सत्या राजपूत, रायपुर. छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिले के ग्राम रिसेवाड़ा में बसे पारधी जनजाति के परिवार वर्षों से समाज की मुख्यधारा से कटे हुए थे। न वोटर आईडी, न आधार कार्ड, न राशन कार्ड, इनके पास कोई वैधानिक पहचान नहीं थी. जंगल के बीच कांकेर जिला मुख्यालय से मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले ये परिवार सरकारी योजनाओं और बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा की संवेदनशीलता और त्वरित कार्रवाई ने इन परिवारों की जिंदगी में नई रोशनी ला दी.
एक आवेदन से शुरू हुआ बदलाव
बात तब शुरू हुई जब आयोग के सदस्य मनीष जैन, भूपेंद्र नाग, ईश्वर कावड़े, उत्तम जैन और गिरधर यादव के माध्यम से रिसेवाड़ा के पारधी परिवारों की दयनीय स्थिति की जानकारी आयोग तक पहुंची. ये परिवार, जो मूल रूप से कोण्डागांव से आरक्षित वन क्षेत्र में आकर बसे थे, न केवल सरकारी सुविधाओं से वंचित थे, बल्कि उनकी मौजूदगी तक प्रशासन के रडार पर नहीं थी. डॉ. वर्णिका शर्मा ने बताया, मामले को गंभीरता से लिया और तत्काल प्रकरण (कमांक 1307/2025) दर्ज कर जिला कलेक्टर को निर्देश दिए. उन्होंने राजस्व, वन, पुलिस, आदिम जाति कल्याण और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों का एक पांच सदस्यीय दल गठित करने का आदेश दिया, ताकि इन परिवारों तक पहुंचकर उनकी स्थिति का जायजा लिया जाए और उन्हें उनके वैधानिक अधिकार दिलाया जाए.


सर्वेक्षण और त्वरित कार्रवाई
जिला प्रशासन ने आयोग के निर्देश पर तुरंत कार्रवाई शुरू की. सर्वेक्षण में पता चला कि रिसेवाड़ा में पारधी जनजाति के 6 परिवारों के 34 सदस्य रह रहे हैं. इनमें से अधिकांश परिवारों के पास कोई भी सरकारी दस्तावेज नहीं था. प्रशासन ने तेजी से काम करते हुए 5 परिवारों के लिए वोटर आईडी, आयुष्मान कार्ड और राशन कार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज तैयार करवाए. एक परिवार के दस्तावेजों की प्रक्रिया अभी चल रही है, जो जल्द ही पूरी हो जाएगी.
आयोग की सख्ती और निरंतर निगरानी
डॉ. वर्णिका शर्मा ने इस मामले में केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित नहीं रहीं. उन्होंने सुनिश्चित किया कि इन परिवारों को सभी सुविधाएं मिले और उनकी स्थिति में सुधार हो. आयोग ने प्रकरण की अगली सुनवाई 11 सितंबर 2025 को निर्धारित की है, जिसमें सभी परिवारों को मिली सुविधाओं की लिखित पुष्टि मांगी गई है. साथ ही वन विभाग के अधिकारियों को भी तलब किया गया है, ताकि यह स्पष्ट हो कि आरक्षित वन क्षेत्र में रहने वाले इन परिवारों को अब तक उनके अधिकार दिलाने के लिए विभाग ने क्या कदम उठाया.
विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की पहल
डॉ. वर्णिका शर्मा की यह पहल केवल रिसेवाड़ा तक सीमित नहीं है. उन्होंने पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसे वंचित परिवारों की पहचान करने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए वन विभाग को पत्र लिखने का निर्णय लिया है. उनका मकसद है कि कोई भी परिवार, चाहे वह जंगल में हो या शहर के पास, विकास की मुख्यधारा से वंचित न रहे.
एक नई शुरुआत
रिसेवाड़ा के पारधी परिवारों के लिए यह सिर्फ दस्तावेजों का मामला नहीं है, यह उनके सम्मान और पहचान का सवाल है. डॉ. वर्णिका शर्मा की इस पहल ने न केवल इन परिवारों को उनके कानूनी हक दिलाए, बल्कि उन्हें समाज में एक नई पहचान और उम्मीद भी दी. यह कार्रवाई न केवल प्रशासनिक सक्रियता की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाती है कि संवेदनशील नेतृत्व और सही दिशा में उठाए गए कदम कितने बड़े बदलाव ला सकते हैं.
जीवन में आएगा बदलाव
रिसेवाड़ा के इन परिवारों की जिंदगी अब बदल रही है. उनके बच्चे स्कूल जा सकेंगे, परिवारों को राशन और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलेंगी और सबसे महत्वपूर्ण, उन्हें अब एक नागरिक के रूप में पहचान मिलेगी.
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