दिल्ली में बच्चा तस्करी(child trafficking) की घटनाओं में तेजी से वृद्धि के कारण सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) को हस्तक्षेप करना पड़ा है. सोमवार को, कोर्ट ने केंद्र सरकार(Central Government) को एक सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसमें इस अपराध को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण हो. जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने इस गंभीर समस्या पर चिंता व्यक्त की और बताया कि अंतरराज्यीय गिरोह दिल्ली से बाहर तक अपने नेटवर्क फैला रहे हैं. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि उसने इस अपराध को नियंत्रित करने के लिए क्या उपाय किए हैं.
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कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और सीनियर एडवोकेट अपर्णा भट की सहायता से सुनवाई की. उन्होंने दिल्ली में बच्चा तस्करी के दो आरोपियों को दी गई जमानत के आदेशों की प्रतियां मांगी. बेंच ने स्पष्ट किया कि उन्हें जांच की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी चाहिए. उन्हें बताया गया है कि दोनों आरोपी जमानत पर रिहा हो चुके हैं, और वे इन आदेशों की समीक्षा करेंगे.
‘पूजा’ गैंग का पीछा और गुमशुदा बच्चे
यह सुनवाई 21 अप्रैल के उस आदेश का अनुसरण करती है, जिसमें पुलिस को ‘पूजा’ नामक गैंग लीडर की खोज तेज करने और तीन बेचे गए शिशुओं को बरामद करने का निर्देश दिया गया था. उस समय, द्वारका स्पेशल स्टाफ के इंस्पेक्टर विश्वेंद्र चौधरी ने अदालत को सूचित किया था कि लापता बच्चों के माता-पिता भी संभवतः इस बिक्री में शामिल हो सकते हैं. अदालत ने इसे जांच टीम के लिए एक ‘बड़ी चुनौती’ मानते हुए कहा कि बच्चों की तस्करी की स्थिति ‘बद से बदतर’ होती जा रही है. हिंदुस्तान टाइम्स की 30 जुलाई की रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया कि कैसे गरीब परिवारों के बच्चे गांवों और आदिवासी क्षेत्रों से दिल्ली के अमीरों तक पहुंचाए जा रहे हैं, जो एक गहरे और गुप्त नेक्सस का संकेत है.
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अस्पतालों की जिम्मेदारी और सख्त गाइडलाइंस
यह मामला 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय से संबंधित है, जिसमें अदालत ने अस्पतालों में नवजातों की तस्करी के प्रति अपनी गहरी चिंता व्यक्त की. कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे मामलों की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी की जाए, 13 आरोपियों की जमानत रद्द की जाए और तस्करी में शामिल अस्पतालों के लाइसेंस को निलंबित किया जाए. अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब कोई महिला अस्पताल में बच्चे को जन्म देती है, तो प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह नवजात की सुरक्षा सुनिश्चित करे.
कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘लापरवाह’ रवैये की निंदा की, जहां गंभीर अपराधों के बावजूद आरोपियों को जमानत दी गई. बेंच ने स्पष्ट किया कि ऐसे अपराधियों की स्वतंत्रता ‘पूर्ण नहीं’ हो सकती, क्योंकि समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है. इसके साथ ही, सभी हाईकोर्ट को निर्देश दिया गया कि वे बच्चा तस्करी से संबंधित लंबित मामलों का डेटा एकत्रित करें और ट्रायल कोर्ट्स को छह महीने के भीतर निपटाने का कार्य करें. राज्यों को 2023 की नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, हर गुमशुदा बच्चे के मामले को तस्करी का संदिग्ध मानने की सलाह पर अमल करने के लिए कहा गया, जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो.
माता-पिता के लिए चेतावनी
कोर्ट ने माता-पिता को एक गंभीर चेतावनी दी है कि वे अपने बच्चों के प्रति अत्यंत सतर्क रहें. थोड़ी सी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है. बच्चे की मृत्यु का दुख तो अलग होता है, लेकिन तस्करी के शिकार होने का दर्द असहनीय होता है. ऐसे मामलों में परिवारों का टूटना आम है, जब वे गैंग के जाल में फंस जाते हैं.
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