शशांक द्विवेदी, खजुराहो। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक संस्कार किये जाते हैं, यदि किसी कुत्ते के जन्म से लेकर मृत्यु तक एक मनुष्य की तरह सारे संस्कार किये गए, आपको यह सुनकर भले ही अचंभित लगे लेकिन यह सत्य है और राजनगर तहसील के पिपट गांव में ऐसा कुछ देखने को मिला।

मनुष्य की तरह परिवार कर रहा सारे संस्कार 

जब एक परिवार में नवजात शिशु का जन्म होता है, तो जन्म के साथ चौक से लेकर मुंडन संस्कार, वहीँ मृत्यु उपरान्त भी अंतिम संस्कार की जो रीति होती है जो पंडित के बताये अनुसार किया जाता है, और 13 वें दिन तेरहवीं की जाती है। लेकिन यदि कुत्ते का भी जन्म से लेकर मृत्यु तक एक मनुष्य की तरह सारे संस्कार किये जाए तो सुनने में आपको आश्चर्य तो लगेगा लेकिन सत्य है। थाना राजनगर क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पिपट में  ऐसा कुछ देखने को मिला है, जहां के रामसजीवन पटेरिया उर्फ़ सद्दू महाराज के परिवार में  उनके साथ एक पालतू कुत्ता जिसका नाम तिलकधारी था, जिसकी जन्म से मृत्यु तक की कहानी बड़ी रोचक है। 

रोचक है तिलकधारी की कहानी 

ग्राम पिपट के रामसजीवन पटेरिया उर्फ़ सद्दू महाराज ने 10 वर्ष पूर्व एक देशी फीमेल डॉग जिसका नाम रामकली था, उसने प्रसव दौरान बच्चों को जन्म तो दिया, लेकिन जन्म देने के बाद रामकली की मृत्यु हो गई, तथा बच्चों में केवल एक मेल डॉग जीवित बचा बाकि सभी बच्चे खत्म हो गए। उस जीवित एक कुत्ते को पिपट ग्राम के सद्दू महाराज ने उसे पाल लिया था। जिसका नामकरण भी एक मनुष्य के बच्चे की तरह किया गया था और कुत्ते को तिलकधारी नाम दिया गया।  

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नामकरण संस्कार के बाद तिलकधारी का भव्य चौक किया गया, जिसमें ग्राम पंचायत क्षेत्र के लगभग 5 हजार लोगों को खाना पीना, नाच गाना, हर्ष उल्लास, बैंड बाजा एक सामान्य मनुष्य के बच्चे की तरह ही हर्षोल्लास के द्वारा मनाया गया। आज 10 वर्षों पश्चात  वही पालतू कुत्ता तिलकधारी कुछ दिन बीमार होने के बाद शुक्रवार को अपनी अंतिम सांस ली।  

सद्दू महाराज ने बताया कि जिस तरह से कुत्ते का विधिवत तरीके से हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम विदाई दी गयी है, उसी तरह से प्रयागराज में जाकर बकायदा अस्थि विषर्जन किया जाएगा। वहीं 1 अक्टूबर को तिलक की तेरहवीं गांव में की जाएगी, जिसमें गांव के सभी पशु पक्षियों को भोजन कराया जायेगा।

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