दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल (LG) द्वारा जारी उस नोटिफिकेशन पर सवाल उठाए, जिसमें दिल्ली के सभी पुलिस स्टेशनों को पुलिसकर्मियों की गवाही और सबूत पेश करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग केंद्र के रूप में नामित किया गया है। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह व्यवस्था प्राइमा फेसी निष्पक्ष ट्रायल की अवधारणा से समझौता कर सकती है। बेंच में चीफ जस्टिस डी. के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला ने कहा कि LG को जगह तय करने का अधिकार है, लेकिन इस व्यवस्था के प्रभाव और न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं।

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दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस थानों में गवाही पर आपत्ति जताई

दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा कि आखिरकार पुलिस स्टेशन ही क्यों चुने गए। हाईकोर्ट ने कहा कि निष्पक्ष ट्रायल का अधिकार आर्टिकल 21 के तहत मिलता है। यदि पुलिसकर्मी अपने थानों से गवाही देंगे, तो इससे न केवल पारदर्शिता पर असर पड़ेगा, बल्कि आरोपी के अधिकार भी प्रभावित होंगे। इस मामले में वकील राजगारो ने उपराज्यपाल से जारी नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि यह प्रावधान अपराधिक ट्रायल की निष्पक्षता और तटस्थता को खत्म करता है।

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थानों से गवाही से ट्रायल में निष्पक्षता प्रभावित होने का खतरा

दिल्ली हाईकोर्ट में वकील ने दलील दी कि अधिसूचना आंशिक रूप से लागू भी हो चुकी है और समय-समय पर दिल्ली पुलिस इस संबंध में पत्र जारी करती रहती है। वकील ने कहा कि अगर पुलिसकर्मी थानों से गवाही देंगे और बाकी गवाह या आरोपी कोर्ट में पेश होंगे, तो यह बराबरी के अधिकार (आर्टिकल 14) का उल्लंघन होगा। याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि पुलिसकर्मी को थानों से गवाही देने की अनुमति मिलने पर वह क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान अनुचित लाभ ले सकते हैं। वकील ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि पुलिस से कोई कठिन सवाल पूछा जाए तो वह तकनीकी बहाना बनाकर वीडियो बंद कर सकते हैं।

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हाईकोर्ट ने गवाही के लिए तटस्थ जगह चुनने का दिया सुझाव 

दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा से कहा कि उनके अधिकारों पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन पुलिस स्टेशन जैसी जगह क्यों चुनी गई। बेंच ने कहा कि राज्य ही अभियोजन है और राज्य ही जांच एजेंसी, ऐसे में गवाही और बहस के दौरान निष्पक्षता बेहद जरूरी है।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रायल का मकसद आरोपी को निष्पक्ष मौका देना है, और पुलिस थानों से गवाही देने की व्यवस्था इस सिद्धांत को प्रभावित करती है। बेंच ने कहा कि सरकार चाहे तो गवाही के लिए किसी तटस्थ जगह को नामित कर सकती है, लेकिन पुलिस स्टेशन उचित विकल्प नहीं है।

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10 दिसंबर को इस मामले पर अहम सुनवाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी को यह अधिकार है कि वह देख सके और समझ सके कि उसके खिलाफ क्या सबूत पेश किए जा रहे हैं, ताकि उसे उचित मौका मिल सके। इस बीच, उपराज्यपाल (LG) की तरफ से पेश वकील एएसजी चेतन शर्मा ने कोर्ट से कहा कि वे मामले की अगली सुनवाई पर अपना जवाब दाखिल करेंगे। हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को निर्धारित की है।

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