रविंद्र कुमार भारद्वाज, रायबरेली. रायबरेली, जो कभी कांग्रेस और गांधी परिवार का अडिग गढ़ माना जाता था, अब पार्टी की आंतरिक गुटबाजी और जातिवादी नेताओं के दबदबे की वजह से चर्चा में है. कांग्रेस के कुछ प्रभावशाली चेहरे, जिनमें किशोरी लाल शर्मा जैसे नाम प्रमुख हैं, जो गांधी परिवार को आम जनता और जमीनी कार्यकर्ताओं से दूर रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इस स्थिति ने न सिर्फ कांग्रेस की जड़ों को कमजोर किया है, बल्कि रायबरेली की जनता में भी असंतोष को जन्म दिया है.
गांधी परिवार से दूरी का आरोप
स्थानीय लोगों और कांग्रेस के जमीनी नेताओं का कहना है कि जब भी जनता अपने सांसद राहुल गांधी या पूर्व सांसद सोनिया गांधी से मिलने की कोशिश करती है, तो कुछ खास चेहरे उनके बीच आड़े आ जाते हैं. इनमें किशोरी लाल शर्मा, जिन्हें गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. आरोप है कि ये नेता “बाज की तरह नजर जमाए” रहते हैं और जनता को गांधी परिवार से अकेले में मिलने का मौका नहीं देते. एक स्थानीय कार्यकर्ता कहते हैं, हम अपनी समस्याएं सीधे राहुल गांधी तक पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन ये लोग हमें पास ही नहीं भटकने देते. दो मिनट अकेले में बात करने का मौका भी नहीं मिलता. लोगों का कहना है कि ये जातिवादी और चाटुकार नेता न सिर्फ जनता को दूर रखते हैं, बल्कि कांग्रेस के अंदर भी गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे हैं. इससे जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है और वे अपनी बात ऊपर तक नहीं पहुंचा पा रहे.
एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, अमेठी के सांसद का रायबरेली में क्या काम? वह यहां आकर राहुल गांधी से जनता को मिलने से रोकते हैं. क्या यह भाजपा की साजिश का हिस्सा है?
कांग्रेस की कमजोर होती जमीन
कांग्रेस की इस आंतरिक कलह का असर पिछले चुनावों में साफ दिखा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली जिले की 6 में से चार सीटें समाजवादी पार्टी ने जीतीं, जबकि भाजपा को दो सीटों पर संतोष करना पड़ा. कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि उसके प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा सके. जानकारों का कहना है कि जातिवादी नेताओं और चाटुकारों के चलते पार्टी को मजबूत उम्मीदवार नहीं मिले. हालात इतने बिगड़ गए कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को रायबरेली से जीत के लिए सपा की “साइकिल” का सहारा लेना पड़ा. एक पुराने कांग्रेस कार्यकर्ता कहते हैं, “जो लोग गांधी परिवार को घेरे हुए हैं, वे पार्टी को कमजोर कर रहे हैं. इनके रहते न जनता की सुनवाई हो रही है, न ही संगठन मजबूत हो पा रहा है.
रायबरेली की जनता में भी इन हालात को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. एक स्थानीय दुकानदार कहते हैं, हम अपने सांसद से अपनी बात कहना चाहते हैं, लेकिन हर बार कोई न कोई दरबारी बीच में आ जाता है. क्या हमें वोट देने का यही इनाम मिलेगा? लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि अगर गांधी परिवार तक उनकी पहुंच नहीं होगी, तो फिर वे अपनी समस्याएं किसके सामने रखें.
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