डोनाल्‍ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया तो पीएम नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया. इसी बीच जर्मनी के प्रतिष्ठित अखबार फ्रैंकफर्टर आलगेमाइने साइटुंग (FAZ) ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है कि डोनाल्‍ड ट्रंप का फोन उठाने से पीएम नरेंद्र मोदी ने इंकार कर दिया है. अखबार के लिखा कि डोनाल्ड ट्रंप अब तक टैरिफ विवाद में अपने सभी विरोधियों को हरा चुके हैं, लेकिन भारत के मामले में उनकी रणनीति उतनी कारगर साबित नहीं हो रही. रिपोर्ट की हेडलाइन थी, “Trump calls, but Modi doesn’t answer” यानी “ट्रंप कॉल करते हैं, मगर मोदी जवाब नहीं देते.”
पीएम मोदी को 4 बार किया कॉल.

जर्मनी के अखबार ने दावा किया कि डोनाल्‍ड ट्रंप की तरफ से बीते सप्‍ताह में चार बार पीएम नरेंद्र मोदी से बात करने की कोशिश की गई. हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कब और किन तारीखों पर यह कॉल की गई. इन रिपोर्ट पर भारत और अमेरिका की तरफ से कोई औपचारिक जवाब नहीं आया है. दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने बीते कुछ महीनों में चीन, कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर कड़े शुल्क लगाए थे. इन सभी देशों ने या तो समझौता कर लिया या आंशिक रूप से पीछे हट गए. लेकिन भारत ने अलग रुख अपनाया.

ट्रंप के दबाव में भारत झुकेगा नहीं

रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी दबाव के बावजूद आयात शुल्क घटाने या व्यापारिक रियायतें देने से साफ इनकार किया. FAZ लिखता है कि ट्रंप की शैली हमेशा टकराव की रही है. वे बार-बार बातचीत के बजाय धमकी या दबाव की भाषा इस्तेमाल करते हैं. अधिकतर देशों ने अमेरिकी दबाव को देखते हुए कोई न कोई रास्ता निकाल लिया. लेकिन भारत के मामले में कहानी अलग है. मोदी सरकार ने घरेलू उद्योग और किसानों के हितों को प्राथमिकता दी और ट्रंप के फोन कॉल और चेतावनियों को अनसुना कर दिया.

अमेरिका को भारत की जरूरत

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत की यह रणनीति दक्षिण एशिया में उसकी राजनीतिक मजबूती को भी दर्शाती है. पीएम मोदी जानते हैं कि अमेरिका को एशिया में चीन की चुनौती का सामना करने के लिए भारत की आवश्यकता है. इसलिए भारत व्यापारिक मोर्चे पर अमेरिकी शर्तें मानने के लिए बाध्य नहीं है. अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी सरकार का यह रुख वैश्विक राजनीति में एक नए आत्मविश्वास का प्रतीक है. भारत अब खुद को “विकसित देशों के दबाव में आने वाले” पारंपरिक दर्जे से बाहर निकाल चुका है. वह न केवल अमेरिका बल्कि यूरोपीय संघ और एशियाई देशों के साथ भी संतुलित और मजबूत साझेदारी कर रहा है.

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