मुजफ्फरपुर। जिले में खादी ग्रामोद्योग केंद्र से जुड़े कारीगर पीढ़ियों से पारंपरिक तकनीक से तिरंगा बना रहे हैं। तिरंगा सिर्फ राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक नहीं, बल्कि मुजफ्फरपुर की शान भी है। देश की सरहद पर लहराने वाला यहां के बुनकरों द्वारा तैयार किया गया खादी तिरंगा पाकिस्तान बॉर्डर सहित स्थानों पर लहराता है.

मन प्रफुल्लित हो उठता है.

तिरंगा तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि जब बात देश की हो और जिले का नाम मीडिया में आता है कि सीमा पर फहराता हुआ यह तिरंगा हमारा द्वारा ही बनाया गया है. देशभक्ति और गर्व की भावना की अनुभूति होती है. मन पूरी तरह से प्रफुल्लित हो उठता है.

मुजफ्फरपुर में तैयार इन झंडों में पूरी तरह से हाथ से बुनी खादी का उपयोग होता है, जो न केवल मजबूती में बेहतरीन है, बल्कि लंबे समय तक मौसम की मार भी झेल सकता है. केंद्र के प्रबंधक के अनुसार, हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस से पहले सीमा सुरक्षा बल (BSF) और भारतीय सेना की ओर से बड़ी मात्रा में ऑर्डर मिलते हैं। विशेष रूप से पाकिस्तान बॉर्डर पर तैनात चौकियों और कैंपों के लिए यहां से तिरंगे भेजे जाते हैं।

कीमत 10 लाख रुपये

मुजफ्फरपुर का खादी तिरंगा, इस बार सुर्खियों में है। पूरी तरह हाथ से बुनी खादी से तैयार इस विशाल तिरंगे की कीमत 10 लाख रुपये है। इसे स्थानीय खादी ग्रामोद्योग केंद्र के कारीगरों ने महीनों की मेहनत से तैयार किया है। जानकारी के अनुसार, यह तिरंगा विशेष अवसरों और राष्ट्रीय पर्वों पर महत्वपूर्ण सरकारी और सैन्य आयोजनों में उपयोग के लिए बनाया गया है। इसका आकार इतना बड़ा है कि इसे फहराने के लिए खास मचान और मजबूत रस्सियों की जरूरत होती है।

तिरंगा बनाने में उच्च गुणवत्ता वाली खादी का इस्तेमाल हुआ है, जो पूरी तरह से मौसम प्रतिरोधी और टिकाऊ है। रंगाई से लेकर सिलाई तक का हर काम हाथ से किया गया है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता और बढ़ जाती है।

महिलाओं की भी अहम भूमिका

तिरंगा बनाने में स्थानीय महिलाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं। इन महिलाओं का काम भी बंटा है, जिसमें से कोई धागा कातती है, तो कोई रंगाई और सिलाई का काम करती है। इससे न केवल इन कारीगर परिवारों की आजीविका चलती है, बल्कि उन्हें इस बात का गर्व भी रहता है कि उनके हाथों से बना तिरंगा देश की सीमाओं पर लहराता है।

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