देवजीत देवनाथ, पखांजूर। कांकेर जिला के पखांजूर क्षेत्र में एक ऐसा गांव है, जहां मूलभूत सुविधाएं दम तोड़ रही हैं. छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर पर महाराष्ट्र की सीमा से लगे ग्राम पंचायत शंकरनगर के आश्रित गांव मारकनार में विकास पहुंचने से पहले दम तोड़ देता है.

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लल्लूराम डॉट कॉम की टीम नाव के सहारे नदी पार कर इस गांव के लिए निकली तो पाया कि विकास का पहिया जिस पक्की सड़क पर घूमता है, वह गांव तक तो बन चुका है. लेकिन गांव में प्रवेश करने के बाद पाते हैं, पक्की सड़क के बाद भी विकास गांव तक नहीं पहुंच पाया है. बात हो रही है पंचायत स्तर से किए जाने वाली विकास कार्य. स्वास्थ्य सुविधा. शिक्षा. पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की.

गांव में 40-45 परिवार निवास करते हैं. गांव में प्राथमिक शाला है, जहाँ पहली से 5 तक गिनती के 11 बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक रोजाना नदी पार कर 2 किमी पैदल चलकर स्कूल पहुंचते हैं. अति जर्जर हालत में स्कूल भवन तिरपाल की मदद से चल रहा है. स्कूल में हैंडपंप जरूर लगा हुआ है, लेकिन वह लाल पानी उगलता है.

स्कूल के बच्चे को पानी की व्यवस्था के लिए पंचायत ने 2 साल पहले एक लाख से अधिक खर्च कर टेपनल लगाया जरूर था, पर सिर्फ दिखावे के लिए. सिर्फ पानी टंकी लगाकर भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था. टेपनल लगाने का उद्देश्य बच्चों को पानी के लिए दूर तथा हैंडपंप तक जाना न पड़ें स्कूल में पानी की व्यवस्था हो, पर ये भी व्यवस्था दम तोड़ चुकी है.

सचिव की चालाकी देखिए. उसी आधा अधूरे टेपनल की मरम्मत के नाम पर दिसंबर 2024 में 48 हजार राशि निकल ली, लेकिन राशि निकलने के बाद भी कार्य को पूर्ण नहीं किया गया. लाखों खर्च हुए, फिर भी बच्चों को एक बूंद पानी नसीब नहीं हुआ.

गांव में जल जीवन मिशन को बोर्ड तो लग गया है, लेकिन नल में टोटी नहीं लगाई है. 23.70 लाख का यहां कार्य सन् 2022 में स्वीकृत हुआ और 2024 में कार्य प्रारंभ किया, लेकिन आज तक पानी टंकी नहीं बनाई गई है. गांव में हैंडपंप की कमी है. बोर खनन कर उसमें मोटर लगा दिया गया है. बिजली रही तो पानी मिल पाता है, बिजली नहीं है तो हैंडपंप के लाल पानी सहारा होता है. अंदरुनी क्षेत्र में बिजली सुचारू रूप से नहीं रहता, जिससे पानी के लिए और भी परेशानी बढ़ जाता है.

गांव जाने से पहले लोगों को नदी पार करना पड़ता है. रोजमर्रा के सामानों को लाने-ले जाने के लिए लोगों के पास एकमात्र नाव ही सहारा होता है. इस नदी के कारण कई बच्चों को पढ़ाई प्रभावित होता है. नदी पार कर रोजाना स्कूल जाना मुश्किल होने के कारण पढ़ाई छोड़ना मजबूरी बन जाता है. साथ ही गांव के कोई अगर बीमार होता है, तो उसे नदी पार कर बांदे पखांजूर लेकर जाते हैं.

गांव के कई बच्चे ऐसे हैं, जो 5वीं तक गांव के स्कूल में पढ़ाई कर छोड़ दिए. नदी में पानी के वजह से पढ़ाई छोड़ना मजबूरी बन जाता हैं. कहीं न कहीं गांव के लिए सबसे बड़ी समस्या यह नदी है. ग्रामीण बरसों से इस नदी पर पुल की मांग करते आ रहे हैं, जिससे गांव के लोगों परेशानी से निजात मिल सके.

मारकनार गांव में 4 कच्ची सड़क हैं, जो बरसो पहले पंचायत से बनाया था. पंचायत के सरपंच सचिव की कारनामा देखिए कैसे कागजों में सड़क सुधरीकरण किया जाता है. राशि आहरण कर लिया जाता है. जिसकी ग्रामीणों को कानों-कान खबर भी नहीं लगती है.

इसी सितंबर महीने में मारकनार गांव में सड़क मरम्मत के नाम पर 1 लाख 50 हजार राशि आहरण कर लिया गया. जब आदिम जाति कल्याण समिति टीम ने गांव पहुंचकर पड़ताल की तो पता चला कि पिछले 3 सालों में कच्ची सड़क पर एक दाना मुरुम नहीं डाला गया. तस्वीरों में देखकर अंदाजा लगा सकते हैं, आखिर इस कच्ची सड़क कितने साल पुराने है.

इस मुरुम की सड़क की मरम्मत कहीं नजर नहीं आता होगा. ग्रामीणों ने बताया पिछले 3 सालों से सड़क नहीं बनाया गया. ऐसे में समझ सकते हैं कि नदी पार इस गांव तक अधिकारी नहीं पहुंच पाते हैं, जिसका फायदा कैसे उठा लिया जाता है. आखिर इंजीनियर साहब की भी गजब भूमिका देखने को मिल रहा है, बिना जांच मूल्यांकन भी अधिकारी कैसे करते होंगे.

कार्यस्थल बिना देखे घर बैठे-बैठे मूल्यांकन कर दिया जाता है. और राशि आहरण भी हो जाता है. सरकार गांव-गांव को विकास के लिए करोड़ों खर्च तो करती है, पर जमीनी स्तर में विकास सिर्फ कागजों तक सिमटकर रह जाता है, और विकास के नाम पर राशि का बंदरबांट कर विकास की पहिया पर ब्रेक लगा दिया जाता है.

मूलभूत सुविधाओं से वंचित इस गांव की खासियत देखिए

शहरों में जैसे हर मकान का टैक्स लिया जाता है, वैसे यहाँ भी पंचायत द्वारा मकान टैक्स लिया जाता है, तो गांव के लोग भी सालाना मकान टैक्स 200 रुपए देते हैं. भले कच्चे मकान में रहते हैं, पर टैक्स देने में पीछे नहीं रहते. नदी पार महाराष्ट्र सीमा में लगे इस गांव के लोग जब अपने कच्चे मकान का टैक्स दे पाते हैं,