रायपुर. छत्तीसगढ़ का भूगोल, संस्कृति और अर्थव्यवस्था- तीनों ही प्रदेश की प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन (1 नवम्बर 2000) के समय से लेकर रजत जयंती वर्ष (2025) तक की यात्रा में जो सबसे स्थायी उपलब्धि बनकर उभरी है वह है हरियाली का सतत विस्तार, वनों के संरक्षण का संस्थागत ढांचा और “ग्रीन ग्रोथ” को विकास की धुरी बनाना। आज जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार पर्यावरण-संरक्षण को शासन की प्राथमिकता में रखकर “हरित पूंजी” (Green Capital) के निर्माण पर जोर दे रही है। वृक्षारोपण, सामुदायिक सहभागिता, इकोलोजिकल रिस्टोरेशन और पॉलिसी इनोवेशन के मज़बूत आँकड़ों से भरा पड़ा है छतीसगढ़ का पिछला पच्चीस वर्ष। रजत जयंती के मौक़े पर छत्तीसगढ़ के हरियाली की असली तस्वीर सामने आ रही है।

आज के ताजा आँकड़ों में छत्तीसगढ़ की हरित उपलब्धियां

भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) की इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2023 (ISFR 2023) के अनुसार छत्तीसगढ़ ने “वन और वृक्ष आच्छादन” (Forest & Tree Cover) में 684 वर्ग किमी की कुल शुद्ध बढ़ोतरी दर्ज की है। राज्य का यह “वन और वृक्ष आच्छादन” देश में सबसे अधिक है। साथ ही नेचुरल फ़ॉरेस्ट के “वन आच्छादन” में भी छत्तीसगढ़ की शुद्ध वृद्धि लगभग 95 वर्ग किमी दर्ज की गई जिसके साथ राज्य का कुल वन आवरण 55,811.75 वर्ग किमी तक पहुँच गया जो प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 42.5% है। यह किसी भी औद्योगिक रूप से सक्रिय राज्य के लिए उल्लेखनीय मानक है। ISFR-2023 के ही विस्तृत वर्गीकरण के मुताबिक, Very Dense Forest (VDF) श्रेणी, जो जैवविविधता और कार्बन-संग्रहण की दृष्टि से सबसे मूल्यवान है उसमें 348.6 वर्ग किमी की वृद्धि दर्ज की गई है । “Open Forest (OF)” में भी लगातार वृद्धि बनी रही। इस तरह छत्तीसगढ़ में न केवल पेड़ों की संख्या बढ़ी है बल्कि गंभीर घनत्व वाले वनखंड में भी सुधार हुआ है जिसे गुणात्मक हरियाली कही जाती है।इन आँकड़ों का सार यही है कि—छत्तीसगढ़ ने 2021–2023 के चक्र में भारत का ‘ग्रीन चैंपियन’ बनकर उभरने का काम किया; खासकर “ट्री कवर” (Trees Outside Forests) में राज्य की छलाँग सबसे आगे रही।

ग्रीन ग्रोथ का वर्तमान विजन और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की प्राथमिकताएं

दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सत्तारूढ़ होने के बाद साय सरकार ने राज्य के हरियाली-अभियान को नयी गति दी है। 2024–25 में बस्तर संभाग के पवित्र स्थलों के आसपास पौधारोपण और जनजातीय समुदायों की सहभागिता से वन संरक्षण को स्थानीय नेतृत्व मिला। राज्य सरकार के इस कदम को इसलिए भी महत्त्वपूर्ण माना गया क्यों कि देवगुड़ी-मतागुड़ी जैसे स्थल सामाजिक जीवन के केंद्र होते हैं और यहाँ लगने वाले पौधे स्वयं समुदाय द्वारा संरक्षित किए जाते हैं, जिससे इनका सर्वाइवल रेट हाई रहता है।छत्तीसगढ़ राज्य के रजत जयंती वर्ष में सरकार ने “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे जन-अभियान और विधानसभा/सार्वजनिक परिसरों में हरियाली को प्राथमिकता देकर प्रतीकात्मकता और व्यवहारिकता दोनों को एक साथ जोड़ा है। 2025 में नव विधानसभा परिसर सहित सभी बड़े स्थलों पर होने वाले वृक्षारोपण यही संदेश देता है कि हर सरकारी अवसंरचना ग्रीन लेंस से देखी जाए। राज्य के खनन-प्रधान जिलों में “ग्रीन ऑफ़सेट” से जंगलों पर दबाव घटाते हुए वृक्षारोपण, चरणबद्ध खनन और सीमित क्षेत्रीय क्लियरेंस किया जा रहा है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले कुछ दशकों में वन क्षेत्र का नगण्य अंश ही खनन के लिए डायवर्ट हुआ था। साय सरकार के कुशल नेतृत्व में “माइनिंग टू मेक ग्रीन” संतुलन छत्तीसगढ़ की ख़ास पहचान बन रही है।

