कानपुर. शहर के चर्चित DM जितेंद्र प्रताप सिंह और CMO हरिदत्त नेमी मामले में नया मोड़ आ गया है. इसमें विभागीय जांच के खिलाफ सीएमओ को राहत नहीं मिली है. सीएमओ की ओर से विभागीय जांच के खिलाफ दायर की गई याचिका को हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया है. अब सीएमओ के खिलाफ विभागीय जांच चलना तय है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमि के खिलाफ शासन द्वारा विभागीय कार्रवाई के तहत प्रेषित आरोप पत्र और जांच अधिकारी नियुक्त करने संबंधी आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया है.

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि डॉ. नेमि की याचिका पर दखल देने का कोई आधार नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने डॉ. नेमि की सेवा संबंधी याचिका पर दिया. डॉ. नेमि ने 9 जुलाई को उनके खिलाफ जारी आरोप पत्र और जांच अधिकारी की नियुक्ति संबधी आदेश को चुनौती दी थी.

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कैसे शुरू हुआ था विवाद?

फरवरी में डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह ने सीएमओ कार्यालय का औचक निरीक्षण किया था. इस दौरान सीएमओ और कई अधिकारी नदारद मिले थे. इतना ही नहीं इसके बाद (सीएचसी) और (पीएचसी) का दौरा कर दस्तावेजों की जांच की. जांच में अनियमितताएं, चिकित्सा सेवाओं में कमी और कर्मचारियों की लापरवाही सामने आई थी. उसके बाद डीएम ने सीएमओ के खिलाफ कार्रवाई करने और तबादले के लिए पत्र लिखा था.

फर्जी रिपोर्ट तैयार कराने का आरोप

13 जून को डीएम से उन्नाव की फर्म मैसर्स बृजेश चंद्र के प्रोपराइटर ने शिकायत की थी. कमीशनखोरी के चलते जेएम फार्मा के खिलाफ भी साजिश रचने का आरोप लगाया था. इसके अलावा करोड़ों का भुगतान न करने का भी आरोप लगाया था. मामले की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई थी. आखिरकार शिकायतकर्ता राजेश शुक्ला ने कोर्ट की शरण ली थी. सप्लाई की गई जांच किट को बिना किसी लैब से जांच कराए घटिया बता दिया गया था, जिसके चलते भुगतान भी रोक दिया गया था. सिंडिकेट की फर्म को ठेका दिलाने के लिए जेएम फार्मा को ब्लैकलिस्टेड करने की साजिश रचने का आरोप है. एक ही जांच कमेटी की दो विरोधाभासी रिपोर्ट सामने आने के बाद सीएमओ द्वारा दबाव डालकर फर्जी रिपोर्ट तैयार कराने का आरोप लगाया था.

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सीएम योगी ने किया था हस्तक्षेप

कानपुर के पूर्व सीएमओ डॉ. हरिदत्त नेमी ने सस्पेंशन के बाद जिला अधिकारी (DM) पर गंभीर आरोप लगाए थे. डॉ. नेमी का दावा था कि डीएम ने पैसे की डिमांड की और कहा, “सिस्टम में आओ”, वरना परेशानी झेलनी पड़ेगी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि हर मीटिंग में जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर बेइज्जत किया गया. मामला इतना बढ़ा था कि मुख्यमंत्री योगी को हस्तक्षेप करना पड़ा था. जिसकी चर्चा केवल ब्यूरोक्रेसी तक ही नहीं सियासी गलियारों में भी खूब हुई थी.