सत्या राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग का गजब कारनामा सामने आया है। प्रदेश में संचालित पूर्व-प्राथमिक स्कूलों (प्ले स्कूल, किड स्कूल) की जानकारी लोक शिक्षण संचालनालय के पास उपलब्ध नहीं है। कितने स्कूल संचालित हैं, यह भी प्रशासन के पास नहीं है।

इस संबंध में लोक शिक्षण संचालनालय ने सभी संयुक्त संचालकों को पत्र जारी किया है। पत्र में कहा गया है कि महाधिवक्ता कार्यालय, बिलासपुर से PIL के निर्देशानुसार, ऐसे स्कूलों की जानकारी तीन दिन के भीतर साफ्ट और हार्ड कॉपी दोनों रूप में संलग्न प्रपत्र में उपलब्ध करायें। जानकारी संकुल समन्वयको के माध्यम से संकलित किया जाना है जिससे ऐसी छोटी से छोटी शालाओं की जानकारी प्राप्त हो सके।

इस मामले पर याचिकाकर्ता विकास तिवारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य के लाखों गरीब, शोषित, आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए मुख्य न्यायाधीश का निर्देश वरदान साबित होगा। उनके निर्देशानुसार शिक्षा विभाग ने पत्र जारी किया है। अब गरीब बच्चों को उनका शिक्षा का अधिकार अधिनियम का हक मिलने वाला है।

विकास तिवारी

उन्होंने कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव, संचालक लोक शिक्षण संचालनालय, संयुक्त संचालक शिक्षा संभाग, जिला शिक्षा अधिकारियों और प्राइवेट स्कूल माफियाओं की मिली-भगत के कारण वर्ष 2011-12 से आरटीई के छात्रों का निःशुल्क शिक्षा का हक छीना जा रहा है। हाईकोर्ट में शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत कर बताया गया कि केवल संचालित नर्सरी शाला (प्री-प्राइमरी स्कूल) को आरटीई 2009 में मान्यता देने का कोई भी प्रावधान नहीं है जबकि सत्र 2012-13 में कृष्णा किड्स एकेडमी की केवल नर्सरी शालाओं के आठ स्कूलों को मान्यता दी गई थी, जिनमें से छह स्कूलों में आरटीई के छात्रों का एडमिशन भी हुआ था।

विकास तिवारी ने कहा कि प्रदेश के प्राइवेट स्कूल माफिया और शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से आरटीई की एंट्री क्लास जो कक्षा नर्सरी है, जिसमें कुल भर्ती के 25% गरीब, वंचित छात्रों का निःशुल्क प्रवेश देना था, उन्हें केवल नर्सरी शाला बनाकर कुछ भर्ती में प्रति छात्र साठ हज़ार रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक फीस वसूली जा रही है। प्रदेश में आरटीई के छात्रों की भर्ती कुल 25% होनी थी, वह केवल 10-12% मात्र ही है।