रायपुर. इमरजेंसी वार्ड में अचानक सीने में दर्द से तड़पता मरीज आता है. डॉक्टर ईसीजी मशीन जोड़ते हैं और टैबलेट पर एक वेबपेज खोलते हैं. महज 60 सेकंड बाद स्क्रीन चमक उठती है-‘हार्ट अटैक का खतरा है, तुरंत ये दवा दें.’ यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म का सीन नहीं, बल्कि रायपुर एम्स की नई मेडिकल क्रांति है. (heart attack detection using ai)

एम्स के ट्रॉमा-इमरजेंसी विभाग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित इंटेलिजेंट इमरजेंसी केयर सिस्टम (आईईसीएस) तैयार किया है, जो मिनट भर में मरीज के हार्ट रिस्क का पता लगा लेता है. एक साल में 20 हजार मरीजों पर ट्रायल में यह सिस्टम 90 फीसदी मामलों में बिल्कुल सटीक साबित हुआ है. इस सिस्टम की महज 1 से 2 मिनट में यह पता लगाना संभव हो गया है कि अस्पताल में आये मरीज के सीने में हो रहे दर्द का जोखिम कितना है और उसके लिए कौन सी दवा उपयुक्त रहेगी. (heart attack detection using ai)

28 साल का मरीज भी आया सामने

इस ट्रायल में सबसे कम उम्र का मरीज सिर्फ 28 साल का निकला. आंकड़े बताते हैं कि 20 हजार मरीजों में से 60 फीसदी 28 से 35 साल के युवा थे. एम्स के एक कार्डियोलॉजिस्ट के मुताबिक- ‘यह एक अलार्म है. दिल की बीमारियां अब बूढ़े नहीं, बल्कि युवाओं को तेजी से जकड़ रही हैं. समाज को जागरूक होना ही पड़ेगा.’

इस सिस्टम से इलाज के तरीकों में आएंगे बड़े बदलाव

  • तेज इलाज इमरजेंसी में मिनटों में मरीज का रिस्क पकड़ कर गोल्डन आवर में जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी.
  • गांव-गांव सुविधा – सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के डॉक्टर भी सीधे एम्स के विशेषज्ञों से जुड़ सकेंगे.
  • डिजिटल कार्डियोलॉजिस्ट मौके पर स्पेशलिस्ट न होने पर भी सही दवा और प्राथमिक इलाज तय हो जाएगा.
  • युवाओं को चेतावनी 28-35 साल के मरीजों में बढ़ते हार्ट अटैक के खतरे को जल्दी पहचानकर रोकथाम संभव होगी.
  • टेक्नोलॉजी पर भरोसा आईआईटी और केंद्र सरकार की निगरानी से सिस्टम लगातार अपडेट होता रहेगा.

गांव-गांव पहुंचेगा ‘डिजिटल कार्डियोलॉजिस्ट’

एम्स के डॉक्टर बताते हैं- ‘हम इस सिस्टम को और बेहतर करने के बाद छत्तीसगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक ले जाने की तैयारी कर रहे हैं. वहां का डॉक्टर लॉगिन करेगा और सीधे एम्स रायपुर के 10 विशेषज्ञों से जुड़ जाएगा. ईसीजी रिपोर्ट और वीडियो कॉलिंग के जरिये सिस्टम मरीज का रिस्क बताएगा और तुरंत दवा तय हो जाएगी.’ इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि गांव में बैठे मरीज को भी डिजिटल कार्डियोलॉजिस्ट की सुविधा मिल जाएगी. इससे हार्ट अटैक के शुरुआती दौर में ही मरीज की जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी. (ai heart attack detection)

ऐसे करता है काम

मरीज का ईसीजी, ब्लड प्रेशर और पल्स रेट तुरंत सिस्टम में डाला जाता है. डॉक्टर को मरीज के लक्षणों से संबंधित करीब 10 सवालों के जवाब दर्ज करने होते हैं. इसके बद सिस्टम रिस्क फैक्टर की रिपोर्ट निकाल देता है और इलाज का अगला कदम तय हो जाता है. जब मौके पर कार्डियोलॉजिस्ट मौजूद नहीं होता, तब यह तकनीक जीवनरक्षक साबित होती है.