आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। नक्सल आंदोलन की जड़ें 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव से जुड़ी हैं। यह आंदोलन किसान विद्रोह से जन्मा और चारु मजूमदार तथा कन्हाई चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में शुरू हुआ। शुरुआती दौर में आंदोलन खेतिहर मजदूरों और आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई तक सीमित था, लेकिन समय के साथ यह हथियारबंद संघर्ष में बदल गया।

बता दें कि 2004 में कई नक्सली गुटों के एकजुट होने के बाद CPI माओवादी का गठन हुआ और संगठन को संगठित रूप मिला। संगठन की कमान सबसे पहले गणपति के पास थी, इसके बाद महासचिव बने बसवराजु। अब बसवराजु की मौत के बाद तेलंगाना के करीमनगर निवासी देवजी को नया महासचिव चुना गया है।
देवजी का इतिहास और कुख्यात कांड
देवजी नक्सलियों के सैन्य विंग का अहम चेहरा हैं। उनका नाम कुख्यात ताड़मेटला कांड से जुड़ा है, जिसमें 2010 में 76 जवान शहीद हुए थे। तेलंगाना में सरेंडर हुए नक्सली कमलेश ने पुलिस को बताया कि पोलित ब्यूरो के छह सदस्यों ने देवजी को नया महासचिव मान लिया है।
देवजी को नया महासचिव चुनने वाले पोलित ब्यूरो के प्रमुख सदस्य
- गणपति – पूर्व महासचिव
- बसवराजु – पूर्व महासचिव, अबूझमाड़ एनकाउंटर में मारा गया
- देवजी – नया महासचिव, करीमनगर, तेलंगाना
- मल्ला राजी रेड्डी – तेलंगाना
- अभय – केंद्रीय प्रवक्ता, तेलंगाना
- मिसिर मिश्रा – झारखंड
ध्यान देने वाली बात यह है कि छह में से चार सदस्य तेलंगाना के करीमनगर इलाके से हैं, जो दक्षिण भारत में नक्सलियों की मजबूत पकड़ को दर्शाता है।
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी
छत्तीसगढ़ के सुकमा इलाके में सक्रिय कुख्यात नक्सली हिड़मा को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZC) की जिम्मेदारी दी गई है। हिड़मा कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता है। हालांकि नक्सलियों ने इस बात की आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की है।
नई रणनीति: हथियार और भर्ती पर फोकस
सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि देवजी के महासचिव बनने के बाद नक्सल संगठन अपनी हथियारों की कमी को पूरा करने और नए कैडर की भर्ती तेज करने की कोशिश करेगा। बीते दो सालों में सुरक्षा बलों ने बड़ी संख्या में आधुनिक हथियार जब्त किए हैं, जिससे संगठन कमजोर हुआ है। अब इसे फिर से ताकतवर बनाने की रणनीति बनाई जा रही है।
नक्सलियों की यह नई रणनीति और नेतृत्व परिवर्तन संगठन की दिशा, गतिविधियों और भविष्य के हमलों पर सीधे असर डाल सकता है। दक्षिण भारत में करीमनगर की पकड़ और छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र में सक्रियता सुरक्षा एजेंसियों के लिए लगातार चुनौती बने रहने वाली है।
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