अमित पांडेय, डोंगरगढ़। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ ब्लॉक में सागौन तस्करी का मामला अब गंभीर मोड़ लेता जा रहा है। उत्तर बोरतलाव वन परिक्षेत्र के ग्राम खरकाटोला में बीती रात वन विभाग ने दबिश देकर तीन तस्करों को सागौन की सिल्लियों और औजारों सहित पकड़ने का दावा किया था। मौके से एक चारपहिया वाहन भी पकड़ा गया। कार्रवाई शुरू में बड़ी उपलब्धि बताई गई, लेकिन अब विभाग पर ही सवालों का पहाड़ टूट पड़ा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि वन विभाग ने छोटे-मोटे तस्करों को पकड़कर सिर्फ दिखावा किया है, जबकि असली रसूखदार तस्करों पर कार्रवाई नहीं हुई। यही नहीं, तस्करी में उपयोग हुआ वाहन भी विभागीय कार्रवाई से बचा लिया गया। आरोप यह भी है कि इस पूरे मामले में लेन-देन कर बड़े नामों को बचाने की कवायद हुई है।

वन विभाग की एसडीओ पूर्णिमा राजपूत पहले भी विवादों में रही हैं। कुछ दिनों पहले हिरण का मांस बेचते चार आरोपी पकड़े गए थे, लेकिन तब भी आरोप लग रहे था कि उन्होंने दबाव और लेन-देन के जरिए कुछ रसूखदारों को बचा लिया। अब सागौन तस्करी प्रकरण में भी उन पर इसी तरह के आरोप लग रहे हैं। जब उनसे इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने व्यस्तता का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया।

मामले को लेकर जब डीएफओ आयुष जैन से बात की गई तो वे भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। उनकी चुप्पी ने विभाग की कार्यशैली पर और गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर किसके दबाव में बड़े तस्करों पर कार्रवाई नहीं हो रही? क्या वन विभाग वास्तव में तस्करों पर नकेल कसने के बजाय उन्हें संरक्षण दे रहा है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि वन संपदा की तस्करी महज आर्थिक अपराध नहीं बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता पर सीधा हमला है। सागौन जैसी बहुमूल्य लकड़ी की अवैध कटाई न केवल जंगलों को उजाड़ रही है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरा बन रही है। ऐसे में वन विभाग की ढील और कथित सौदेबाजी ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब मांग उठ रही है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच हो, ताकि यह साफ हो सके कि आखिर सागौन तस्करी के पीछे कौन-कौन से बड़े नाम सक्रिय हैं और क्या सचमुच वन विभाग उनकी ढाल बना हुआ है।