रायपुर. छत्तीसगढ़ का रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) सिर्फ राज्य निर्माण की उपलब्धियों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह उन संघर्षों की भी याद दिलाता है, जिन्हें इस धरती ने कई दशकों झेला है। बस्तर, जो प्राकृतिक संसाधनों, घने वनों, झरनों और आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है, कभी नक्सली हिंसा के कारण लाल आतंक का पर्याय बन गया था। तीन से चार दशक तक यहां के लोग बंदूक की ठायें-ठायें , बारूदी सुरंगों के खौफ और मौत के साये में जीने को मजबूर रहे। नतीजा ये हुआ कि बच्चों से स्कूल छीने गए, परिवार तबाह हुए और विकास के सारे कार्य ठप पड़ गए, लेकिन अब तस्वीर बहुत बदल चुकी है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर को हिंसा से निकालकर विकास की पटरी पर लाने का बीड़ा उठाया है। नक्सलवाद की ऐसी कमर तोड़ी जा रही है कि अब इसका समूल खात्मा तय माना जा रहा है। यही वजह है कि रजत जयंती वर्ष बस्तर के लिए एक “नए जीवन” का प्रतीक बन रहा है।


छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद रहा चार दशकों का काला दौर
नक्सलियों ने अपने खोखले सिद्धांतों और झूठे वादों से भोले-भाले आदिवासी समाज को भ्रमित किया। नकसली, आदिवासीयों को समझाने में लगभग कामयाब हो गए थे कि सरकार उनकी दुश्मन है और उनका विकास उनके अधिकार छीन लेना चाहती है। दिग्भ्रमित आदिवासीयों को बंदूक थमा दी गई और बच्चों को शिक्षा से वंचित कर दिया गया इसके चलते कई परिवार उजड़ गए, ना जाने कितनी बेटियाँ अगवा हुईं और समाज का पूरा ताना-बाना बिखर गया।

प्रभावित क्षेत्रों के विकास का सबसे बड़ा अवरोध होते हैं नक्सली
नक्सली पुल-पुलियों को उड़ाते, सड़क निर्माण में लगे वाहनों को आग के हवाले करते और बारूदी सुरंगों से सुरक्षा बलों व ग्रामीणों की जान लेते। वर्ष 2003 से अब तक सिर्फ आईईडी की चपेट में 147 लोगों की मौत और 306 लोगों के घायल होने की घटनाएँ इस त्रासदी का प्रमाण हैं। कुल 4,173 लैंड माइंस रिकवर किए गए।
बस्तर के दर्द को बया करती इतिहास में दर्ज लाल तारीखें
बस्तर की स्मृति में कई खौफनाक घटनाएँ दर्ज हैं उनमे जो ख़ास है वो है 2006 में दरभागुड़ा में सलवा जुडूम से लौट रहे 28 ग्रामीणों का विस्फोट में मारा जाना।2006 में ही एर्राबोर के एक राहत शिविर पर 1500 नक्सलियों का हमला किया जाना जिसमें 220 घर जले थे और 24 से अधिक निर्दोषों की जान गई थी।2007 में रानीबोदली नक्सली हमले से 55 जवानों का शहीद होना। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में हुए देश की सबसे बड़ी नक्सली घटना में 76 सुरक्षा जवानों का शहीद होना।2017 में बुरकापाल में 25 जवानों की शहादत।ऐसे होने वाली नक्सली वारदातों ने न सिर्फ जवानों या ग्रामीणों की जान ली, बल्कि बस्तर की आत्मा को भी छलनी कर दिया है।

नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में हो रहा शिक्षा का पुनर्जागरण, खुल रहे स्कूलों के द्वार
नक्सलियों की सबसे बड़ी और गहरी साजिश बच्चों को अंधेरे में रखने की थी। नक्सलियों ने बीते दो दशकों में 200 से अधिक स्कूल भवन तोड़े। लेकिन अब राज्य की साय सरकार ने करीब 350 से अधिक बंद पड़े स्कूल दोबारा शुरू किए हैं। बस्तर के बच्चों में पढ़ाई के प्रति नई ललक दिखाई दे रही है। यह केवल अशिक्षा से शिक्ष नहीं बल्कि “अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा” है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की निर्णायक लड़ाई
विष्णुदेव साय स्पष्ट रूप से कहते हैं कि “लाल आतंक के खात्मे के लिए नक्सलवाद के खिलाफ हमारी निर्णायक लड़ाई जारी है। जब तक प्रदेश से नक्सलवाद का अंत नहीं हो जाता, हम चुप नहीं बैठेंगे।” उनके नेतृत्व में राज्य की साय सरकार ने तीन मोर्चों पर युद्ध छेडी है, जिनमे पहला मोर्चा है सुरक्षा मोर्चा जिसमें पुलिस व अर्धसैनिक बलों की सख्त तैनाती, आधुनिक हथियार और नई कैंप की स्थापना की गई है। दूसरा मोर्चा है विकास मोर्चा जिसमें सड़कों, पुल-पुलियों, स्वास्थ्य केंद्रों और स्कूलों का तेजी से विस्तार किया गया और तीसरा मोर्चा है समाज मोर्चा जिसमें आदिवासियों को सरकार से जोड़ने उनकी आजीविका योजनाएँ और पुनर्वास नीति पर काम किया गया।

