अरे हां भइया गजब का सिस्टम है। रहे भी क्यों ना क्योंकि सिस्टम के पीछे भी कोई सिस्टम है। खैर छोड़िए कहां लगे हैं सिस्टम में। ये जानिए कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस के विकास पर विराम लगने जा रहा है, या ये कहिए कि लग ही चुका है! हां घोषणा नहीं हुई है, पर होने में देर भी नहीं है। सुनने में बहुत कुछ आते रहता है। चर्चा भी किसम-किसम की होते ही रहती है।
कहते रहते हैं सब सिस्टम है। सिस्टम से ही हो रहा है। अब चर्चा तो इस पर भी बड़े जोर से या कहिए कि शोर से है। जिला अध्यक्षों की सूची फाइनल है। लेकिन अनुमति मिल नहीं रही। दिल्ली तक दौड़ हो चुकी है, पर अब फैसला उस समिति के पास अटक गई है जहां समन्वय की गुंजाइश कम रहती है। ये और बात है कि नाम समन्वय समिति है।
लेकिन इस बीच एक खबर बड़ी पक्की आई है। प्रदेश भर के जिन दर्जनों अध्यक्षों को बदला जा रहा है उसमें राजधानी रायपुर पर सबकी निगाहें है। तरह-तरह के सवाल हो रहे है, नेता एक-दूसरे के बीच नब्ज टटोल रहे हैं। कुछ तो सीधे और खुलकर भी बोल रहे हैं। मंतू की तरह फिर से ऑडियों वार चल पड़ा है। सोशल मीडिया पर विपत्तिजनक या कहिए राजनीति के सम्मानजनक शब्दों के साथ पार्टी के नेता आपस में उलझ रहे हैं। कांग्रेस के चरण में महंत के पुजारी की भी विदाई तय है। और इस बीच वही विपत्तिजनक ऑडियों जारी हो रहा है।
चलिए आईए वपास राजधानी की ओर लौटिए। क्योंकि असल जिकर में तो रायपुर ही है। हो भी क्यों ना जब कांग्रेस के विकास पर विराम लगेगा तो पार्टी के भीतर नए कुर्सी पर काम कौन करेगा? इस सवाल का जबाव महापावर के फरिश्ते के बीच गठजोड़ से जो सिस्टम चल रहा है वहां मिल ही जाता है। क्योंकि स्वभाविक अनुमति के संग सहमति अंग्रेजी के पी अक्षर से जु़ड़े सीसी के जरिए मिली हुई है। और इस सहमति से ही पार्टी के भीतर संगठन प्रभारी के नाम जैसे वाले ही एक दुबे जी को रायपुर शहर के नए अध्यक्ष बनाया जा रहा है। जबकि ग्रामीण के लिए सिस्टम को सक्रिय करते हुए अब नारायण-नारायण की जगह राम के नाम का जप करा दिया गया है। हारे हुए राम तिल्दा के रास्ते जिला ग्रमीण अध्यक्ष का कमान संभालेंगे। लीजिए आप भी फोकटे-फोकट में सोच में पड़ गए। अरे भइया कहां लगे हैं…यही तो सिस्टम है। जो भी कहिए पर गजब का सिस्टम है।