वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के दोषी की 10 साल की सजा को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत की पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि यदि मैट्रिक का प्रमाण पत्र उपलब्ध और प्रामाणिक है, तो पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए इसे ही निर्णायक सबूत माना जाएगा। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने आपराधिक अपील को खारिज कर कहा कि पीड़िता की सुसंगत गवाही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी। चूंकि यह साबित हो गया था कि वह 18 साल से कम उम्र की थी, इसलिए इसलिए उसकी सहमति कानूनी रूप से निरर्थक थी।

मामले के आरोपी योगेश पटेल ने विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम), भानुप्रतापपुर, जिला उत्तर बस्तर कांकेर के 31 दिसंबर 2021 के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। इसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एन) के तहत दोषी ठहराया गया था और 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

मामले में 9 जून 2019 को पीड़िता ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी कि योगेश पटेल, जो उसके गांव का निवासी था, दो साल से उससे प्यार का इजहार कर शादी का वादा कर रहा था। फरवरी 2018 में शादी का झांसा देकर उसने अपने घर के पीछे एक नदी के पास ले जाकर जबरन दुष्कर्म किया। 5 जून 2019 को आरोपी ने उसे बताया कि उसका परिवार उनकी शादी के लिए सहमत नहीं होगा और सुझाव दिया कि वे एक साथ मर जाएं। वह उसे फिर से उसी स्थान पर ले गया और जबरन संबन्ध बनाए। पीड़िता ने परेशान होकर कीटनाशक का सेवन कर लिया और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। अपने माता-पिता द्वारा पूछताछ किए जाने पर, उसने पूरी आपबीती सुनाई। इस आधार पर आरोपी पर पॉक्सो सहित विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया।

पुलिस जांच में पीड़िता और आरोपी की मेडिकल जांच के साथ गवाहों के बयान दर्ज किए गए। उसकी उम्र सत्यापित करने के लिए पीड़िता के स्कूल रिकॉर्ड सहित अन्य दस्तावेज जब्त किए। अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि कानून और सबूतों के विपरीत थी। पीड़िता की उम्र और मेडिकल सबूतों से बलात्कार के आरोप साबित नहीं होते। पीड़िता की गवाही में विरोधाभास थे। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि पीड़िता और अपीलकर्ता लंबे समय से रिश्ते में थे। राज्य के वकील ने इन तर्कों का खंडन करते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान और दोनों ही स्पष्ट और सुसंगत थे। राज्य ने तर्क दिया कि निचले कोर्ट ने उपलब्ध सबूतों के आधार पर अपीलकर्ता को सही दोषी ठहराया था।

हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि दस्तावेजी सबूत निर्णायक थे। इसमें स्कूल प्रवेश रजिस्टर, कक्षा की प्रगति रिपोर्ट और हाई स्कूल की अंक-तालिका शामिल है। सभी में पीड़िता की जन्मतिथि 29 मई 2001 दर्ज है। इससे यह साबित होता है कि फरवरी 2018 में घटना की तारीख को उसकी की उम्र लगभग 16 साल 9 महीने थी। कोर्ट ने कहा- यह निर्णायक रूप से स्थापित हो गया कि घटना के समय पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की थी, इसलिए उसकी सहमति या असहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है। निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई अवैधता नहीं पाकर हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी और दोषसिद्धि व सजा को बरकरार रखा गया। जेल में बंद अपीलकर्ता को बाकी सजा काटनी होगी।