सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि कमाई के लिए किसी का मजाक उड़ाने की आज़ादी नहीं दी जा सकती और न ही इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में संरक्षण मिलेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब कोई अपने भाषण या प्रस्तुति का व्यवसायीकरण करता है, तो वह किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचा सकता। शीर्ष अदालत ने इसी क्रम में कॉमेडियन समय रैना(Samay Raina) और अन्य हास्य कलाकारों को विकलांग व्यक्तियों का मजाक उड़ाने वाले चुटकुलों के लिए कड़ी फटकार लगाई।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मरीजों और उनके परिवारों की मदद करती है। याचिका में अदालत का ध्यान इस ओर दिलाया गया कि कई कॉमेडियन विकलांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाने वाले चुटकुले सुनाते हैं। अदालत ने जिन कलाकारों की आलोचना की, उनमें समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर शामिल हैं।
दिव्यांगों और दुर्लभ बीमारियों का मजाक उड़ाने के आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन कॉमेडियनों ने अपने शो में दिव्यांगों और दुर्लभ बीमारियों का मजाक उड़ाया, जिससे पीड़ितों की भावनाएं आहत हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि हर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिए। अदालत ने कलाकारों को निर्देश दिया कि वे दिव्यांगों और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों पर असंवेदनशील चुटकुले सुनाने के लिए बिना शर्त माफी मांगें।
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सद्बुद्धि की जीत हुई
इस याचिका को ‘इंडियाज़ गॉट लेटेंट’ विवाद से जुड़े मामलों के साथ भी जोड़ा गया, जिसमें यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया पर आरोप लगे थे। फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कोर्ट में कहा कि “यह सद्बुद्धि की जीत है” क्योंकि सभी हास्य कलाकारों ने माफी मांग ली है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि ये कलाकार अपने यूट्यूब चैनल पर सार्वजनिक रूप से माफीनामा प्रसारित करें।किसने दायर की थी याचिका?
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ‘क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह संस्था स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) के मरीजों और उनके परिवारों की मदद करती है। याचिका में दिव्यांगों को लेकर मजाक बनाने और उन पर आपत्तिजनक जोक करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
केंद्र को गाइडलाइंस बनाने का निर्देश
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने अदालत को बताया कि सभी कलाकारों ने माफी मांग ली है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की,”मजाक जीवन का हिस्सा है और हम अपने ऊपर बने मजाक को स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन जब आप दूसरों का मजाक बनाना शुरू करते हैं, तो यह संवेदनशीलता का उल्लंघन है।” शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि इस “अमानवीय अपराध” के लिए इन कलाकारों पर कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए। साथ ही, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए स्पष्ट गाइडलाइंस तैयार करने का निर्देश दिया गया है। फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने फैसले को “सद्बुद्धि की जीत” करार दिया और कहा कि यह पीड़ितों की गरिमा की रक्षा करने वाला ऐतिहासिक कदम है।
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