छत्तीसगढ़ के रजत जयंती वर्ष में सुनाई दे रही बदलाव की गूंज
अपने निर्माण के 25वें वर्ष में पहुँचते तक छत्तीसगढ़ का बस्तर काफ़ी संवर चुका वहाँ के परिदृश्य तेज़ी से बदल रहे हैं। बारूदी सुरंगों से जर्जर हो चुकी सड़कें अब फिर से पक्की हो रही हैं। नक्सली आतंक के ख़ौफ़ से जिन गांवों तक बिजली की पहुंच नहाई थी आज वो गाँव में जगमगा रहा है।रजत जयंती वर्ष में छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने संकल्प लिया है कि बस्तर को देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र से आगे बढ़ाकर आदिवासी गौरव और विकास की राजधानी बना दिया जाएगा। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बदलाव के संकेत साफ़ देखे जा सकते हैं ।अवसंरचना विकास के तहत नई सड़कें, पुल और मोबाइल टावर का तेजी से निर्माण किया जा रहा हैं। पर्यटन के नए अध्याय खुल रहे हैं इतना ही नही चित्रकोट जलप्रपात, दंतेश्वरी मंदिर और कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में अब सुरक्षा और बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जा रही है। आजीविका और स्वरोजगार के लिए वन उत्पाद आधारित उद्योग, वनोपज संग्रहण केंद्र और महिला स्वसहायता समूह सक्रिय हो रहे हैं।लगातार स्वास्थ्य सेवाएँ बढ़ रही है, मोबाइल मेडिकल यूनिट और नए अस्पताल खोले जा रहे हैं। बुझ चुके शिक्षा की लौ को एक बार फिर रौशन करने के लिए बंद पड़े स्कूल पुनः चालू और नई आवासीय स्कूलों की स्थापना।

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नियद नेल्लानार योजना से बदलाव
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में लागू की गई नियद नेल्लानार योजना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और विश्वास का नया अध्याय लिख दिया है। इस योजना से ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएँ, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। पहले जहां भय और असुरक्षा का माहौल था, अब वहां आत्मनिर्भरता और आशा का संचार हो रहा है। युवाओं को कौशल प्रशिक्षण और महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। इस पहल ने लोगों को मुख्यधारा से जोड़ा है और बस्तर जैसे क्षेत्रों में शांति और प्रगति की नींव मजबूत की है।

विष्णुदेव के सुशासन से लौट रहा आदिवासी समाज का विश्वास
नक्सलवाद के साए में जीने वाले ग्रामीण अब खुलकर कहते हैं कि उन्हें सरकार से उम्मीदें हैं। सलवा जुडूम जैसी पहल ने भले ही विवाद खड़े किए हों, लेकिन आज का दौर अलग है। अब सरकार सुरक्षा और विकास दोनों को साथ लेकर आगे बढ़ रही है। आदिवासी नेताओं और समाजसेवियों का भी मानना है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बस्तर का भविष्य उज्जवल है।बस्तर की कहानी दर्द से शुरू होती है, लेकिन अब उम्मीद पर खत्म होती है। जिन रास्तों पर कभी बारूदी सुरंगें बिछाई जाती थीं, वहां आज बच्चे स्कूल जाते दिख रहे हैं। जहां कभी बंदूक की आवाज़ गूंजती थी, वहां अब ढोल-नगाड़ों की थाप सुनाई दे रही है। छत्तीसगढ़ का रजत जयंती वर्ष बस्तर के लिए “नया सवेरा” लेकर आया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की दृढ़ इच्छाशक्ति और सुरक्षा बलों की कुर्बानियों के बल पर यह स्पष्ट है कि नक्सलवाद का अंत अब तय है क्योंकि विकास का नया अध्याय शुरू हो चुका है।
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