चंद्रकांत देवांगन, दुर्ग। भिलाई की चंद्रा-मौर्या टाकिज के सामने और फोरलेन सड़क किनारे निर्माणाधीन काम्पलेक्स पर एक बार ब्रेक लगने जा रहा है. अब कलेक्टर ने इसके आबंटन और निर्माण से जुड़े दशकों पुराने विवाद पर जांच के आदेश दे दिये हैं. भिलाई नगर निगम के वार्ड क्रमांक 12 के भाजपा पार्षद ने भवन अनुज्ञा समेत तमाम दस्तावेजों के आधार पर इसके निर्माण में गड़बड़ी का आरोप लगाया है वहीं एमआईसी मेंबर दीवाकर भारती ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर निगम में काबिज अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़े कर दिया है.

निर्माण नहीं होने पर फाइन के साथ पट्टा होना था निरस्त

तकरीबन 20 साल पहले साडा के कार्यकाल के दौरान इस भूखंड का आबंटन 4 अलग-अलग लोगों के नाम पर हुआ था, जिसमें विजय गुप्ता, शशि गुप्ता, यशबीर बंसल और मीरा बंसल शामिल हैं. आबंटित जमीन को लेकर साडा ने स्पष्ट रुप से अपनी शर्त में कहा था कि पट्टा प्रारंभ होने की तिथि से 2 वर्ष के भीतर व अधिकतम 4 वर्ष के अंदर भवन निर्माण पूर्ण कर लेना है. भवन पूर्ण नहीं होने की स्थिति में पट्टा निरस्त कर विशेष शुल्क, सेवा शुल्क सहित अन्य देय राशि आबंटी द्वारा वापस किये जाने का प्रावधान था.

ग्राम और नगर निवेश विभाग ने उठाए थे सवाल

लेकिन 2 से 4 वर्ष तो क्या 2 दशक भी बीतने को है और अब यह भवन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अधूरा खड़ा हो गया है. बीते 2 दशको में इस भवन के निर्माण के अनुज्ञा के लिए फाईलों ने हाई कोर्ट से लेकर मंत्रालय तक का सफ़र कई बार तय भी किया पर निर्माण के सम्बन्ध में कभी हरी झंडी नहीं मिली. इसकी वजह नगर तथा ग्राम निवेश विभाग द्वारा उक्त भूमि उद्यान, वृक्षारोपण एवं पार्किंग के लिए संरक्षित रखा गया था और इसी स्थान पर काम्लेक्स का निर्माण किया जाना था. वहीं हाइवे से उसकी दूरी का मापदंड भी यह काम्पलेक्स पूरा नहीं करता है.

आबंटन से जुड़े दस्तावेज और नस्तियां गायब

हालांकि कुछ समय पहले आबंटितों द्वारा जोर शोर से इसका निर्माण शुरु कराया गया था लेकिन इस सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि इस काम्पेल्क्स की जमीन के आबंटन से जुड़ी हुई फाइलें, दस्तावेज और नस्तियां गायब है. निगम अधिकारी दस्तावेजों के गायब होने पर कई बार आग लगने से जलने का हवाला देते हैं. लेकिन अधिकारियों से जब कुछ पन्ने सुरक्षित बचने पर सवाल पूछा जाता है तो अधिकारी बगलें ताकने लगते हैं.

भाजपा नेताओं के मुताबिक कुछ माह पहले निगम प्रशासन द्वारा आबंटियों को भवन अनुज्ञा प्रदान कर दी गई और आबंटियों ने दिन-रात एक कर चौबीसों घंटे काम करा कर महज दो माह के रिकॉर्ड समय में यहां तीन मंजिला भवन का निर्माण करा दिया.

वार्ड 12 के पार्षद भाजपा पार्षद भोजराम सिन्हा का कहना है 2014 में हाई कोर्ट के आदेश पर शासन के पत्र पर जाँच समिति गठित की गई थी, जिसमे निगम के अधिकारी व पार्षद दल ने जाँच कर रिपोर्ट दिया था कि उक्त भूमि पर्यावरण के लिए संरक्षित है और इसके आबंटन को ख़ारिज किया जाना चाहिए. भाजपा पार्षद ने मौजूदा निगम की सत्ता पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि भूमि के कब्जेदारों दवारा पुनः याचिका लगाई गयी जिसमें शासन ने आदेश दिया कि सामान्य सभा में अगर यह प्रस्ताव पारित होता है तो अनुमति प्रदान की जा सकती है पर आज तक किसी सामान्य सभा में चर्चा के बिना ही इसे कैसे हरी झंडी मिल गयी यह तो शोध का ही विषय है. करोडों की भूमि में इस तरह का आबंटन एक बड़े भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करता है जिसमे निगम के सत्ता पक्ष और बड़े अधिकारियों की भूमिका से इंकार भी नही किया जा सकता.

नियमों को ध्यान में रखकर दी अनुमति- महापौर

भिलाई नगर निगम से महज चंद दूरी पर स्थित इस विवादित काम्पलेक्स को लेकर जब निगम के महापौर देवेन्द्र यादव से सवाल किया गया कि जब पार्षद दल इसके निर्माण के विरोध में थे और बगैर सामान्य सभा में लाए कैसे इस बिल्डिंग के निर्माण के लिए अनुमति दे दी गई, जिस पर उन्होंने कहा, “जो परमिशन दी गयी है वो सम्बन्धित अधिकारियों ने नियमों को ध्यान में रखकर ही दिया होगा. वहीं कुछ चीजों में वक्त ज़रूर लगता है और नियमो को देखते हुए उसका निराकरण होना भी चाहिए. कमिश्नर स्तर के अधिकारी के पास इसका अधिकार होता है और उन्हें अपने अधिकारी पर पूरा विश्वास है.”

फाइल गायब होने की जानकारी नहीं

पर जब महापौर से संबंधित स्थान की फाईलो के दस्तावेज गायब होने की बात पूछी गयी तो उन्होंने इस बारे में जानकारी नहीं होने का का हवाला दिया. आपको बता दें महापौर जी को निगम की सत्ता पर काबिज हुए लगभग 4 साल हो गए हैं और निगम से कुछ ही दूरी पर स्थित उनके क्षेत्र के सबसे विवादस्पद काम्प्लेक्स के फाईलों की जनकारी तक उऩ्हें नहीं है जो कि बेहद अजीब इतेफाक है.

भवन अनुज्ञा प्रभारी एमआईसी मेंबर ने लगाई याचिका

भाजपा नेताओं के अलावा अब भिलाई नगर निगम के भवन अनुज्ञा प्रभारी दिवाकर भारती ने अनुमति दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. ऐसे में महापौर के कथनानुसार संबंधित अधिकारियों ने नियमतः परमिशन जारी किया है तो आखिर क्या आवश्यकता पड़ गई कि उनके ही एमआईसी सदस्य को निगम और महापौर के विरुद्ध मोर्चा खोलना पड़ गया है. दिवाकर भारती का कहना है कि मैने सार्वजनिक पार्किंग व ग्रीन बेल्ट की जमीन का गलत तरीके से आबंटन व बिल्डिंग परमिशन जारी करने पर याचिका लगाई है जिस पर हाई कोर्ट ने 3 सप्ताह के भीतर निगम व शासन से जवाब मांगा है.