जंगल-समुदाय-आस्था और तकनीक पर आधारित है वन संरक्षण की नई संस्कृति

राज्य के रजत जयंती वर्ष में छत्तीसगढ़ का हरित मॉडल समुदाय-केंद्रित है। जैसे बस्तर में देवगुड़ी/मतागुड़ी में वृक्षारोपण ग्राम समितियों की निगरानी और स्थानीय नेताओं/पुजारियों/परमा/गयता इत्यादि की भागीदारी में की जा रही है। सामाजिक अनुशासन के बल पर पौधों की रक्षा सुनिश्चित की जा रही है। जिला प्रशासन की Digital Monitoring और समयबद्ध समीक्षा ने इन अभियानों को “इवेंट” नहीं, बल्कि प्रक्रिया बना दिया है। वन्यजीव संरक्षण के मोर्चे पर भी राज्य ने उल्लेखनीय सफलता पाई है। उदंती–सीतानदी टाइगर रिज़र्व से हाल के महीनों में कैमरा ट्रैप तस्वीरों में बाघ, तेंदुआ, भालू, हाथी और शिकार-प्रजातियों की बेहतर उपस्थिति संकेत है कि उनके आवास (Habitat) में सुधार हो रहा है और एंटी-पोचिंग/मानव-हाथी संघर्ष प्रबंधन जैसे उपाय असर दिखा रहे हैं। छत्तीसगढ़ का इकोसिस्टमनहरियाली को बचाने और बढ़ाने वाला है।

खनन जिलों का समन्वित मॉडल-“ग्रीन के साथ ग्रोथ”

छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में खनन का बड़ा योगदान है मगर नीतिगत अनुशासन और चरणबद्ध अनुमति से वन क्षेत्रों पर दबाव सीमित रखने की कोशिश की गई है। हालिया विश्लेषण बताता है कि 1980 से अब तक खनन हेतु वनभूमि का डायवर्जन बहुत कम रहा मगर जहाँ स्वीकृति मिली वहाँ वार्षिक, चरणबद्ध पेड़-कटाई और समानांतर बड़े पैमाने पर पौधारोपण से नेट-ग्रीन गेन सुनिश्चित की गई। रजत जयंती वर्ष में छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने खनन-राजस्व का एक हिस्सा ग्राम-विकास और पर्यावरण-संवर्धन में लगाने पर ज़ोर दिया है—ताकि “माइनिंग टू मेक ग्रीन” की विश्वसनीयता बनी रह सके।

शहरी हरियाली: जलवायु-लचीले शहरों के लिए “ग्रीन इंफ़्रास्ट्रक्चर”

छत्तीसगढ़ के बड़े शहरों में ग्रीन बफ़र, रोडसाइड एवेन्यू प्लांटेशन, सार्वजनिक परिसरों में नेटिव प्रजातियाँ, ऑक्सी-फॉरेस्ट/सिटी फॉरेस्ट को बढ़ावा देने की लगातार कोशिश की जा रही है। स्कूलों में ग्रीन साक्षरता फैलाने की कोशिश जारी है । जन-अभियान के रूप में Micro-Greens, Kitchen Gardens, Housing Society Plantation को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।Heat Island Effect घटाने और शहरी छाया-कवर बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

सामुदायिक वन प्रबंधन, MFP और हरियाली

लघु वनोपज (MFP) तेंदूपत्ता, चार, सालबीज, हर्रा, महुआ, लाख, इमली, चिरौंजी—पर निर्भर रहने वाले छत्तीसगढ़ के आदिवासी और वनों पर आश्रित समुदाय के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था और वनाधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से वन-जीविका को स्थिरता मिली है। इसके परिणामस्वरूप वन-संरक्षण में समुदाय का हित जुड़ा, निगरानी/रोक-थाम बढ़ी और अवैध कटाई/आग की घटनाएँ नियंत्रित हुईं। इससे हरियाली का “सोशल कॉन्ट्रैक्ट” मज़बूत हुआ है। जहाँ जंगल समृद्ध होगा, वहीं ग्रामीण -आय बढ़ेगी क्योंकि दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

जलवायु परिवर्तन और छत्तीसगढ़ की “ग्रीन स्टेटेजी”

भारत की NDC (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) और राष्ट्रीय वन नीति के अनुरूप, देश भर में वन+वृक्ष आच्छादन 33% तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। ISFR-2023 के अनुसार, देश का कुल वन+ट्री कवर लगभग 25.17% है और इसमें ट्री कवर वृद्धि की बड़ी भूमिका रही। राष्ट्रीय वन नीति में राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने में छत्तीसगढ़ का योगदान,विशेषकर ट्री कवर में अति महत्वपूर्ण रहा। राज्य की कार्बन-सीक्वेस्ट्रेशन क्षमता, स्थानीय जलवायु-लचीलापन, मृदा स्वास्थ्य, और जैवविविधता लाभ और राज्य के साय सरकार की पर्यावरण संरक्षण नीति से प्रदेश को काफ़ी उम्मीद है।

