वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के बजाय राज्य सरकार द्वारा पुराने नियमों के तहत दिव्यांगजनों को आरक्षण देने के निर्णय को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याचिका दायर करने वाले डॉ. रितेश तिवारी, जो दोनों पैरों से दिव्यांग हैं, आयुर्वेद स्नातक हैं और बीएल कैटेगरी में सरकारी नौकरी के लिए पात्र हैं। याचिका में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 1995 के अधिनियम के तहत केवल तीन कैटेगरी और पांच प्रकार की दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को ही सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने कहा कि वर्ष 2016 में संसद द्वारा पारित दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। इस अधिनियम के तहत कुल 17 कैटेगरी की दिव्यांगताओं को आरक्षण का अधिकार दिया गया है। इनमें बहु विकलांगता, ऑटिज्म, मानसिक विकलांगता, एसिड अटैक विकलांगता, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, दृष्टिहीनता, बौनापन और अन्य शामिल हैं।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार केवल पुराने अधिनियम के अनुसार पांच प्रकार की दिव्यांगता वाले लोगों को ही आरक्षण का लाभ दे रही है, जो कि संसद द्वारा पारित कानून का उल्लंघन है। अदालत को बताया गया कि राज्य में दिव्यांगजनों के लिए कमेटी का गठन नहीं किया गया है, पद चिन्हांकित नहीं किए गए हैं और आयु सीमा में छूट भी नहीं दी जा रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला दिव्यांगजनों के संवैधानिक अधिकारों और उनके आरक्षण के हक़ को लेकर बड़ा मुद्दा बन सकता है। कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को अब चार सप्ताह के भीतर स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
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