CG News : अमित पांडेय, डोंगरगढ़. डोंगरगढ़ के दिल में बसा एक ऐसा शैक्षणिक धरोहर, जिसने सौ वर्षों तक अनगिनत पीढ़ियों को शिक्षा की रोशनी दी, आज स्वतंत्रता दिवस के दिन बंद होने की कगार पर है. रेलवे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी, रेलवे प्रशासन ने अचानक चलते सत्र में इस स्कूल को बंद करने का फरमान सुना दिया. वजह बताई गई भवन जर्जर है और बच्चों की सुरक्षा खतरे में है. लेकिन पालक सवाल उठा रहे हैं कि अगर यही वजह है तो उसी भवन में रेलवे मंडल स्तर का प्रशिक्षण संस्थान खोलने की तैयारी कैसे हो रही है?


यह स्कूल केवल ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि यहां पढ़े बच्चों के सपनों और संघर्षों की गवाही देने वाला एक इतिहास है. यहां से निकले न जाने कितने बच्चे आज देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं. मौजूदा सत्र में सीबीएसई पैटर्न पर पढ़ाई कर रहे छात्र अब प्रशासनिक आदेश के तहत सीजी बोर्ड पैटर्न के स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में भेजे जाने वाले हैं. सत्र शुरू हुए दो महीने हो चुके हैं—फीस, किताबें, यूनिफॉर्म सब पर खर्च हो चुका है—अब अचानक पैटर्न बदलने का मतलब है बच्चों के भविष्य को झटका देना.

रेलवे अधिकारियों ने स्कूल के प्राचार्य को सख्त निर्देश दिए कि तुरंत पालकों की बैठक बुलाकर उन्हें स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) लेने के लिए तैयार किया जाए. इसके लिए जिला कलेक्टर से भी अनुमति ले ली गई है. लेकिन बैठक में मौजूद पालकों ने साफ इंकार कर दिया. सांसद प्रतिनिधि तरुण हथेल की मौजूदगी में सभी पालकों ने सामूहिक निर्णय लिया कि वे किसी भी हालत में अपने बच्चों का ट्रांसफर मंज़ूर नहीं करेंगे और इस आदेश का विरोध उच्च अधिकारियों तक पहुंचाएंगे.
पालकों का गुस्सा साफ है—अगर भवन सच में खतरनाक है तो सत्र शुरू होने से पहले यह फैसला क्यों नहीं लिया गया? अगर बच्चों के लिए असुरक्षित है तो अफसरों के प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित कैसे हो गया? यह सवाल रेलवे प्रशासन के दावों की नींव हिला रहे हैं. कुछ लोग इसे केवल भवन बदलने का मामला नहीं, बल्कि रेलवे की जमीन के उपयोग को बदलने और कर्मचारियों की सुविधा बढ़ाने के नाम पर बच्चों को बेघर करने की कवायद मान रहे हैं.
आज जब पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, बच्चों और उनके पालकों को अपने ही शहर में शिक्षा की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. यह विडंबना है कि जिस दिन हम स्वतंत्रता, अधिकार और अवसर की बातें करते हैं, उसी दिन एक सदी पुराना स्कूल बंद कर बच्चों के सपनों के दरवाज़े पर ताला लगाया जा रहा है. पालकों का कहना है कि अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया तो वे जन आंदोलन से लेकर कानूनी लड़ाई तक का रास्ता अपनाएंगे.
रेलवे प्रशासन अपनी रिपोर्ट में दावा कर रहा है कि भवन की हालत खराब है और बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है. लेकिन जब उसी जगह नया प्रशिक्षण संस्थान चलाने की योजना है, तो यह दलील खुद अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो रही. सवाल साफ है—क्या बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई, अफसरों की सुविधा और योजनाओं से छोटी हो गई है?
डोंगरगढ़ का यह विवाद अब सिर्फ एक स्कूल का मामला नहीं, बल्कि यह शिक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और नागरिक अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है. और शायद यही इस शहर के लिए आज़ादी के 79वें साल का सबसे बड़ा सबक होगा—आज़ादी केवल झंडा फहराने से पूरी नहीं होती, जब तक हर बच्चे को पढ़ने का हक और समान अवसर नहीं मिलता, तब तक संघर्ष जारी है.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें