विक्रम मिश्र, लखनऊ। उत्तर प्रदेश का लोक निर्माण विभाग (PWD), जो जनता की सुविधाओं और विकास कार्यों के लिए जाना जाता है, इन दिनों अपने ही अधिकारियों की करतूतों से शर्मसार है। 39वें वृत के अधीक्षण अभियन्ता चक्रेश केन पर लगे आरोप विभाग की छवि को धूमिल कर रहे हैं। कर्मचारियों से लेकर ठेकेदार तक, हर कोई उनके अशिष्ट व्यवहार और भ्रष्ट रवैये से परेशान है।

कमीशनखोरी उनकी पुरानी आदत

चक्रेश केन पर गंभीर आरोप हैं कि वे जानबूझकर फाइलों को रोकते हैं, अनावश्यक अड़ंगे डालते हैं और बिना मोटी रकम लिए किसी भी कार्य को आगे नहीं बढ़ाते। यही नहीं, अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार इतना अपमानजनक है कि वे खुलेआम गाली-गलौज करने से भी पीछे नहीं हटते। ठेकेदारों को धमकाना और उन्हें कमीशनखोरी के जाल में फंसाना उनकी पुरानी आदत बताई जाती है।

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ईमानदार ठेकेदार हाशिये पर

विभागीय सूत्रों का कहना है कि निर्माण कार्यों की स्वीकृति से लेकर बिल भुगतान तक हर स्तर पर ‘कमीशन का खेल’ खुलेआम चलता है। ठेकेदारों को साफ संदेश दिया जाता है कि यदि काम करवाना है तो जेब ढीली करनी होगी। इस वजह से ईमानदारी से काम करने वाले ठेकेदार हाशिये पर धकेल दिए जाते हैं, जबकि चापलूस और पैसे देने वाले ठेकेदारों की बल्ले-बल्ले रहती है। जनता और विभाग के भीतर की आवाज़ है कि चक्रेश केन ने अपनी कार्यशैली से न केवल विभाग को बदनाम किया है, बल्कि शासन-प्रशासन की साख को भी चोट पहुंचाई है। जिस अधिकारी को अनुशासन और मर्यादा का प्रतीक होना चाहिए। वही अधिकारी आज ‘भ्रष्टाचार और गंदगी का चेहरा’ बन चुका है।

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शासन स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई

कर्मचारियों का कहना है कि उनके व्यवहार में इतनी अभद्रता है कि कई बार लोग मजबूरी में उनके सामने चुप रह जाते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ बोलना मतलब ट्रांसफर, प्रताड़ना या कार्य रोक देना। यह डर और दबाव का वातावरण पूरे विभाग में फैला हुआ है। हालांकि, लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार और अभद्रता की शिकायतों के बाद भी अब तक शासन स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इससे कर्मचारियों और ठेकेदारों में भारी आक्रोश है। जनमानस भी सवाल उठा रहा है कि जब अधिकारी ही नियमों को ताक पर रखेंगे और अपनी गंदगी में लिपटे रहेंगे तो विकास कार्यों की गुणवत्ता और पारदर्शिता कैसे बरकरार रह पाएगी?

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लोक निर्माण विभाग के उच्चाधिकारियों पर अब यह जिम्मेदारी है कि वे ऐसे भ्रष्ट और अशिष्ट अधिकारी पर त्वरित और कठोर कार्रवाई करें। अन्यथा यह मामला केवल विभाग की ही नहीं बल्कि पूरी शासन व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करेगा।