विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में चुनाव की बात करें तो एक खत्म नहीं होता कि दूसरे पर चर्चा होने लगती है. पंचायत चुनाव के खत्म होते ही अगले साल 2026 में राज्यसभा के चुनाव का समीकरण सेट करने की चुनौती आ जाएगी. ऐसे में भाजपा समेत अन्य दलों पर भी अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती रहने वाली है. हालांकि, भाजपा की सरकार केंद्र और यूपी में है तो पंचायत चुनाव में बढ़त में भाजपा ही रहने वाली है. लेकिन फिर भी भाजपा के साथ क्रॉस वोटिंग न हो और विपक्षियों के कुछ साथियों का वोट एनडीए समर्थित प्रत्याशी को मिल सके, इसकी जुगत में भाजपा काम करना शुरू कर दिया है. लेकिन भाजपा के साथ निषाद पार्टी और सुदेलदेव समाज पार्टी जैसे अनरिलायबल फ्रेंड भी है, जिनको लेकर भाजपा सशंकित रहती है.
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सियासी जानकारों की मानें तो बेहतर ऑफर और वाजिब सम्मान के लिए योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद और ओपी राजभर किसी भी दल के साथ गलबहियां कर सकते हैं. ऐसे में इनको साधे रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है. इसके अलावा अन्य पार्टियों के बागी नेताओं को अपने साथ जोड़ने की भी चुनौती भाजपा के लिए रहेगी, क्योंकि सपा से निष्काषित 4 विधायकों की बात करें तो इनके वोट के साथ कुछ निर्दलीयों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश भाजपा को परेशान करने वाली है.
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वहीं राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन में जातीय समीकरण का ध्यान तो रखा जाता है, लेकिन उसके साथ पार्टी कैडर बेस पर स्थानीय नेताओं को भी महत्व दिया जाता है. ऐसे में उनकी कुछ मांगों पर भी काम करने की चुनौती भाजपा के साथ रहने वाली है. मंत्रिमंडल विस्तार पर भी नजर रहने वाली है. भाजपा नेताओं के साथ अन्य दलों से निष्काषित नेताओं को भाजपा सरकार में मौका मिलने की उम्मीद है. ऐसे में अपेक्षा तो ये थी कि नवरात्र में योगी कैबिनेट का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन अभी ऐसा होता दिख नहीं रहा है. ऐसे में राज्यसभा से लेकर विधानसभा 2027 के समीकरण को साधना भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है.
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