बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के आगामी चुनाव में जीत के लिए जोर-आजमाइश के मद्देनजर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उसकी प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (UBT) गणेश मंडलों के समर्थन के लिए जद्दोजहद कर रही हैं क्योंकि ये गणेश मंडल सामाजिक-राजनीतिक केंद्र होने के साथ-साथ परंपरागत रूप से जमीनी कार्यकर्ताओं और मतदाता संपर्क के लिए आधार के रूप में काम करते हैं।

शिंदे गुट की शिवसेना का दावा है कि गणेश उत्सव के आयोजन के लिए दी जा रही सहायता की वजह से कई मंडल अपने समर्थन में बदलाव कर रहे हैं. वहीं शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने शिंदे गुट पर मंडलों को पैसे का लालच देने का आरोप लगाया है.

गणेश मंडलों पर वर्चस्व की लड़ाई

ठाकरे ने इस महीने की शुरुआत में गणेश मंडलों के प्रतिनिधियों से कहा था ‘मंडलों को कौन ले जा रहा है? आप उन्हें कहां ले जाओगे? आप आखिरकार मुंबई में ही रहेंगे. जब तक गणपति बप्पा का आशीर्वाद हमारे साथ है, तब तक हम मंडलों को ले जाने को लेकर चिंतित नहीं है’. वहीं शिवसेना के एक नेता का कहना है कि पार्टी द्वारा दिए गए उदार समर्थन की वजह से मंडलों में शिंदे की लोकप्रियता बढ़ी है.

शिंदे गुट के लिए मंडलों का समर्थन अहम

मंडलों (सामुदायिक संगठन जो गणेश चतुर्थी को प्रमुखता से मनाते हैं) का समर्थन शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए अहम साबित हो सकता है, जो अब भी मुंबई के राजनीतिक परिदृश्य में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही है. इन मंडलों पर लंबे समय तक अविभाजित शिवसेना का प्रभुत्व रहा है. लेकिन अब शिवसेना शिंदे और ठाकरे गुट में विभाजित हो गई है. ऐसे में दोनों ही गुटों की नजर इन मंडलों पर हैं.

दान देने वाले नेताओं के बैनर भी लगाते हैं मंडल

मुंबई में करीब 14,000 मंडल हैं जिनमें से 8,000 पंजीकृत हैं. ये मंडल दही हांडी, नवरात्रि और कुछ मामलों में साईबाबा उत्सव का भी आयोजन करते हैं . स्थानीय राजनीति पर इनका अच्छा-खासा प्रभाव है. पार्षद, विधायक और सांसद अक्सर मंडलों को सहयोग देने में भूमिका निभाते हैं, जो काफी हद तक दान पर निर्भर होते हैं. अक्सर युवा मंडल कार्यकर्ता चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर काम करते हैं. दूसरी ओर वो जनप्रतिनिधियों के लिए बाहुबल का भी काम करते हैं और हर पार्टी इस संसाधन का इस्तेमाल करती है. यहां तक की मंडल दान देने वाले नेताओं के बैनर भी लगाते हैं.

मंडलों पर लंबे समय तक अविभाजित शिवसेना का प्रभुत्व

ऐतिहासिक रूप से इन मंडलों पर अविभाजित शिवसेना का प्रभुत्व रहा है. कभी अविभाजित शिवसेना का गढ़ रहे लालबाग-परेल के एक शिवसेना (UBT) पदाधिकारी ने कहा कि 1966 में जब पार्टी की स्थापना हुई थी, तब बाल ठाकरे ने पार्टी कार्यकर्ताओं को गणेश, नवरात्रि और दही हांडी समारोहों के आयोजन मंडलों में प्रभावी होने का निर्देश दिया था. इसके परिणामस्वरूप अधिकतर मंडलों पर शिवसेना का दशकों तक प्रभुत्व बना रहा.

‘चंदे के जरिए मंडलों को आकर्षित कर रहा शिंदे गुट’

हालांकि, पिछले दो-तीन सालों में पार्टी के विभाजन और शिंदे के नए नेता के रूप में उभरने के बाद स्थितियों में बदलाव हो रहा है. पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि शिंदे के नेतृत्व वाला गुट चंदे के जरिए मंडलों को आकर्षित कर रहा है और बीजेपी एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जैसे अन्य दल भी सक्रिय रूप से उनके साथ जुड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले अविभाजित शिवसेना से जुड़े मंडलों को पार्टी समर्थकों का समर्थन प्राप्त था. शिंदे के कार्यभार संभालने के बाद से मंडलों को मिलने वाले दान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे कई मंडलों ने अपनी निष्ठा बदल ली है.

‘राजनीति में पार्षदों की अहम भूमिका’

मुंबई की जमीनी राजनीति में पार्षदों की अहम भूमिका अहम मानी जाती है. शिवसेना (UBT) के एक पदाधिकारी ने बताया कि 50 से ज्यादा पूर्व पार्षद शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो चुके हैं और उन्होंने विभिन्न मंडलों के लिए धन जुटाने में मदद की है. हालांकि उन्होंने दावा किया कि मूल शिवसेना के प्रति मंडलों की पारंपरिक निष्ठा मजबूत बनी हुई है. उन्होंने कहा, कि पैसे से हमेशा वफादारी नहीं खरीदी जा सकती. कई मंडलों ने शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से वित्तीय सहायता स्वीकार की होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने पाला बदल लिया है.

कई मंडलों ने शिंदे गुट से किया संपर्क

वहीं शिंदे गुट के एक पदाधिकारी का कहना है कि कई मंडलों ने उनकी पार्टी से संपर्क किया है. उन्होंने कहा कि मंडल न केवल वित्तीय सहायता चाहते हैं, बल्कि उन्हें पंडाल लगाने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के लिए अनुमति लेने में भी मदद की जरूरत होती है. उन्होंने कहा कि पार्टी ने उनकी समस्याओं के समाधान के लिए चार महीने पहले एक सहायता डेस्क स्थापित की थी. उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों से मंडलों को दी गई सहायता का स्तर अभूतपूर्व रहा है. उन्होंने बताया कि एकनाथ शिंदे इस साल भी मुंबई और ठाणे के पंडालों का दौरा करेंगे.

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