Shardiya Navratri 2025 : अमित पांडेय, डोंगरगढ़. डोंगरगढ़ के पहाड़ की चोटी पर विराजित माँ बम्लेश्वरी के मन्दिर में आज से शारदीय नवरात्र के पावन दिन की शुरुआत हो गई है. मंदिर के आंगन और मार्ग फूलों, रंगोली और दीपों से सज गए हैं, सुबह से ही भक्तों का ताँता लगा हुआ है और माँ बम्लेश्वरी के जयकारों की गूंज डोंगरगढ़ में गूंज रही है. इस बार भी नवरात्र के नौ दिनों के दौरान देश-प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु डोंगरगढ़ पहुँच रहे हैं ताकि वे माँ के दर्शनों के साथ अपनी मनोकामना भी पूरी कर पाएं. मंदिर प्रबंधन ने माता के नौ दिनों तक चलने वाली आराधना की परंपरागत सभी तैयारियाँ कर ली हैं, जबकि रेलवे और जिला प्रशासन ने यात्रा सुगमता और सुरक्षा को लेकर विशेष तैयारियाँ की हैं,भीड़ नियंत्रण के कड़े इंतज़ाम किए हैं. एक हज़ार पुलिस जवान व्यवस्था में तैनात किए गए हैं.

आराधना का ये नौ दिवसीय पर्व 22 सितंबर से 1 अक्टूबर 2025 तक चलेगा. इसके बाद 2 अक्टूबर 2025 को विजयदशमी मनाई जाएगी. डोंगरगढ़ स्थित माता बम्लेश्वरी के दोनों मन्दिर प्रांगण में एकम को घटस्थापना, अष्टमी को हवन और नवमी को विसर्जन किया जाएगा,इसके साथ ही नवरात्र भर माता के दरबार में चौबीस घंटे भक्तों का ताता रहेगा, इसलिए प्रशासन ने सभी व्यवस्था सुनिश्चित की है ताकि भारी भीड़ के बीच श्रद्धालु सुरक्षित रूप से दर्शन कर सकें. 

डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी मन्दिर की कहानी सदियों पुरानी है. मन्दिर पहाड़ की लगभग 1,600 फीट ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ तक पहुंचने के लिए लगभग 1,000 सीढ़ियाँ हैं; साथ ही रोपवे भी श्रद्धालुओं को चोटी तक पहुंचाता है. मन्दिर के इतिहास के बारे में स्थानीय परम्पराएँ और स्थानिक लेख बताते हैं कि यह स्थल प्राचीन काल से ही आस्था का केन्द्र रहा है, कुछ स्रोतों में इसकी उत्पत्ति लगभग 2,200 वर्ष पुरानी बताई जाती है. लोककथाओं के अनुसार यहाँ के राजाओं और साधुओं से जुड़ी कथाएँ प्रचलित रहीं; कहीं कहा जाता है कि राजा वीरसेन ने प्रतिज्ञा के बाद इस स्थान पर देवी की आराधना करायी, तो कुछ कहानियाँ विक्रमादित्य या पांडवों के संबंधों का स्मरण कराते हैं, हालांकि इन पुराणिक वर्णनों का ठोस पुरातात्विक साक्ष्य सीमित है.आज स्थानीय मंदिर ट्रस्ट और जिले की पर्यटन सूचनाएँ इसे क्षेत्रीय इतिहास एवं लोकश्रद्धा का महत्वपूर्ण केंद्र मानती हैं और नवरात्र के समय यहाँ लाखो श्रद्धालु भक्तों का आगमन होता है.

नवरात्र का आध्यात्मिक आयाम यहाँ की भीड़-रौनक से अलग, भीतर तक असर करता है. नवरात्र केवल नौ दिवसीय उत्सव नहीं, बल्कि माँ के नौ रूपों की आराधना और आत्मिक अनुशासन का समय है यह अज्ञान पर ज्ञान और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है. भक्त उपवास, कीर्तन और रात्रि-पूजा में शरीक होकर अपने मन की शांति और आशीर्वाद की कामना करते हैं. इस साल भी डोंगरगढ़ का मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं रहेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन और सांस्कृतिक जीवन का उत्सव बनकर उभरेगा.

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