राज्य के मुखिया के पहल से होने वाले “रोपण के परिणाम”

छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने अलग-अलग नीतियों, योजनाओं और आस्थाओं का सहारा लेकर राज्य में हरियाली बिखेरने का काम किया है जैसे “एक पेड़ माँ के नाम” या देवगुड़ी-मतागुड़ी में वृक्षारोपण का काम या विधानसभा/सार्वजनिक परिसरों में हरियाली करने की पहल। मुख्यमंत्री के सभी प्रयासों के मूल में एक ही बात थी राज्य में हरियाली को बढ़ावा देना। रोपित किए जाने वाली देसी/स्थानीय प्रजातियाँ जैसे सागौन, साल, शीशम, बाँस, इमली के मिश्रित रोपण से सर्वाइवल और पारिस्थितिकीय स्थिरता मिल रही है । समुदाय-केंद्रित संरक्षक मॉडल जैसे देवगुड़ी/ग्राम वन समितियों में वृक्षारोपण से उनकी जवाबदही बढ़ने के साथ-साथ वृक्षों की रक्षा और सिंचाई/देखरेख में लागत कम हो रही है। कृषि-भूमि में पेड़ों के साथ फसल के संतुलन (Agroforestry) से मिट्टी की उर्वरता और नमी में सुधार आ रहा है । सामुदायिक–सांस्कृतिक वृक्षारोपण का विस्तार किया जा रहा है। 2024–25 के अभियान में विधानसभा परिसर/सार्वजनिक परिसरों में रोपण, और सामुदायिक नेतृत्व वाला मॉडल तैयार किया गया।

मुख्यमंत्री साय के नेतृत्व में वृक्षारोपण में शिक्षा, नवाचार और नागरिक सहभागिता

रजत जयंती में “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे अभियान—नागरिकों को हरियाली से भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। स्कूल-कालेज में ईको-क्लब, ग्रीन-अप्रेंटिसशिप, ग्रीन-इंटर्नशिप और कॉर्पोरेट–कैंपस प्लांटेशन (निजी सेक्टर के कैंपस/कॉलोनियों में नेटिव प्रजातियाँ)—हरित जीवनशैली (LiFE) की संस्कृति बनाते हैं।

रजत जयंती पर “हरियाली”—छत्तीसगढ़ की पहचान, भारत का मान

रजत जयंती वर्ष में जब हम छत्तीसगढ़ की पच्चीस वर्ष की यात्रा को देखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि हरियाली यहाँ केवल एक अभियान नहीं, एक तंत्र बन चुकी है—नीति, समाज, आस्था, तकनीक, बाज़ार और शिक्षा—सब एक ही हरित धागे में पिरोए गए हैं। ISFR-2023 के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि राज्य ने देश में सर्वाधिक कुल (वन+वृक्ष) आच्छादन वृद्धि दर्ज की है। घने वनों में सुधार हुआ है। जंगलों के बाहर पेड़ तेज़ी से बढ़े है और सामुदायिक मॉडल ने हरियाली को जीवित और लाभकारी बनाया है । मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने परंपरा + नवाचार का संगम करते हुए—देवगुड़ी-केंद्रित रोपण, विधानसभा/सार्वजनिक परिसरों में वृक्षारोपण और “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे अभियानों के ज़रिए हरियाली को जन-भावना बनाया है। खनन-प्रधान अर्थव्यवस्था के बावजूद नेट-ग्रीन-गेन का संकेत मिलता है—जो संतुलित विकास की ओर प्रेरक संदेश है। अगले पाँच–दस वर्षों का लक्ष्य स्पष्ट है—42.5% से आगे 45%+ की सतत छलाँग। TOF का विस्तार, रिपेरियन-और डिग्रेडेड पैच रिस्टोरेशन, शहरी ‘ग्रीन-हेल्थ’ कॉरिडोर, MFP-लिंक्ड ट्री-इकॉनमी और डेटा-ड्राइवेन सर्वाइवल-रेट। यदि यह एजेंडा अनुशासन और सामाजिक भागीदारी के साथ आगे बढ़ता है, तो छत्तीसगढ़ न सिर्फ़ भारत, बल्कि दुनिया के लिए भी “ग्रामीण–वन–शहरी हरियाली के समन्वित मॉडल” का लिविंग लैब बन सकता है।

रजत जयंती पर छत्तीसगढ़ के लिए कहा जा सकता है—छत्तीसगढ़ में साय सरकार के सुशासन में “हरियाली अभियान नहीं—आदत है; पेड़ कार्यक्रम नहीं—परिवार हैं और जंगल सीमा नहीं—जीवन का विस्तार हैं।”