सत्या राजपूत, रायपुर. छत्तीसगढ़ के शासकीय महाविद्यालयों में अतिथि व्याख्याताओं की भर्ती को लेकर एक बार फिर विवाद गहरा गया है. छत्तीसगढ़ अतिथि व्याख्याता नीति-2024 की कंडिका 5.4 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “राज्य के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाएगी,” लेकिन इस नियम का पालन न होने से स्थानीय युवाओं में आक्रोश बढ़ रहा है. युवाओं ने विराेध करते हुए कहा, नीति के कंडिका 14.7 और 14.10 के तहत भी मूल निवासियों को प्राथमिकता देने का प्रावधान है, फिर भी गैर-राज्यीय अभ्यर्थियों को प्राथमिकता देकर स्थानीय नेट/सेट, एमफिल और पीएचडी धारक बेरोजगार युवाओं के हक पर डाका डाला जा रहा है.
युवाओं का कहना है कि छत्तीसगढ़ के महाविद्यालयों में बड़ी संख्या में अतिथि व्याख्याता पदों पर गैर-राज्यीय पीएचडी धारकों का कब्जा है. दूसरी ओर राज्य के हजारों शिक्षित युवा, जो नेट/सेट, एम.फिल. जैसी योग्यताएं रखते हैं, बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. स्थानीय युवा सवाल उठा रहे हैं कि “जब दूसरे राज्यों में मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाती है तो छत्तीसगढ़ में ऐसा क्यों नहीं हो रहा?” इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री, राज्यपाल, और उच्च शिक्षा विभाग में कई शिकायतें की गई है, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा.

शिक्षित बेरोजगारी का बढ़ता संकट
छत्तीसगढ़ के युवा न केवल रोजगार के अवसरों से वंचित हो रहे हैं, बल्कि गैर-राज्यीय अभ्यर्थियों को प्राथमिकता देने से उनके मन में निराशा और हताशा बढ़ रही है. एक स्थानीय नेट धारक युवा, रमेश साहू (बदला हुआ नाम) ने कहा, हमने रात-दिन मेहनत करके नेट और एमफिल की डिग्री हासिल की, लेकिन हमारे अपने राज्य में हमें मौका नहीं मिल रहा. बाहरी लोग हमारे हक पर कब्जा कर रहे हैं. यह कहां का न्याय है? यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्तर पर युवाओं को प्रभावित कर रही है, बल्कि समाज में शिक्षा के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा दे रही है. कई परिवार कर्ज लेकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं, लेकिन योग्यता के बावजूद रोजगार न मिलने से उनकी उम्मीदें टूट रही हैं.
स्थानीय बोली और संस्कृति पर प्रभाव
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रिभाषा कार्यक्रम में स्थानीय बोली को प्राथमिकता देने की बात कही गई है. छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा जैसे सुदूर क्षेत्रों में, जहां छात्र-छात्राएं आंचलिक बोलियों में सहज होते हैं, गैर-राज्यीय व्याख्याताओं के कारण शिक्षण प्रभावित हो रहा है. स्थानीय भाषा और संस्कृति से अपरिचित बाहरी व्याख्याता छात्रों की जरूरतों को पूरी तरह समझ नहीं पाते, जिससे शैक्षिक गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है
युवाओं की मांग: मूल निवासियों को मिले प्राथमिकता
स्थानीय युवाओं और संगठनों ने मांग की है कि अतिथि व्याख्याता, शिक्षण सहायक, क्रीडा अधिकारी, और ग्रंथपाल जैसे अस्थायी पदों पर केवल छत्तीसगढ़ के मूल निवासी पीएचडी, नेट/सेट, एम.फिल., और स्नातकोत्तर धारकों को ही अवसर दिया जाए. उनका कहना है कि यदि स्थानीय अभ्यर्थी उपलब्ध नहीं हैं, तभी गैर-राज्यीय उम्मीदवारों को मौका मिलना चाहिए. यह व्यवस्था न केवल युवाओं में शासन के प्रति विश्वास बढ़ाएगी, बल्कि बेरोजगारी के अंतर को भी कम करेगी.
शिकायतों का दौर, लेकिन समाधान नहीं
लव कुमार अध्यक्ष अतिथि व्याख्याता संघ ने कहा मूल निवासियों के पक्ष में कई शिकायतें मुख्यमंत्री और राज्यपाल के समक्ष रखी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने भी अतिथि व्याख्याताओं की याचिका पर नोटिस जारी कर उच्च शिक्षा विभाग से जवाब मांगा है. नीति के कंडिका 5.4 और 13.2 के बावजूद, विभाग द्वारा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा. स्थानीय युवाओं का आरोप है कि आउटसोर्सिंग को बढ़ावा देकर नीति की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.
छत्तीसगढ़ के युवा अब खुलकर अपनी आवाज उठा रहे हैं. वे कहते हैं, हम अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन अपने घर में पहले हमें मौका मिलना चाहिए. उनका मानना है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार देने से न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी, बल्कि वे अपनी संस्कृति, बोली, और समाज के प्रति जिम्मेदारियों को भी बेहतर ढंग से निभा सकेंगे. छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों के हक की यह लड़ाई केवल रोजगार की नहीं, बल्कि उनकी पहचान, संस्कृति, और भविष्य की है.
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