Air Force Fighter Jet MIG-21 Retirement Video: भारतीय वायुसेना की ‘रीढ़’ और बाद में ‘उड़ता हुआ ताबूत’ कहा जाने वाला मिग-21 एयरक्राफ्ट रिटायर हो गया है। इंडियन एयर फोर्स में 62 साल सेवा देने के बाद आज (26 सितंबर) को रिटायर हुआ। आज (26 सितंबर) चंडीगढ़ एयरबेस पर फाइटर जेट को अंतिम विदाई दी गई। विदाई समारोह में एयरफोर्स चीफ एपी सिंह ने 23 स्क्वाड्रन के 6 जेट के साथ आखिरी उड़ान भरी। स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा ने भी फ्लाईपास्ट में हिस्सा लिया।

62 साल की सर्विस के दौरान सुपरसोनिक मिग-21 ने 1965 के भारत-पाक युद्ध, 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बता दें कि 1963 में एयरक्राफ्ट चंडीगढ़ में ही वायुसेना में शामिल हुआ था।

राजनाथ बोले-  मिग-21 कारगिल से ऑपरेशन सिंदूर तक साथी रहा

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, लंबे समय से मिग-21 अनेक वीरतापूर्ण कार्यों का साक्षी रहा है। इसका योगदान किसी एक घटना या किसी एक युद्ध तक सीमित नहीं रहा है। 1971 के युद्ध से लेकर कारगिल संघर्ष तक, या बालाकोट हवाई हमले से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, ऐसा कोई क्षण नहीं रहा जब मिग-21 ने हमारे सशस्त्र बलों को जबरदस्त ताकत प्रदान न की हो।

आपकी वीरता की जो यह यात्रा रही है इसमें मिग-21 का भी योगदान रहा है। आज हम सब इसको विदाई दे रहे हैं। मेरे मन में गौरव और कृतज्ञता की भावना भी है। हम एक ऐसे अध्याय को विदाई दे रहे हैं, जिससे काफी यादें जुड़ी हैं। यह एक मशीन भर नहीं है बल्कि भारत रूस की मित्रता की मिसाल है। मिग ने कई गौरव के पल जोड़े हैं। भारत में 850 मिग रहे हैं। अभी आप लोगों ने देखा कि फाइनल फ्लाई पास्ट को खुद लीड किया। यह उसके प्रति सम्मान दर्शाता है।

भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान

मिग-21 भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान था, जिसके पहले स्क्वाड्रन – चंडीगढ़ स्थित 28 स्क्वाड्रन – को “फर्स्ट सुपरसोनिक्स” उपनाम मिला था। इन वर्षों में, भारत ने विभिन्न प्रकारों के 700 से अधिक मिग-21 विमानों को शामिल किया है, जिनमें से कई हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा घरेलू स्तर पर निर्मित किए गए हैं।

मिग-21 ने कई बड़े युद्धों में हिस्सा लिया…

  • 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: मिग-21 ने पहली बार जंग में हिस्सा लिया. पाकिस्तानी विमानों को टक्कर दी।
  • 1971 का युद्ध: पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) की आजादी में मिग-21 ने अहम भूमिका निभाई। इसने पाकिस्तानी ठिकानों पर सटीक हमले किए।
  • 1999 का कारगिल युद्ध: रात में उड़ान भरकर दुश्मन की ताकत को तोड़ा। उस समय पायलट्स ने साधारण जीपीएस और स्टॉपवॉच के सहारे हमले किए।
  • 2019 का बालाकोट हमला: मिग-21 बाइसन ने पाकिस्तानी F-16 को मार गिराया. ग्रुप कैप्टन अभिनंदन वर्तमान ने मिग-21 उड़ाकर ये कारनामा किया।
  • 2025 का ऑपरेशन सिंदूर: पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में मिग-21 ने आखिरी बार हिस्सा लिया।

‘उड़ता ताबूत’ क्यों कहा गया?

मिग-21 का रिकॉर्ड शानदार रहा, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसके हादसों ने इसे बदनाम कर दिया। पिछले 60 सालों में 400 से ज्यादा मिग-21 क्रैश हुए, जिनमें 200 से ज्यादा पायलट्स की जान गई। 2010 के बाद भी 20 से ज्यादा विमान क्रैश हुए. इन हादसों की वजहें थीं…

  • पुराना डिजाइन: मिग-21 1950-60 के दशक का विमान है, जो आज की तकनीक के सामने पुराना पड़ गया।
  • रखरखाव की दिक्कत: पुराने पुर्जों और तकनीक की वजह से मेंटेनेंस मुश्किल था।
  • पायलट की गलती: कुछ हादसे पायलट्स की गलतियों या ट्रेनिंग की कमी से हुए।
  • बर्ड स्ट्राइक: पक्षियों से टकराने की घटनाएं भी हुईं।

म्यूजियम में रखे जा सकते हैं MIG-21

कुछ लड़ाकू विमान इतने भाग्यशाली होते हैं कि उन्हें विभिन्न संग्रहालयों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन इकाइयों के रूप में संरक्षित किया जाता है। ये प्रदर्शन इकाइयां युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। ये प्रदर्शन इकाइयां विमानों के स्वर्णिम इतिहास को भी संजोए रखती हैं। भारत में, हम भारतीय वायुसेना के विभिन्न सेवानिवृत्त लड़ाकू विमानों को हवाई अड्डों, एसएसबी केंद्रों, सैन्य स्कूलों और विभिन्न अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन पर देख सकते हैं।

क्यों होती है लड़ाकू विमानों की विदाई?

आम लोगों के जीवन की तरह ही विमान के एयरफ्रेम का एक निश्चित जीवनकाल होता है, जिसके बाद उनमें गिरावट शुरू हो जाती है और लड़ाकू विमान उस स्थिति में परिचालन योग्य नहीं रह पाते। इसके अलावा, अपने पूरे सेवाकाल के दौरान, नई तकनीकें विकसित होती रहती हैं, जो किसी समय मौजूदा लड़ाकू विमानों और तकनीक को अप्रचलित बना देती हैं। इस प्रकार पुराने लड़ाकू विमानों को अक्सर तकनीकी रूप से पुराना होने पर सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। कभी-कभी लड़ाकू विमानों को तब भी सेवानिवृत्त कर दिया जाता है जब उनके स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता कम होती है और उन्हें उड़ान योग्य बनाए रखना बहुत महंगा हो जाता है। इस प्रकार, असहनीय परिचालन लागत के कारण, कभी-कभी लड़ाकू विमानों को सेवानिवृत्त कर दिया जाता है।

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