बिलासपुर। आमतौर पर 28 हफ्ते से पहले जन्मे (प्रीमैच्योर ) बेबी का सरवाइव कर पाना चुनौती पूर्ण होता है. लेकिन यह कठिन काम डॉक्टरों ने कर दिखाया है. मध्य नगरी स्थित श्रीशिशु भवन अस्पताल के चिकित्सकों ने 26 हफ्ते में जन्मे मात्र 950 ग्राम वजनी बच्चे को नया जीवन दिया है.

यह भी पढ़ें : Bilaspur News Update: रिश्वत लेकर पाक्सो एक्ट के आरोपी शिक्षक की बहाली पर जांच शुरू, प्रतिबंधित दवाइयों की बिक्री पर रोक लगाने चला अभियान, शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने सरकारी स्कूलों का होगा सोशल ऑडिट, पुलिस ने पकड़े 14 बदमाश

चांपा प्रकाश इंडस्ट्रीज में अधिकारी विवेक काले और सरकारी स्कूल में टीचर उनकी पत्नी स्वाति काले के घर जब 8 साल के बड़े अंतराल के बाद दूसरी बार किलकारियां गूंजने की संभावना जागी. चांपा की डॉक्टर निहारिका ने बताया कि स्वाति की बच्चेदानी का मुंह खुला हुआ था, तुरंत स्टिच लगाया गया. लेकिन 6 माह में एक बार फिर से स्वाति काले को लेबर पेन उठने लगा. उन्हें तुरंत अस्पताल लाया गया, जहां निर्णय लिया गया कि ऑपरेशन से इमरजेंसी प्रसव कराया जाए.

बच्चे को सांस लेने में थी तकलीफ

हालांकि, डॉक्टर भी जानते थे कि 25 सप्ताह में ऐसा करना जोखिम भरा है. लेकिन विपरीत परिस्थितियों में स्वाति काले ने 21 अप्रैल को जिस प्रीमेच्योर बच्चे को जन्म दिया. उसका वजन मात्र 950 ग्राम था और वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था. उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए डॉ. निहारिका ने उस बच्चे को तुरंत श्रीशिशु भवन ले जाने की सलाह दी. डॉ. श्रीकांत गिरी ने बताया कि 26 माह में जन्मे बेहद कम वजनी बच्चों को बचा पाना आसान नहीं होता. वह भी तब के बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो और उसका फेफड़ा विकसित न हो. इस बच्चे के साथ भी इसी तरह की समस्याएं थी.

58 दिन बाद बच्चे डिस्चार्ज

डॉ. श्रीकांत गिरी के अलावा डॉक्टर रवि द्विवेदी, डॉक्टर प्रणव अंधारे, डॉक्टर मोनिका जयसवाल, डॉक्टर मनोज चंद्राकर, डॉक्टर चंद्रभूषण देवांगन, डॉक्टर यशवंत चंद्रा और उनकी पूरी टीम लगातार प्रीमेच्योर बेबी को बचाने में जुटे रहे. धीरे-धीरे बच्चा सामान्य ढंग से सांस लेने लगा. उसके वजन में भी बढ़ोतरी देखी गई. शुरू में उसे ड्रिप से और फिर बाद में पाइप से दूध पिलाया गया. 26 हफ्ते में जन्मा बेबी सरवाइव कर गया और वह तरह स्वस्थ है. करीब 58 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद बच्चे को डिस्चार्ज कर दिया गया.