद गलती को सुधार गया।

टाइपिंग मिस्टेक से जुड़ा मामला

दरअसल यह पूरा मामला आदेश की अदला बदली यानी टाइपिंग मिस्टेक से जुड़ा है। यही वजह है कि यह मप्र हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच का पहला और अनूठा मामला बन गया है।मामले पर गौर किया जाए तो विदिशा के त्योंदा थाना क्षेत्र में 5 जुलाई 2024 की शाम प्रकाश पाल दुकान पर बैठा हुआ था। तभी हलके आदिवासी और धर्मेंद्र आदिवासी ने उसकी डंडे और पत्थर से हत्या कर दी। इस मामले में हलके को त्योंदा पुलिस ने 8 जुलाई 2024 को और अशोक को 10 जुलाई 2024 को गिरफ्तार किया।

हलके को जमानत मिली और अशोक की याचिका खारिज

दोनों ने हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की। 07 अगस्त को दोनों याचिकाओं पर सुनवाई हुई। 08 अगस्त को सुबह पौने 11 बजे के लगभग आदेश अपलोड हुआ। इसमें हलके को जमानत मिली और अशोक की याचिका खारिज कर दी गई। दोपहर तीन बजे के करीब हलके के एडवोकेट अमीन खान को फोन पर सूचना दी गई कि उनके क्लाइंट के आदेश में टाइपिंग त्रुटि हुई है, उसकी जमानत न भरवाएं।ऐसे में शाम साढ़े 6 बजे के करीब उसी मामले में एक अन्य आदेश जारी किया गया। इसमें बताया गया कि टाइपिंग की गलती के चलते जिस आरोपी की जमानत याचिका खारिज करनी थी, उसे जमानत दे दी गई।

आनन-फानन में दोनों आदेश वापस लिए

जबकि जिस आरोपी को जमानत देनी थी, उसकी जमानत याचिका खारिज हो गई। जब यह गलती सामने आई, तो आनन-फानन में दोनों आदेश वापस ले लिए गए।ऐसे में आज सोमवार को फिर से सुनवाई होगी। गौर करने वाली बात यह रही कि हाई कोर्ट की वेबसाइट पर आदेश अपलोड होते ही आरोपी के वकील ने जमानत भरवा ली और रिहाई का आदेश जेल भी पहुंच गया था।लेकिन हाई कोर्ट की समय रहते दिखाई गई तत्परता के चलते आरोपी की रिहाई रुक गई। (जैसा – एडवोकेट अमीन खान ने बताया)

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