Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor Contact no : 9425525128

जेम से जीम रहे अफसर

जेम(GEM) ने भ्रष्टाचार की सभी मान्य परंपराओं को ध्वस्त करने में बड़ी भूमिका निभाई है. पिछले दिनों एक विभाग ने कंप्यूटर प्रिंटर के लिए लगने वाले कार्ट्रेज की खरीदी के लिए एक टेंडर जारी किया था. टेंडर स्पेसिफिकेशन ने इसे देखने वालों की आंखों की पुतली की चौड़ाई बढ़ा दी. कार्ट्रेज के स्पेसिफिकेशन में 55 इंच लंबाई, 95 इंच चौड़ाई, 60 इंच ऊंचाई, रंग काला और कापर मटेरियल के साथ कंटेम्पपरी, माडर्न और ट्रेडिनशनल होने जैसी शर्त डाली गई. अफीम चाटकर टेंडर शर्त बनाने वाले अफसरों ने कार्ट्रेज की जगह टू सीटर सोफा का स्पेसिफिकेशन दे दिया था. मजे की बात यह है कि इस स्पेसिफिकेशन के बावजूद कार्ट्रेज की खरीदी हो गई और सप्लायर को भुगतान कर दिया गया. एक और किस्सा सुनिए, एक विभाग में फर्नीचर का टेंडर निकला, लेकिन शर्त रखी गई कि बोलीदाता के पास फार्मास्यूटिकल कंपनी का लाइसेंस होना चाहिए. शायद विभाग को लगा हो कि अगर कुर्सी पर बैठने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाए, तो कंपनी की दवा से प्रेशर कंट्रोल किया जा सकेगा, इसलिए पहले ही लाइसेंस मांग लेना मुनासिब होगा. खैर, टेंडर-वेंडर चलता रहेगा, मगर इस तरह की हरकतों पर सरकार के नजर फेर लेने से विभागों की स्वेच्छाचारिता बढ़ गई है. किसी भी विभाग के टेंडरों पर झांकने भर से पता चल जाएगा कि कहां कितनी गफ़लत है? यह देखकर लगता है कि सरकारी खरीदी का कोई माई-बाप नहीं है. अफसरों की मनमानी बेधड़क जारी है. न कोई रोकने वाला है, न कोई टोकने वाला. हाल ही में 32 हज़ार रुपए की जग, 10 लाख की टीवी का मामला उठा था. सरकार हरकत में आई और फिर बैठ गई. सरकार जब तक दो-चार अफसरों को मुर्गा बनाकर टांग नहीं देगी, तब तक मनमानी पर ब्रेक नहीं लग सकता. अफसर जेम पोर्टल से ठूस-ठूस कर जीमते रहेंगे. भला सरकार के सिर्फ आंखे तरेर देने भर से कुछ हुआ है? 

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माई लार्ड प्रक्रिया चल रही है..

यह एक दिलचस्प किस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को स्पेशल एजुकेटर की भर्ती का आदेश दिया है. स्पेशल एजुकेटर की भर्ती दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई के लिए की जानी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पेशल एजुकेटर की भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई है. छत्तीसगढ़ सरकार ने स्पेशल एजुकेटर के आठ सौ से ज्यादा पद स्वीकृत किए हैं, लेकिन पहले केवल सौ पदों की भर्ती को मंजूरी दी गई है. स्कूल शिक्षा विभाग ने व्यापमं से भर्ती परीक्षा आयोजित करने की अर्जी लगाई थी. व्यापमं ने यह कहते हुए भर्ती परीक्षा लेने से इंकार कर दिया कि उनका सालाना कैलेंडर जारी हो गया है. व्यापमं किसी और की देखरेख में होता तो शायद बात बन भी जाती, वहां एसीएस रेणु पिल्ले बैठी हैं. स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर उनकी ‘ना’ सुनते ही उलटे पैर लौट आए. इसके बाद विभाग ने पीएससी से भर्ती परीक्षा आयोजित करने की गुहार लगाई. पीएससी ने भी नियमों का बैरियर लगा दिया. राजपत्र के हवाले से कह दिया कि स्कूल शिक्षा विभाग के केवल तीन पदों की भर्ती का अधिकार पीएससी को है. सुप्रीम कोर्ट का डंडा था, सो स्कूल शिक्षा विभाग ने खुद ही भर्ती परीक्षा आयोजित करने का मन बना लिया. भर्ती के लिए एक संक्षिप्त विज्ञापन जारी किया गया. भर्ती की तमाम शर्ते मुख्य विज्ञापन में अलग से प्रकाशित करने की दलील दी गई. अब जब सुप्रीम कोर्ट यह पूछता है कि भर्ती की क्या स्थिति है? विभाग का वकील भर्ती के लिए निकाले गए संक्षिप्त विज्ञापन की प्रति दिखाते हुए जवाब देता है कि ‘माई लार्ड प्रक्रिया चल रही है’. जबकि हकीकत यह है कि विभाग भर्ती का कोई पैरामीटर तय ही नहीं कर पा रहा है. सब कुछ अधर में लटक गया है. बहरहाल इससे जुड़ा एक संदर्भ यह भी है कि जब यह जानकारी जुटाई गई कि स्पेशल एजुकेटर की कुल स्वीकृत भर्ती पर सरकार पर कितना व्यय भार आएगा? तब यह मालूम पड़ा कि करीब 50 करोड़ रुपए का बोझ सरकार पर पड़ेगा. फिलहाल सरकार ने केवल सौ पदों की मंजूरी दी है, इस लिहाज से महज एक करोड़ रुपए का मासिक बोझ सरकार के हिस्से होगा. सरकार के लिए एक करोड़ रुपया तो चना-मुर्रा जैसे है. सरकार को एक करोड़ रुपए के लिए सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी झेलने से बचना चाहिए. ऐसा नहीं है कि सरकार भर्ती करना नहीं चाहती. सरकार भर्ती के रास्ते बढ़ रही है, लेकिन यह रास्ता बेहद उबड़-खाबड़ है. अब भर्ती तब होगी जब रास्तों के गड्ढे पाट दिए जाएंगे. तब तक मसला सुप्रीम कोर्ट में उठता रहेगा और सरकार का वकील कहता रहेगा कि माई लार्ड हमने संक्षिप्त विज्ञापन जारी कर दिया है. भर्ती की प्रक्रिया चल रही है. स्कूल शिक्षा विभाग सूबे का सबसे बड़ा सरकारी सेटअप है. इतनी बड़ी व्यवस्था है, फिर भी विभाग एक ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा. 

