शुभम नांदेकर, पांढुर्णा। विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला कल 23 अगस्त को पांढुर्णा में खेला जाएंगा। यहां से बहने वाली जाम नदी पर पांढुर्णा और सावरगांव के संगम पर सदियों से चली आ रही गोटमार खेलने की परंपरा को निभाते हुए लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन लगने वाले गोटमार मेले पर भले ही लोग लहूलुहान होंगे और शरीर से खून की धाराएं बहेगी, पर दर्द को भूलकर पूरे जोश व उमंग के साथ परंपरा निभाई जाएगी। गोटमार मेले पर मेले की आराध्य देवी चंडिका के मंदिर में हजारों भक्त जुटेंगे और पूजा के साथ मां के चरणों में माथा टेकेंगे। मां चंडिका के दर्शन के बाद ही गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी मेले में हिस्सा लेंगे।
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23 अगस्त को होने वाले गोटमार मेले के आयोजन को लेकर कलेक्टर-एसपी समेत जिले के आला अधिकारी शहर में शांति समिति की बैठकें की गई, जहां उपस्थित नागरिकों को कलेक्टर अजयदेव शर्मा एवं एसपी सुंदर सिंह कनेश द्वारा गोफन न चलने के साथ शांतिपूर्वक त्योहार मनाने की समझाइश दी गई। साथ ही पांढुर्णा शहर में धारा 144 लागू की गई। इसके बाद भी सैकड़ों वर्ष पुरानी गोटमार मेले की परम्परा में खून बहाये जाने की पूरी तैयारियां जोर शोर से प्रशासन के सामने चल रही है।
विशेष बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारकर मारने मरने पर उतारू होते हैं। गोटमार के अवसर पर कलेक्टर अजय देव शर्मा, पुलिस अधीक्षक सुंदर सिंह कनेश सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और लगभग 600 पुलिसकर्मियों की विशाल सेना मौजूद रहेंगी।
मेले से जुड़ी कहानियां
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदंतियां और कहानियां जुड़ी हैं। जिसके अनुसार जाम नदी के बीचो-बीच झंडेरूपी पलाश के पेड़ को गाड़कर मेले की परंपरा निभाई जाती है और पत्थरबाजी का खेल खेला जाता है।
प्रेमी युगल की कहानी
एक प्रचलित किवदंती के अनुसार पांढुर्णा के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम संबंध थे। प्रेमी युवक ने सावरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्णा लाना चाहा, पर दोनों के जाम नदी के बीच पहुंचते ही सावरगांव में खबर फैल गई। प्रेमी युगल को रोकने सावरगांव के लोगों ने पत्थर बरसाए, वहीं जवाब में पांढुर्णा के लोगों ने भी पत्थर बरसाए। इस पत्थरबाजी में प्रेमी युगल की तो मौत हो गई, पर तब से गोटमार मेले की परंपरा शुरू होने की बात किवदंती के अनुसार कही जाती है।
युद्धाभ्यास की कहानी
कहानी प्रचलित है कि जाम नदी के किनारे पांढुर्णा – सावरगांव वाले क्षेत्र में भोंसला राजा की सैन्य टुकड़ियां रहा करती थीं। रोजाना युद्धभ्यास के लिए टुकड़ियां के सैनिक नदी के बीचो-बीच झंडा लगाकर पत्थरबाजी और निशानेबाजी का मुकाबला करते थे। सैनिकों को निशानेबाजी और पत्थरबाजी में दक्ष करने यह सैन्य युद्धाभ्यास लंबे समय तक जारी रहा। जिसने धीरे-धीरे परंपरा का रूप ले लिया। इस कहानी को भी गोटमार मेला आयोजन से जोड़ा जाता है और हर साल परंपरा निभाई जाती है।
अपनों को खोने का गम
भले ही गोटमार मेला सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार मनाया जा रहा है, पर मेले में अपनों को खोने वाले परिवारों का गम भी उभर जाता है। मेले के आते ही क्षेत्र के कई परिवारों के सालों पुराने दर्द उभर आते है। क्योंकि इन परिवारों ने गोटमार में ही अपनों को खोया है। गोटमार के दौरान अब तक किसी का पति, तो किसी का बेटा, किसी का पिता और भाई अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं कई खिलाड़ियों को शरीर पर मिले जख्म गोटमार के दिन हरे हो जाते हैं।
प्रशासन के प्रयास अब तक असफल
गोटमार की परंपरा सदियों से चली आ रही है। एक-दूसरे पर पत्थर बरसाकर लहुलूहान करने की इस परंपरा को रोकने प्रशासन ने तमाम प्रयास किए, पर प्रयास असफल रहे हैं। एक साल पत्थरों की बरसात रोकने रबर बॉल से खेल का प्रयास हुआ, पर चंद मिनटों में ही रबर बॉल सिफर हो गए और खिलाड़ियों ने पत्थरों से ही खेल शुरू कर दिया। बीते पांच-छह सालों से हर बार गोटमार रोकने भरसक प्रयास हो रहे हैं। मानवाधिकार आयोग ने भी इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद मेले में पत्थरबाजी को रोकने प्रशासन सख्ती से मुस्तैद रहा, पर गोटमार निभाने की परंपरा नहीं रुक पाई।
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