नई दिल्ली. जिंदगी में कई बार ऐसे हालात आते हैं जब हमारी भावनाएं काबू से बाहर हो जाती हैं. गुस्से में कुछ कह देने का पछतावा हो या डर के कारण पीछे हटना, भावनाएं अक्सर फैसलों को प्रभावित करती हैं. ऐसे में इमोशनल इंटेलिजेंस यानी EQ (Emotional Quotient) बेहद अहम हो जाता है.

EQ का अर्थ है– अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानना, समझना और सही दिशा में इस्तेमाल करना. विशेषज्ञ मानते हैं कि तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ भावनाओं को संभालने की क्षमता ही असली सफलता की पहचान है.

क्यों जरूरी है EQ?

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक, जिन लोगों का EQ ज्यादा होता है, वे ज्यादा इनोवेटिव होते हैं, नौकरी से संतुष्ट रहते हैं और पर्सनल व प्रोफेशनल दोनों तरह के रिश्तों में बेहतर नतीजे हासिल करते हैं. EQ न सिर्फ रिश्ते बनाने और निभाने में मदद करता है बल्कि तनाव कम करने और मानसिक मजबूती देने में भी अहम भूमिका निभाता है.

कम EQ के नुकसान

  • गुस्से या डर में लिए गए फैसले गलत साबित हो सकते हैं.
  • आत्मविश्वास पर असर पड़ता है और बार-बार असफलता का डर सताता है.
  • स्ट्रेस और नींद की समस्या बढ़ जाती है.
  • रिश्तों में दरार आ सकती है और इंसान अकेलापन महसूस करता है.
  • टीमवर्क और लीडरशिप स्किल्स कमजोर हो जाती हैं, जिससे सफलता देर से मिलती है.

EQ के मुख्य कॉम्पोनेंट्स

  1. सेल्फ-अवेयरनेस – अपनी भावनाओं को पहचानना और उनके असर को समझना.
  2. सेल्फ-रेगुलेशन – गुस्से या तनाव के समय खुद को शांत रखना.
  3. सोशल अवेयरनेस – दूसरों की भावनाओं को समझना यानी इम्पैथी.
  4. सोशल स्किल्स – बेहतर संवाद, टीमवर्क और कॉन्फ्लिक्ट सॉल्विंग की क्षमता.

EQ कैसे बढ़ाएं?

  • अपनी भावनाओं को पहचानने और नाम देने की आदत डालें.
  • भरोसेमंद लोगों से फीडबैक लें.
  • किताबें पढ़ें और माइंडफुलनेस का अभ्यास करें.
  • इम्पैथी विकसित करें और दूसरों की स्थिति को समझने की कोशिश करें.
  • झगड़े की स्थिति में शांत रहकर समाधान खोजें.

प्रेरणादायी मिसाल

  • महात्मा गांधी – अहिंसा और सहानुभूति के जरिए नेतृत्व किया.
  • सुंदर पिचाई – गूगल के CEO, जो EQ की ताकत से टीम को जोड़कर रखते हैं.
  • जैसिंडा आर्डर्न – न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री, जिन्होंने संकट के समय धैर्य और सहानुभूति से देश को संभाला.