CG News: रायपुर/बिलासपुर. ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र बनाने में गड़बड़ी का मामला अब तूल पकड़ चुका है. तहसील कार्यालय में इस कथित धांधली की चर्चा जोरों पर है. सोमवार को इस प्रकरण से जुड़े छात्रों के परिजनों और उन कर्मचारियों, खासकर रीडर, जिन पर संलिप्तता के आरोप लग रहे हैं, का बयान अतिरिक्त तहसीलदार गरिमा ठाकुर के समक्ष दर्ज किया गया. लेकिन देर शाम तक तहसील कार्यालय के अधिकारी कर्मचारी इस फर्जीवाड़े के मामले में लीपापोती करने के लिए देर शाम तक मीटिंग करते रहे.
शुक्रवार को फर्जी ईडब्ल्यूएस की मदद से नीट यूजी में एडमिशन का मामला मीडिया में जमकर उछला. इसके बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया. लगातार दबाव के चलते प्रशासन ने मामले की जांच के लिए आवेदकों और कर्मचारियों का बयान दर्ज करने का निर्णय लिया. सोमवार को दोपहर तक सभी प्रभावित परिजन और संदेही कर्मचारी भी उपस्थित हुए. सभी का बारी-बारी बयान दर्ज किया गया. लेकिन शाम तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सका. मामले की पेचीदगी तब और बढ़ गई जब पता चला कि जिन छात्रों का प्रमाण पत्र जारी किया गया, वे सब नायब तहसीलदार प्रकृति ध्रुव के क्षेत्र के निवासी हैं. लेकिन आवेदन और प्रक्रिया का संचालन अतिरिक्त तहसीलदार गरिमा ठाकुर के रीडर के माध्यम से किया गया. यही कारण है कि संदेह की सुई सीधे तौर पर रीडर और कार्यालयीन तंत्र पर टिक गई है.


महज लापरवाही या संगठित नेटवर्क प्रशासनिक स्तर पर
अधिकारी इस मामले को संभालने में जुटे हैं. परिजनों का आरोप है कि असली दोषियों पर कार्रवाई करने की बजाय अधिकारी मामले को दबाने का प्रयास कर रहे हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि जांच आगे किस दिशा में बढ़ती है. क्या वास्तव में इस घोटाले के पीछे किसी संगठित नेटवर्क का हाथ है या यह महज लापरवाही का परिणाम है, जो भी इस विवाद ने तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है.
हमारा क्या दोष
भाव्या मिश्रा के पिता सूरज मिश्रा का कहना है कि मेरी बेटी का 490 स्कोर आया था, जिस पर उसे किसी भी सरकारी कॉलेज में प्रवेश मिल सकता था. अच्छे प्राइवेट कॉलेज में प्रवेश मिल सके इसलिए पात्रता के आधार पर ईडब्ल्यूएस बनवाने नायब तहसीलदार प्रकृत्ति ध्रुव के पास गए. उन्होंने आश्वासन दिया कि कोई दिक्कत नहीं होगी. गरिमा ठाकुर के रीडर के माध्यम से प्रक्रिया पूरी की गई और 16, 21 व 25 अगस्त को वेरीफिकेशन के लिए नायब तहसीलदार के सामने भी प्रस्तुत हुए. इसके बाद भी प्रमाण-पत्र फर्जी कैसे हो गया यह अधिकारी ही बताएं.
आवेदकों का कहना हमने कानूनी प्रक्रिया का पालन किया
आवेदकों का कहना है कि उन्होंने पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया. दस्तावेजों की जांच-पड़ताल के बाद नस्तीबद्ध प्रकरण ऑनलाइन दर्ज हुआ और प्रमाण पत्र का सीरियल क्रमांक भी आवंटित हो गया. उनकी दलील है कि जब सिस्टम ने खुद नंबर जनरेट कर दिया और दस्तावेजों की पुष्टि हो गई, तो उन्हें यह जानने या पूछने की आवश्यकता ही नहीं थी कि प्रमाण पत्र पर किस अधिकारी ने हस्ताक्षर या मुहर लगाई. अब सवाल यह उठ रहा है कि अगर पूरा ऑनलाइन सिस्टम सही था, तो गड़बड़ी कहां हुई? क्या किसी अधिकारी या कर्मचारी ने जानबूझकर हस्ताक्षर व सील का दुरुपयोग किया, या फिर पूरे तंत्र में कोई तकनीकी खामी है? इस पर अभी तक प्रशासन की ओर से स्पष्ट जवाब सामने नहीं आया है.
आउटसोर्सिंग से गोपनीयता भंग
तहसील कार्यालय में गोपनीय कार्यों के लिए दर्जनभर आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की सेवाएं ली जा रही हैं, जिससे गड़बड़ी की आशंका बढ़ जाती है. यही कारण है कि हाल ही में सामने आए ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट प्रकरण में भी संदेह की स्थिति बनी हुई है. रीडर प्रहलाद नेताम ने बताया कि उनके अलावा तहसीलदार के दफ्तर में अखिल त्रिवेदी और संदीप लोनिया भी काम करते हैं. सवाल उठ रहा है कि जब संवेदनशील और गोपनीय कार्य आउटसोर्सिंग कर्मचारियों से कराए जाएंगे, तो ऐसी घटनाएं होना लाजिमी है. इससे प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा
ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र प्रकरण में जिम्मेदारी तय करने की बजाय अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. मजे की बात यह है कि रीडर तहसीलदार पर आरोप मढ़ रहा है, तहसीलदार रीडर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और एसडीएम तहसीलदार पर सवाल उठा रहे हैं. वहीं आउटसोर्सिंग कर्मचारी भी खुद को निर्दोष बताते हुए अधिकारियों पर दोष डाल रहे हैं.