पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। जिले में अवैध रेत खनन थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाइवा परिवहन कल्याण संघ ने बड़ा खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि खनन माफिया वैध डंप का झांसा देकर हाइवा बुलाते हैं और बाद में नदी घाट से रेत भरवाते हैं। ताज़ा मामले में बिरोड़ा घाट से लोडिंग कराए जाने के बाद जब वाहन राजिम पहुंचे तो उनपर माइनिंग विभाग ने कार्रवाई कर दी। संघ का कहना है कि कार्रवाई हमेशा हाइवा मालिकों पर होती है, जबकि असली माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।

प्रदेश हाइवा परिवहन कल्याण संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद अग्रवाल ने एक वीडियो जारी कर जिले में चल रहे अवैध रेत खनन का खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि राजिम के कुछ लोगों ने हाइवा मालिकों को भरोसा दिलाया था कि उन्हें वैध डंप स्टॉक से रेत लोड कराया जाएगा और रॉयल्टी पर्ची भी दी जाएगी। गुरुवार की रात चार हाइवा इसी भरोसे पर पहुंचे, लेकिन उन्हें सीधे फिंगेश्वर की सुखा नदी के बिरोड़ा घाट भेज दिया गया। यहां चेन माउंटेन से रेत भरवाया गया और माफियाओं ने दावा किया कि अफसरों से उनकी पूरी सेटिंग हो चुकी है। जैसे ही वाहन राजिम पहुंचे, माइनिंग अफसरों ने उन पर कार्रवाई कर दी।

विनोद अग्रवाल ने इस पर सवाल उठाया कि जब खदानें बंद हैं तो बिरोड़ा घाट पर खनन कैसे हो रहा है। उनका आरोप है कि खदानें कुछ रसूखदारों के इशारे पर चल रही हैं, मगर कार्रवाई सिर्फ हाइवा वाहनों पर की जाती है। उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियों से प्रदेश सरकार की छवि खराब हो रही है और माफियाओं पर सख्त कार्रवाई जरूरी है।

कुरुसकेरा और बिरोड़ा में रोजाना लाखों की काली कमाई

जानकारी के अनुसार, पैरी और महानदी क्षेत्र के तर्रा के कुरुसकेरा घाट से रोजाना 60 से 70 हाइवा रेत भरकर ले जाई जाती है। यहां खनन सत्ताधारी दल से जुड़े बड़े नेताओं के संरक्षण में उनके लोगों द्वारा करवाया जा रहा है। पितईबंद में पत्रकारों पर हमला करने वाला गिरोह भी इसी खदान से जुड़ा हुआ है। ऐसे ही बिरोड़ा घाट, नगझर, रानी परतेवा में भी राजनीतिक प्रभावशाली लोगों की भूमिका बताई जा रही है। राजिम क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं की मौन स्वीकृति से यह पूरा सिंडिकेट रोजाना लाखों रुपये की अवैध कमाई कर रहा है।

खदानों के बंद होने के बावजूद डंप परमिट पर सवाल

फिलहाल जिले में दर्जन भर रेत घाट हैं, लेकिन किसी को वैध खनन की अनुमति नहीं है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार खदानें पिछले एक महीने से बंद हैं। इसके बावजूद डंपिंग की अनुमति कैसे मिल गई, यह बड़ा सवाल है। माइनिंग विभाग ने सिर्फ सुरसा बांधा, पाण्डुका और लचकेरा में डंप की अनुमति दी है और इन्हें पीट पास भी जारी किए गए हैं। मगर जब वैध खदानें ही नहीं खुलीं तो रेत का स्टॉक इन डंप स्थलों पर कैसे पहुंचा?

नियमों के अनुसार हर सप्ताह डंप स्थलों का भौतिक निरीक्षण होना चाहिए और रॉयल्टी पर्चियों के हिसाब से स्टॉक का ब्योरा तैयार होना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा। आरोप है कि पूरा खेल राजनीतिक रसूख और माइनिंग विभाग की मिलीभगत से चल रहा है।

माइनिंग अधिकारी का जवाब

जिला माइनिंग अधिकारी रोहित साहू ने इस मामले में कहा कि उन्हें जानकारी मिल रही है कि कहां अवैध खनन हो रहा है, इसकी जांच कराई जाएगी। अभी सिर्फ तीन स्थानों सुरसा बांधा, पाण्डुका और लचकेरा में डंप की अनुमति है। देवभोग की अवधि खत्म हो चुकी है। विस्तृत जानकारी बाद में देने की बात उन्होंने कही।

हैरानी की बात तो यह है कि राजिम के करीब संचालित सुरसाबांधा रेत डंप को 200 किमी दूर देवभोग ब्लॉक के पुरनापाली रेत खदान के रायल्टी पर और पांडुका डंपिंग के लिए परेवाडीही धमतरी जिला के रायल्टी पर अनुमति दिया गया है। जिसमें जिला प्रशासन और माइनिंग अधिकारी की साठगांठ स्पष्ट दिख रहा है।

Lalluram.Com के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें.
https://whatsapp.com/channel/0029Va9ikmL6RGJ8hkYEFC2H