शिखिल ब्यौहार, भोपाल। मध्यप्रदेश को कई नामों से जाना जाता है। टाइगर स्टेट, चीता स्टेट, भेड़िया स्टेट के साथ कई ऐसे नाम है जो एमपी के नाम में चार चांद लगाते हैं। लेकिन, जिम्मेदारों की लापरवाही से उपजी परिस्थितियों से मध्यप्रदेश को यदि श्वान या डॉग या कुत्ता पीड़ित प्रदेश कहा जाए तो हैरानी वाली बात नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश और कुत्तों की समस्या को लेकर नेशनल हेल्थ मिशन की रिपोर्ट इस बात पर मुहर लगाती है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को लेकर आदेश भी जारी किया है। इसमें कई बिंदुओं पर लोग दोराय हैं तो सियासत भी खूब बोल रही है।
जहर से कम नहीं कुत्तों का कहर
नेशनल हेल्थ मिशन ने राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार के निर्देश पर सर्वे किया था। इसमें बताया गया कि मध्य प्रदेश में कुत्तों का कहर किसी जहर से कम नहीं। मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा कुत्तों के शिकार रतलाम में लोग हुए। इसके अलावा इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन समेत कई शहरों में कुत्तों के आतंक के मामले सर्वे रिपोर्ट में दर्ज हैं।
इंदौर से लेकर उज्जैन तक कुत्तों का शिकार हुए लोग
रिपोर्ट में बताया गया कि इंदौर में बीते साल 54,508, भोपाल में 19,285, ग्वालियर में 25,065, जबलपुर में 18,176, उज्जैन में 19,949 लोग कुत्तों का शिकार हुए। इसके अलावा इस साल का अनुमान है कि अब तक कुत्तों के आतंक का मामला 2 लाख के पार हो चुका है। राजधानी भोपाल में नगर निगम पर कई बार कुत्तों की नसबंदी में जमकर धांधली के आरोप लग चुके हैं। हालत ऐसे ही कि नसबंदी के बाद भी भोपाल में शहर में कुत्तों की संख्या नियंत्रित होने के स्थान पर लगातार बढ़ी। वर्तमान में भोपाल में आवारा कुत्तों की संख्या दो लाख के पार है।
कांग्रेस और बीजेपी में जुबानी जंग
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस और बीजेपी में सियासी जंग शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता रवि सक्सेना ने आरोप लगाया कि प्रदेश में बीते 20 सालों से बीजेपी सरकार है। लेकिन, बीजेपी की सरकार ने कुत्तों के आतंक को भी अवसर मान नसबंदी और कुत्तों से जुड़े कार्यक्रमों में धांधली को अंजाम दिया। मध्यप्रदेश में कुत्तों की समस्या बेहद गंभीर हो चुकी है। कई मामलों में मासूमों की जान तक जा चुकी है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल करना चाहिए।
उधर, मामले पर बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता मिलन भार्गव ने कहा कि कांग्रेस न तो संविधान मानती है न ही कानून। यह मामला सियासत का नहीं है। पूरे देश में बीजेपी शासित राज्यों में इस गंभीर विषय पर कई स्तर पर काम किया जा रहा है।
क्या कहते हैं राजधानीवासी ?
स्थानीय निवासी निधि वर्मा ने कहा कि जिन्हें कुत्तों को पालना उन्हें अपनी अलग सोसाइटी बना लेनी चाहिए। शहर पर पहला हक तो इंसानों का है। यह बात समझनी चाहिए।
कमल राठी नाम के शख्स ने कहा कि स्ट्रीट डॉग की समस्या को लेकर नगर निगम और जिला प्रशासन जिम्मेदार है। यदि आवारा कुत्तों से किसी को किसी भी प्रकार का नुकसान हो तो इन सरकारी एजेंसियों से कम से कम 50 गुना हर्जाना पीड़ितों को मिलना चाहिए। सरकारी एजेंसियां धांधली करती हैं।
वहीं देवेंद्र गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि स्ट्रीट डॉग को सार्वजनिक स्थानों पर भोजन नहीं देना चाहिए। जो कुत्ता प्रेमी कार्रवाई में अड़चन पैदा करते हैं अब उन पर भी वैधानिक कार्रवाई होगी। इन्हें जेल भेजने का प्रावधान करना चाहिए।
अंकिता मालवीय नाम की महिला ने कहा कि कुत्तों की समस्या उसी को समझ आती है जो इनका शिकार बना हो। इनके लिए व्यवस्थित प्लानिंग होना जरूरी है। कई स्थानों पर लोगों ने कुत्तों को ही मारा। बेजुबान हमारी भी जिम्मेदारी हैं।
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