आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। अक्सर हम सुनते हैं कि शासकीय कर्मचारी अपने कर्तव्यों का सही ढंग से निर्वहन नहीं करते. बारिश हो जाए तो कई जगह शिक्षक स्कूल तक जाना ही छोड़ देते हैं. लेकिन बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के तुड़का गांव की शिक्षा दूत गौतमी एक मिसाल ऐसी है, जो सचमुच प्रेरणा देती है.

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तोड़ा पारा कोरचूली प्राथमिक शाला में पढ़ाने वाली शिक्षा दूत गौतमी हेमला रोजाना जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचती हैं. गांव में नाले पर पक्का पुल नहीं है, ऐसे में बारिश के दिनों में लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर लोग गुजरते हैं. इसी खतरनाक पुल को पार कर गौतमी हर दिन 8 किलोमीटर पैदल चलकर बच्चों तक शिक्षा पहुंचाती हैं.

गौतमी बताती हैं कि वे सुबह 8.30 बजे घर से निकलती हैं, और करीब 10 बजे तक स्कूल पहुंच जाती हैं. आज उनके स्कूल में 82 बच्चे पढ़ रहे हैं, और बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि लगातार बढ़ रही है. लेकिन यह संघर्ष केवल रास्ते तक सीमित नहीं है.

गौतमी को हर महीने 12,500 रुपए वेतन तय है, मगर हाथ में केवल 10 हजार ही मिलते हैं. जबकि उनसे 12,500 की सैलरी शीट पर साइन कराया जाता है. गौतमी की मांग है कि शिक्षा दूतों को भी सहायक शिक्षक का दर्जा दिया जाए और वेतन की अनियमितता खत्म हो.

बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित इलाके में शिक्षा दूतों की हत्या की घटनाएं आम हैं. इस खतरे को गौतमी भी स्वीकारती हैं. उनका कहना है कि डर हमेशा बना रहता है, लेकिन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उस डर से कहीं बड़ी है. सुबह 8 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर बच्चों तक ज्ञान पहुंचाना और फिर शाम को उतना ही पैदल चलकर घर लौटना.