देश के लिए अपनी जान जोखिम में डालने वाले सैनिक को आखिरकार 24 साल बाद न्याय मिला। दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi HighCourt) ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पूर्व डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल अश्वनी कुमार शर्मा को विकलांगता मुआवजा देने का आदेश केंद्र सरकार को दिया है। अश्वनी कुमार शर्मा 2001 में जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी के दौरान आईईडी ब्लास्ट की चपेट में आए थे। इस हादसे के कारण उनकी 42 प्रतिशत सुनने की क्षमता हमेशा के लिए चली गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि अश्वनी कुमार शर्मा को उचित विकलांगता मुआवजा तुरंत दिया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि सैनिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का सम्मान करना सरकार की अनिवार्य जिम्मेदारी है।

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 सुनवाई के दौरान जस्टिस हरिशंकर और जस्टिस ओमप्रकाश शुक्ला की बेंच ने कहा कि अधिकारियों को शर्म आनी चाहिए कि एक युद्ध सैनिक को अपना हक पाने के लिए बार-बार गुहार लगानी पड़ी। अदालत ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह अपने अधिकारों के लिए भी भिक्षा मांगता रहे। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह अधिकारियों का कर्तव्य था कि सैनिक को स्वतः उसका हक दिया जाता।

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‘2017 से दिया जाए मुआवजा वो भी 9 % के साथ’

दिल्ली हाईकोर्ट ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पूर्व डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल अश्वनी कुमार शर्मा को विकलांगता मुआवजा देने का आदेश देते हुए यह स्पष्ट किया कि मुआवजा 27 सितंबर 2017 की सूटेबिलिटी सर्टिफिकेट की तारीख से दिया जाएगा और उस पर सालाना 9 प्रतिशत ब्याज भी जोड़ा जाएगा। अदालत ने कहा कि यदि ब्याज नहीं दिया गया होता, तो वह अधिकारियों पर दंडात्मक हर्जाना भी लगा सकती थी।

इंसाफ के लिए 24 साल का लंबा इंतजार

अश्वनी कुमार शर्मा 2001 में जम्मू-कश्मीर में ड्यूटी के दौरान आईईडी ब्लास्ट की चपेट में आए थे, जिससे उनकी 42 प्रतिशत सुनने की क्षमता हमेशा के लिए चली गई। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि उन्हें तुरंत मुआवजा और ब्याज दिया जाए। अदालत ने कहा कि एक युद्ध सैनिक को अपने हक के लिए 24 साल इंतजार करना न केवल अन्याय है, बल्कि यह अधिकारियों की गंभीर असंवेदनशीलता को भी दर्शाता है।

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दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा, “हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि एक ऐसा योद्धा जिसने देश की सेवा में सुनने की क्षमता खो दी, उसे 24 साल बाद भी अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ा।” अदालत ने यह भी कहा कि यह सोचने का विषय है कि जब सर्वोच्च अधिकारी भी मुआवजे की सिफारिश कर रहे थे, तब भी उसके अधिकार की अनदेखी क्यों की गई।

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