वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2010 में हुई हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए तीनों आरोपियों—को बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति रमेेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभू दत्त गुरु की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा और आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया।

मामला 18 मई 2010 का है, जब मृतक का शव उनके ईंट भट्ठे के पास ट्रैक्टर और ट्रॉली के बीच मिला था। ट्रायल कोर्ट ने 2015 में तीनों को हत्या (धारा 302) और संपत्ति के अवैध कब्जे (धारा 404) का दोषी ठहराकर सजा सुनाई थी।

अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने पैरवी की और उन्होंने दलील दी कि इस मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, अभियोजन का पूरा केस सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है, जब्त सामान पर कोई एफएसएल रिपोर्ट नहीं है, और कथित बरामदगी भी संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई है। उन्होंने कहा कि इस तरह साक्ष्यों की श्रृंखला अधूरी है और हत्या से जोड़ने वाला कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है, इसलिए अभियुक्तों को संदेह का लाभ देकर बरी किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने पाया कि घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था और पूरा मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था। जब्त किए गए मोबाइल, नकदी और कपड़ों पर एफएसएल रिपोर्ट नहीं थी, और बरामदगी भी संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। मृतक की मां समेत कई गवाहों ने स्पष्ट कहा कि उनका आरोपियों से कोई बैर नहीं था और उन्होंने केवल संदेह के आधार पर नाम लिया था।

अदालत ने कहा कि इस मामले में सबूतों की श्रृंखला अधूरी है और हत्या से जुड़ा कोई ठोस व प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि आदेश रद्द करते हुए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया गया।