नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सर कंपनी ड्रीम-11 समेत रमी और पोकर जैसे ऑनलाइन गेम्स पर जल्द ही बैन लग सकता है। केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में “प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025” पेश किया है। इस बिल का मकसद ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री को रेगुलेट करना और किसी भी तरह के रियल-मनी गेम्स यानी पैसों से खेले जाने वाले गेम्स को पूरी तरह बंद करना है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि प्रस्तावित कानून “नागरिकों की सुरक्षा” करते हुए “नवाचार को बढ़ावा” देगा। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, देश में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदय से नागरिकों को अपार लाभ हुआ है, लेकिन साथ ही नए जोखिम भी उत्पन्न हुए हैं, जिससे यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है कि समाज को प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग के संभावित नुकसान से बचाया जाए।
जानिए बिल के प्रमुख नियम
रियल-मनी गेम्स पर रोक
अब ऐसे किसी भी गेम को चलाना, ऑफर करना या उसका प्रचार करना गैरकानूनी माना जाएगा। हालांकि, खिलाड़ियों पर सजा नहीं होगी, लेकिन कंपनियों पर कार्रवाई होगी।
सजा और जुर्माना
- गेम ऑफर करने या प्रमोट करने पर 3 साल तक की जेल और 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना होगी।
- विज्ञापन चलाने वालों को 2 साल तक की सजा और 50 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा।
रेगुलेटरी अथॉरिटी: एक नई अथॉरिटी बनाई जाएगी जो गेमिंग कंपनियों को रजिस्टर करेगी और तय करेगी कि कौन सा गेम रियल-मनी फॉर्मेट में आता है।
ई-स्पोर्ट्स को बढ़ावा: PUBG और Free Fire जैसे नॉन-मनी बेस्ड गेम्स को बढ़ावा दिया जाएगा क्योंकि इनमें दांव नहीं लगता।
जानिए क्यों जरूरी है यह बैन?
सरकार का कहना है कि पैसों वाले गेम्स की वजह से देश में मानसिक और आर्थिक नुकसान बढ़ रहा है। कई लोग अपनी जमा पूंजी गंवा बैठे और आत्महत्या तक के मामले सामने आए। साथ ही मनी लॉन्ड्रिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े खतरे भी बढ़ रहे थे।
गेमिंग इंडस्ट्री पर कैसा पड़ेगा असर
भारत का ऑनलाइन गेमिंग मार्केट फिलहाल करीब 32,000 करोड़ रुपये का है। इसमें से 86% रेवेन्यू रियल-मनी गेम्स से आता है। अगर यह बैन लागू होता है तो ड्रीम-11, Games24x7, WinZO और Gameskraft जैसी बड़ी कंपनियों पर सीधा असर पड़ेगा। इंडस्ट्री का कहना है कि इससे करीब 2 लाख नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
बिल का विरोध कर रही गेमिंग कंपनियां और संगठन
ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन (AIGF), ई-गेमिंग फेडरेशन (EGF) और फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स (FIFS) जैसे संगठन इस बिल का विरोध कर रहे हैं। भारत में लगभग 50 करोड़ लोग ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े हैं। अगर बैन लागू हुआ तो ये सभी लोग रेगुलेटेड प्लेटफॉर्म्स पर खेल नहीं पाएंगे। गेमिंग कंपनियों और संगठनों का कहना है कि बैन लगाने से खिलाड़ी गैरकानूनी और विदेशी प्लेटफॉर्म्स पर चले जाएंगे, जिससे सरकार को टैक्स और खिलाड़ियों को सुरक्षा दोनों का नुकसान होगा।
किन्हें छूट मिलेगी?
- फ्री-टू-प्ले गेम्स
- सब्सक्रिप्शन बेस्ड गेम्स (जहां पैसे की बाजी नहीं होती)
- ई-स्पोर्ट्स और नॉन-मॉनेटरी स्किल बेस्ड गेम्स
- कानूनी चुनौती की तैयारी
गौरतलब है कि इस बिल के खिलाफ गेमिंग कंपनियां पहले ही कोर्ट का रुख कर चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट पहले कह चुका है कि फैंटेसी स्पोर्ट्स और रमी जैसे गेम्स को जुआ नहीं कहा जा सकता। इंडस्ट्री का तर्क है कि यह बैन संविधान के खिलाफ है क्योंकि इसमें स्किल और चांस बेस्ड गेम्स में कोई फर्क नहीं किया गया।
डगमगा सकता है विदेशी निवेशकों का भरोसा
गौरतलब है कि भारत में गेमिंग इंडस्ट्री सरकार के लिए एक बड़ा राजस्व स्रोत बन चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में लगभग 400 स्टार्टअप्स ने इस क्षेत्र में कदम रखा है, जिससे अब तक 25 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऑनलाइन गेम्स पर पाबंदी लगाई जाती है, तो न केवल लाखों नौकरियां प्रभावित होंगी बल्कि निवेशकों का भरोसा भी डगमगा सकता है।
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