चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने चीन को लेकर बड़ा बयान दिया है। जनरल अनिल चौहान ने शुक्रवार को कहा कि चीन भारत के लिए ‘सबसे बड़ी चुनौती’ है। चीन के साथ ये चुनौती आगे भी रहेगी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए यह बात कही।

पाकिस्तान को बताया दूसरी बड़ी चुनौती

सीडीएस ने पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए प्रॉक्सी वॉर को भारत के लिए ‘दूसरी बड़ी चुनौती’ बताया और कहा कि किसी देश के सामने चुनौतियां क्षणिक नहीं होतीं, बल्कि विभिन्न रूपों में मौजूद होती हैं।

चीन के साथ सीमा विवाद सबसे बड़ी चुनौती

जनरल अनिल चौहान ने कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि चीन के साथ सीमा विवाद भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और आगे भी रहेगी। दूसरी बड़ी चुनौती भारत के खिलाफ पाकिस्तान का छद्म युद्ध है, जिसमें ‘भारत को हजारों घाव देकर खून बहाने’ की रणनीति अपनाई गई है।’

क्षेत्रीय अस्थिरता भी चिंता का विषय

जनरल चौहान ने क्षेत्रीय अस्थिरता को भी चिंता का विषय बताया और कहा कि भारत के सभी पड़ोसी देश सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक अशांति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक और चुनौती यह है कि युद्ध के क्षेत्र बदल गए हैं – अब इसमें साइबर और अंतरिक्ष भी शामिल हैं।

दोनों प्रतिद्वंद्वी के पास परमाणु शक्तियां

सीडीएस ने कहा, ‘हमारे दोनों प्रतिद्वंद्वी (पाकिस्तान और चीन) परमाणु शक्तियां हैं और यह तय करना हमेशा एक चुनौती बनी रहेगी कि हम उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई करना चाहते हैं।’

बालाकोट के बाद भारत ने बदली वॉर स्ट्रैटेजी

जनरल अनिल चौहान ने कहा, ‘बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने सबक सीखा. भारत ने लंबी दूरी के सटीक हमलों पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि पाकिस्तान ने संभवतः अपनी हवाई रक्षा पर जोर दिया. उरी आतंकी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक में हमने जमीन के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश कर आतंकी शिविरों को नष्ट किया था. पुलवामा के बाद हमने खैबर पख्तूनख्वा में टारगेट सेट करके हवाई हमले किए. जब पहलगाम आतंकी हमला हुआ, तब तक हमने अपनी सटीक हमले की क्षमता को बढ़ा लिया था.’

सीडीएस चौहान ने कहा, ‘हमने दुश्मन को चौंकाने और संयमित हमले की योजना बनाई थी और इसके लिए लोअर एयरस्पेस का इस्तेमाल करने की तैयारी की थी. लेकिन राजनीतिक नेतृत्व के साथ चर्चा में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि केवल ड्रोन और लॉइटरिंग म्यूनिशन हमारे राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा नहीं करेंगे. बहावलपुर और मुरिदके स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट करने के लिए हवाई हमले आवश्यक थे और इसके लिए राजनीतिक समर्थन और विवेक जरूरी थे. ऑपरेशन सिंदूर में हमें दोनों मिले, और संदेश स्पष्ट था… आतंकी शिविरों को नष्ट करो, लेकिन केवल तभी जवाबी कार्रवाई करो जब हमारी सेनाओं पर हमला हो.’

उन्होंने कहा, ‘जर्मनी के एक प्रसिद्ध राजनीतिक वैज्ञानिक ने कहा था कि युद्ध राजनीति का विस्तार है. युद्ध और भू-राजनीति को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता. युद्ध राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने का माध्यम है. लोकतंत्र में सेनाएं राजनीतिक नेतृत्व के अधीन काम करती हैं. जब सरकार मानती है कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए बल प्रयोग जरूरी है, तो मेरे जैसे सैन्य अधिकारी के दो कर्तव्य हैं: सरकार को बल प्रयोग के लिए अधिक विकल्प देना और सरकार का अपनी सेना पर भरोसा बढ़ाना ताकि वह बड़े निर्णय ले सके. आप सभी गलवान और बालाकोट हवाई हमलों से वाकिफ हैं- इनके बाद सरकार ने सेनाओं के लिए जरूरी उपकरणों की आपातकालीन खरीद की अनुमति दी थी.’

CDS चौहान ने गिनाए चार बड़े राष्ट्रीय खतरे

भारत के सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा एक व्यापक और महत्वपूर्ण विषय है. अलग-अलग क्षेत्रों के लोग इसे अलग-अलग तरीके से देखते हैं- एक राजदूत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों पर ध्यान देता है, एक अर्थशास्त्री आर्थिक पहलुओं पर. मैं 44 साल से यह वर्दी पहन रहा हूं, और मेरा दृष्टिकोण अलग है. भारत के सबसे प्रसिद्ध यथार्थवादी रणनीतिक विचारक, आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र में चार प्रकार के राष्ट्रीय खतरों का वर्णन किया है: आंतरिक खतरे, शत्रु राष्ट्रों से बाहरी खतरे, बाहरी लोगों द्वारा समर्थित आंतरिक खतरे, और आंतरिक लोगों द्वारा समर्थित बाहरी खतरे. यह दर्शाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा आंतरिक और बाहरी दोनों खतरों के खिलाफ महत्वपूर्ण है.’

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