रायपुर. छत्तीसगढ़ में नासूर नक्सलवाद के खिलाफ पुरजोर तरीके से खात्मे का अभियान जारी है. बीते डेढ़ वर्षों में अभियान से मिली गति ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि टारगेट जो सेट, वो सेट है, जो हो रहा है, जिस गति से हो रहा है सब समय अनुकूल है. अर्थात केन्द्र से लेकर राज्य तक सरकार नक्सल मोर्चें पर पूरी तरह से केंद्रित है और सारा सिस्टम इसी हिसाब से काम कर रहा है.
अब ऐसे में यही सच है तो यहाँ यह सवाल भी उठ रहा है कि मैदान में सिस्टम किस हिसाब से काम कर रहा है ? क्या मैदान में सिस्टम कमजोर है ? सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि मैदानी क्षेत्रों में नशे का कारोबार फूल-फल रहा है. अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. चाकूबाजी की घटनाएं नशेड़ियों के लिए आम बात होती जा रही है. कानून के खिलाफ जाना, निडर होकर अपराध कर जाना, रील बनाना, तस्वीरें खिंचवाना, वीडियो वायरल कराना भी आम हो चला है. भीड़तंत्र का अपराध समाज की भयावह सच को दिखा रहा है. ये बता रहा है कि लचर सिस्टम के बीच समाज में एक भीड़ भी है, जिसे कानून का डर नहीं.

क्या इन सबके पीछे की पृष्ठभूमि में सबसे बड़ा कारक नशा है ? नशे का कारोबार है ? नशायुक्त समाज है ? शराब है… गांजा है…ड्रग्स है…हिरोइन-कोकिन-चरस है…टेबलेट है या अन्य कोई सूखा नशा ? है तो, है क्या है ? क्या कई कारणों में एक कारण बेरोजगारी और अय्याशी भी है ? सोचिए और समझिए ! इन्हें बढ़ावा कैसे ? कहाँ से मिल रहा होगा ? आखिर जवान छत्तीसगढ़ में नौजवानों के आगे नशे का फूल कैसे खिल रहा होगा ?
यह बहुत ही विचारणीय प्रश्न है कि युवाओं का एक बड़ा वर्ग आज नशे की लत में है. राजधानी रायपुर से लेकर कई शहरों में ड्रग्स की पार्टियाँ हो रही हैं. सूखा मादक पदर्थों का सेवन कैफे में, क्लबों में, होटलों में समूहों में चल रहा है. देर रात शराब की पार्टियों का चलन तो जैसे प्रचलन में ही है. बेहिसाब शराब की वैध और अवैध विक्रय से समाज का हर वर्ग प्रभावित है और पीड़ित है.

सूपर बाजार की तरह खुलते विदेशी प्रीमियम शॉप हो या शहर से लेकर गाँवों तक देशी भट्टियों की अनगिनत छाप हो. शराब का हिसाब छत्तीसगढ़ में बेहिसाब ही होते जा रहा है. शहर की हर छोटी-बड़ी नालियाँ हो या फिर गाँवों में सड़क का कोई सुनसान किनारा, नदी, तालाब या नाले का पार हर कहीं पानी पाउच और डिस्पोजल गिलास का कुड़ा-करकट भरा-पड़ा मिल जाएगा.
छत्तीसगढ़ में नशे का नेटवर्क इतना विस्तारित होते रहा है कि कनेक्शन सीमाओं को पार कर अंतर्राज्यीय से अंतर्राष्ट्रीय हो गया है. और राज्य में अवैध रूप से नशे का कारोबार करोड़ों का हो गया है. नशे की इन सामग्रियों को मंगाने अब कहीं लाइन में भी जाने की जरूरत नहीं, क्योंकि तकनीकी युग ने सेवाओं का विस्तार ऑनलाइन जो कर दिया है.
वैसे लाइन और ऑनलाइन के इस नेटवर्क को सिस्टम ने जब-जब तोड़ा है, नशे का नेटवर्क उसी मजबूती के साथ सिस्टम के हिस्से फूला और फला है. खैर बात फूलने और फलने की नहीं इसके साथ घटित होने वाली घटनाओं और दुर्घटनाओं से है. इन घटनाओं में मारपीट, हत्या और सड़क दुर्घटना तो जैसे आम है ही. अन्य घटनाओं में बलात्कार और लूट भी हैं. नशे की लत ने ऐसी घटनाओं को बढ़ाने में उतना ही योगदान दिया है, जितना नशे को बढ़ाने में व्यापारिक सिस्टम ने.
ऐसे में अब जरूरत है कि व्यापारिक सिस्टम पर वास्तविक सिस्टम का कड़ा प्रहार हो. नशे के खिलाफ सिर्फ मुहिम नहीं लड़ाई आर-पार हो. ताकि यह सवाल न हो कि बीहड़ में, जंगल में नक्सलवाद पर ही सारा जोर है और बाकी मैदान में सिस्टम कमजोर है ! खैर जब बात कहने की हो तो कहनी चाहिए. बेहतर बदलाव की उम्मीद रहनी चाहिए.
इसी उम्मीद के साथ…
लेख : डॉ. वैभव बेमेतरिहा, राजनीतिक संपादक lalluram.com
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