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भाजपा 2.0

भाजपा को यदि एक मशीन मान ली जाए, तो यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि पार्टी ने अपने भीतर के पुराने कलपुर्जों को बदल दिया है. नए कलपुर्जों के बूते पार्टी अब अपनी राजनीतिक जमीन को धार देती दिखाई पड़ेगी. आमतौर पर किसी मशीन को किफायती तब माना जाता है, जब केवल जरूरी कलपुर्जों को बदल कर काम चला लिया जाए. इससे मजबूती भी बनी रहती है और नए कलपुर्जों को रवा होने में मदद भी मिलती है, लेकिन भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि सभी कलपुर्जे बदल देना वक्त की जरूरत है. भाजपा पूरी तरह से बदली हुई है. यह भाजपा 2.0 संस्करण है, जिसमें पुराने कलपुर्जों की दरकार नहीं रह गई है. पार्टी में प्रदेश पदाधिकारियों की सूची जारी करने के पहले तक खूब ऊहापोह के हालात रहे. दिल्ली की भागदौड़ रही. नेताओं की लामबंदी रही, कभी नाम घटते, तो कभी बढ़ते रहे, मगर जब सूची जारी हुई, तब कई नेता-मंत्रियों की आंखें चौंधियाई हुई दिखाई पड़ी. कई प्रभावी नेताओं के सुझाए गए नाम सूची से बाहर कर दिए गए थे. कुछ ऐसे नाम भी थे, जिन्हें विपक्ष में खूब पसीना बहाते देखा गया था. ऐसे चेहरों को उम्मीद थी कि निगम, मंडल या आयोग में जगह मिलेगी, मगर जब निगम, मंडल और आयोग की पहली सूची आई, तब उनका नाम नदारद था और अब जब संगठन की सूची आई है, तब भी उन नामों को दर्ज करने के पहले ही संगठन के आला नेताओं के कलम की स्याही सूख गई. स्याही बची होती, तो शायद जगह मिल गई होती. मायूसी से भरे लोगों ने जब संगठन नेताओं से अपना दर्द बांटा, तब जवाब मिला, ”आप चिंता मत कीजिए. पार्टी को आपकी चिंता है’. सत्ता और संगठन में अपनी जगह तलाशती उम्मीद से भरी आंखें अब पथरा गई है. पथराई हुई आंखों से आंसू नहीं निकलते. एक पूर्व मंत्री कहते हैं कि ”यह भाजपा है. यह बड़ी बेरहम पार्टी है. यहां कोई इस मुगालते में रहे कि वहीं सब कुछ है, तो यह महज एक भ्रम के सिवाय कुछ भी नहीं. समय का चक्र घूमता है. यह समय भी घूमेगा.” शायद ऐसा कहकर पूर्व मंत्री मायूस चेहरों को उम्मीद का दीया दिखा रहे हैं. वैसे सूची में कई मेहनतकश लोगों के नाम भी हैं, जिन्हें देखकर एक वर्ग में खुशी का माहौल है. कुल मिलाकर भाजपा की जारी हुई सूची को लेकर मिली जुली प्रतिक्रिया आई है.  

