पटना। गोपालगंज के मर्मस्पर्शी नेता और पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडेय का शुक्रवार को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और रात करीब 9:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। इस दु:खद खबर ने राज्य की राजनीति में शोक की लहर फैला दी है।
राजनीतिक यात्रा दिलचस्प मोड़ों से भरी रही
काली प्रसाद पांडेय की पॉलिटिक्स की शुरुआत 1980 में गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनकर हुई। उनकी राजनीतिक यात्रा दिलचस्प मोड़ों से भरी रही। 1984 में लोकसभा चुनाव में वे जेल से मैदान में उतरे और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भारी मतों से नगीना राय को हराकर सांसद बने। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बिहार में उन्हें ‘शेर-ए-बिहार’ और ‘रॉबिनहुड’ की छवि से नवाज़ा गया। वे गरीबों और शोषितों के सशक्त हिमायती थे, जिन्होंने सत्ता और व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने से कभी पीछे नहीं हटे। कई विवादों के बावजूद—जैसे कि पटना में सांसद पर हुए हमले से संबंधित आरोप—उनकी जनप्रियता में कमी नहीं आई।
कुचायकोट विधानसभा सीट से हार गए
इसके बाद, उन्होंने अपनी पार्टीबद्धता में उतार-चढ़ाव भी देखें कई दलों के साथ जुड़ते-बिछड़ते हुए उनका राजनीतिक सफ़र समृद्ध और विविध रहा। लोक जनशक्ति पार्टी के महासचिव के रूप में सक्रिय होने के बाद, उन्होंने 2020 में कांग्रेस में वापसी भी की। हालांकि, उस चुनाव में वे कुचायकोट विधानसभा सीट से हार गए। उनके निधन से परिवार और क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। परिवार में पत्नी मंजू माला, पुत्र पंकज कुमार पांडेय, धीरज कुमार पांडेय, बबलू पांडेय और अन्य सदस्य शामिल हैं।
राजनीति के लिए धक्का
बिहार की राजनीति में काली प्रसाद पांडेय का स्थान एक ऐसे नेता का था जिसने व्यक्तिगत साहस को गुट-राजनीति और संघर्ष के साथ जोड़ा। उनका जाना केवल एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि उस राजनीति के लिए धक्का है जिसमें जन-शक्ति, न्याय और समाजवाद का सम्मिश्रण था।
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