प्रमोद कुमार/ कैमूर। जिले के पहाड़ी क्षेत्र के आदिवासी और जनजाति समुदाय ने अपने ज्वलंत मुद्दों को लेकर भभुआ स्थित समाहरणालय के पास अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। यह प्रदर्शन आदिवासी और वनवासी समुदाय के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले सरकार के फैसलों के खिलाफ है। धरने के दौरान सैकड़ों आदिवासी पुरुष और महिलाएं सड़क पर उतरे और प्रशासनिक भवन के पास अपनी मांगों को लेकर आवाज उठाई।
सड़क पर जाम, प्रशासनिक तंत्र हिल गया
धरने में शामिल आदिवासी समुदाय के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में भाग लिया कि समाहरणालय के पास की मुख्य सड़क जाम हो गई। इससे यातायात ठप हो गया और अधिकारियों को दूसरे रास्तों से आना-जाना पड़ा। इस दौरान धरने में आठ प्रमुख मांगों को उठाया गया जिसमें शिक्षा, जाति प्रमाण पत्र आदिवासी अधिकार और संस्कृति की रक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल थे।
आठ सूत्री मांगों की सूची
धरने में आदिवासी समुदाय ने कई महत्वपूर्ण मांगें सरकार से की हैं, जिनमें प्रमुख हैं।
- देवरी विद्यालय के निष्कासित छात्रों को पुनः विद्यालय में प्रवेश देना।
- आदिवासी राजकीय अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय के नाम को फिर से बदलकर आदिवासी पहचान के अनुसार रखना।
- खरवार जाति के प्रमाण पत्र बिना खतियान के निर्गत न करने की मांग।
- छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 को फिर से लागू किया जाए।
- वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने की मांग।
- अनुसूचित जनजाति आयोग में गैर आदिवासियों को नियुक्ति की प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग।
- जिला मुख्यालय में आदिवासी कल्याण छात्रावास का निर्माण।
- जनजाति प्रखंड अधौरा में जनजाति संस्कृति कला भवन का निर्माण।
शिकायत करने वाले छात्रों को निष्कासित करने का आरोप
आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया कि अधौरा प्रखंड के देवरी अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय में आदिवासी बच्चों ने जब वहां की मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली पानी और अन्य समस्याओं को लेकर शिकायत की तो प्रशासन ने तीन बच्चों को निष्कासित कर दिया। धरने में शामिल नेताओं ने इन छात्रों की बहाली की मांग की और कहा कि इन बच्चों का अधिकार छीनना पूरी तरह से गलत है।
सरकार के फैसले से आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में
आदिवासी समुदाय के नेताओं ने सरकार के हालिया फैसलों पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश से आदिवासियों के अस्तित्व पर संकट आ सकता है। 5 अगस्त 2025 को कार्मिक विभाग के मुख्य सचिव द्वारा दिए गए आदेश में कहा गया था कि खरवार जाति का जाति प्रमाण पत्र देने के लिए खतियान की जरूरत नहीं है। आदिवासी नेताओं का कहना है कि यह आदेश गलत है और इससे कई लोग फर्जी तरीके से जाति प्रमाण पत्र बनवाकर आदिवासियों की हक़दारी को दबा सकते हैं। वे मांग कर रहे हैं कि बिना खतियान के खरवार जाति का प्रमाण पत्र निर्गत न किया जाए।
वन अधिकार अधिनियम की अनुपालना की मांग
आंदोलनकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि कैमूर जिले में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत आज तक कोई भी कागजात जारी नहीं किए गए हैं। वे चाहते हैं कि इस कानून के तहत आदिवासियों को उनका अधिकार मिलने के लिए कागजात जल्द जारी किए जाएं ताकि उनके अस्तित्व की रक्षा हो सके।
अधिकार पूरी तरह से छीन लिया जा रहा
धरने में कई आदिवासी नेताओं ने नेतृत्व किया, जिनका कहना था कि आदिवासियों का अधिकार पूरी तरह से छीन लिया जा रहा है। वे सरकार से सीधे अपील कर रहे हैं कि उनके अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे। इस संघर्ष में आदिवासी समुदाय ने अपनी संस्कृति, पहचान और अधिकारों की रक्षा की जोरदार मांग की है।
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