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मंत्रिमंडल विस्तार

साय मंत्रिमंडल में अब तीन नए चेहरे शामिल हो रहे हैं. अब तक की चर्चा में यह सुना गया है कि शपथ ग्रहण के लिए 18 तारीख मुकर्रर कर दी गई है. मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से इस बाबत मुलाकात कर विस्तार को अमलीजामा पहनाने का मसौदा रख दिया है. तीन मंत्री बनाने जाने की सुगबुगाहट है. तीनों ही नए चेहरे होंगे. 5 अगस्त को लल्लूराम.काम ने भरोसेमंद सूत्रों के हवाले से तीन नाम बताए थे. इनमें गजेंद्र यादव, राजेश अग्रवाल और खुशवंत साहेब के नाम थे. अब जब मंत्रिमंडल में नए चेहरों को शामिल किए जाने का रास्ता लगभग साफ हो गया है, तब भी इन्हीं तीन चेहरों को मंत्रिमंडल में लिए जाने की सर्वाधिक चर्चा है. गजेंद्र यादव संघ बैकग्राउंड से आते हैं. उनके नाम की चर्चा तब भी थी, जब विस्तार की सुगबुगाहट शुरू-शुरू में उठी थी. खुशवंत साहेब सतनामी समाज के गुरु हैं. अगर उनके नाम पर मुहर लगी, तो यह मानना उचित होगा कि यह वोट बैंक से जुड़ा एक रणनीतिक फैसला है. खुशवंत साहेब भंडारपुरी गद्दी के उत्तराधिकारी हैं. भंडारपुरी सतनामी समाज का प्रमुख तीर्थ स्थल है. कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे गुरू रुद्र कुमार गिरौदपुरी गद्दी के उत्तराधिकारी है. इस वक्त भंडारपुरी गुरु गद्दी का प्रभाव समाज में ज्यादा है. ऐसे में भाजपा की कोशिश खुशवंत साहेब को मंत्री बनाकर अनुसूचित जाति वर्ग के वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत करने की हो सकती है और रही बात राजेश अग्रवाल की, तो उनका पलड़ा भारी होने के पीछे दो वजह है. एक वैश्य समाज से आना और दूसरा विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व उप मुख्यमंत्री को हराकर जीत दर्ज करना. वैश्य समाज से बृजमोहन अग्रवाल सरकार में मंत्री थे, लेकिन उनके सांसद बनने के बाद से इस वर्ग का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में नहीं है. हालांकि राजेश अग्रवाल के नाम को लेकर आई तेजी की वजह के पीछे एक समीकरण यह भी बताया जाता है कि एक औद्योगिक घराने की ओर से उनके पक्ष में मजबूत लाबिंग की गई है. राजेश अग्रवाल अगर मंत्री बनते हैं, तो सरगुजा संभाग से पांच मंत्री हो जाएंगे. बहरहाल यह भारतीय जनता पार्टी है. चौकानें वाले फैसलों के लिए जानी जाती है, जिन नामों पर चर्चा उठी हो और आखिर में उन्हें बदल दिया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं. दावेदारों में अमर अग्रवाल, लता उसेंडी, राजेश मूणत, संपत अग्रवाल भी खड़े हैं, जिनके नामों पर गंभीरता से विचार किया गया है. 

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विदेश दौरा

सूबे के मुखिया जापान और दक्षिण कोरिया के दौरे पर जा रहे हैं. सत्ता संभालने के बाद यह उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान है. राज्य गठन के बाद से अब तक तमाम मुख्यमंत्रियों के विदेशी दौरों में अंतरराष्ट्रीय निवेश के खूब एमओयू हुए, मगर एमओयू कागज से बाहर नहीं निकल सका. ज़मीन पर एक ढेला भी नहीं रखा जा सका. अबकी बार विष्णुदेव साय की हवाई उड़ान नए सपनों को पंख दे रही है. सपने देखने में भला किसी को क्या गुरेज़ ! इस तथ्य को भला कौन इंकार कर सकता है कि महज दो साल की साय सरकार ने बगैर किसी इनवेस्टर्स समिट के अब तक तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश जुटा लिया है. निवेश के कुछ मसौदे कागजों से बाहर ज़मीन पर उतर भी आए हैं. पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश ने इनवेस्टर्स समिट के नाम पर करोड़ों रूपए खर्च कर दिए. मगर अनुपातिक लिहाज से छत्तीसगढ़ का परफारमेंस मध्य प्रदेश की तुलना में ज्यादा बेहतर रहा है. पूर्ववर्ती सरकार में निवेश के मसौदे कभी कागजों से बाहर नहीं निकले, अलबत्ता निवेश मसौदों के नाम पर  चले खेल की चर्चा हर तरफ रही. कोई भी सरकार अपना एजेंडा बताती है. नेतृत्व देती है, ज़मीन पर उसे सार्थक नतीजों तक लाने की जिम्मेदारी अफसरों की होती है. मुख्यमंत्री साय की टीम में अब काम्पिटेंट अफ़सरों की कमी नहीं रही. फ़िलहाल चर्चा में मुख्यमंत्री का विदेशी दौरा है. इस दौरे के वापसी के बाद पिटारे से क्या-क्या निकलेगा? इस पर सबकी नजर होगी. अब इसे आप मुख्यमंत्री साय की क़िस्मत कहिए या फिर वक्त का फेर, कम से कम निवेश जुटाने की मुहिम में वह अब तक के तमाम मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ चुके हैं. दो साल का परफारमेंस तो यही तस्वीर दिखा रहा है.