
चिट्ठी आई है
सुना है कि सरकार को ईडी की चिट्ठी आई है। यह ईडी की सिफारिशी चिट्ठी है, जिसमें लिखा है कि कोयला घोटाला में कथित तौर पर लिप्त रहे करीब 10 आईएएस-आईपीएस अफसरों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए। ईडी का यह मानना है कि कोयला घोटाला का अक्षय पात्र अफसरों के लिए खुला रखा था। इन अफसरों ने अक्षय पात्र से जितना मन किया उतना निकाला। निलंबित आईएएस समीर बिश्नोई, रानू साहू, पूर्व मुख्यमंत्री की उप सचिव रहीं सौम्या चौरसिया, कारोबारी सूर्यकांत तिवारी सरीखे कई हैं, जिन्होंने कोयला घोटाला में नाम आने के बाद जेल यात्रा कर ली है। फिलहाल सब जमानत पर बाहर हैं। शायद ईडी को अच्छा नहीं लग रहा है कि कोयला घोटाला में इतनी मोटी-मोटी चार्जशीट पेश करने के बाद इस वक्त एक भी चेहरा सलाखों के पीछे नहीं है। इसलिए नजर उन आईएएस-आईपीएस की ओर घुमाई है, जो कथित तौर पर घोटाले के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर खड़े थे। ये ईडी की चिट्ठी है। कोई प्रेम पत्र तो है नहीं कि सरकार इस पर विचार भी ना करें। जाहिर है, सरकार इस पर विचार कर रही होगी कि आखिर इस चिट्ठी का करना क्या है? ईडी ने अपनी चिट्ठी में भारी भरकम नाम लिख दिए हैं। सरकार का विचार करना जरूरी भी है। दरअसल ईडी की चिट्ठी में जिन नामों को दंडित किए जाने का जिक्र है, सरकारी व्यवस्था का असली मेरूदंड यही हैं। इसलिए सरकार के विचार की सीमा कितनी है, यह फिलहाल मालूम नहीं। वैसे यह सवाल भी बड़ा दिलचस्प है कि अगर ईडी को वाकई लगता है कि घोटाले में इन अफसरों की भूमिका रही है, तो खुद ही धन शोधन अधिनियम (पीएमएलए एक्ट) में कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या ईडी को इन अफसरों के हाथ सीधे-सीधे कोयले की कालिख से रंगे नहीं मिले? खैर, चिट्ठी लिख दी गई है। सरकार का अपना विवेक होता है। सरकार जाने इस चिट्ठी का क्या करना है।
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15.43 फीसदी
राज्य में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई ईओडब्ल्यू करती है। मार्च 2025 में विधानसभा में दिए गए एक जवाब में सरकार ने यह बताया था कि साल 2019 से लेकर 2024 तक सूबे के 27 आईएएस अफसरों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामले दर्ज किए गए हैं। राज्य के आईएएस कैडर में 175 अफसर हैं। इस लिहाज से करीब 15.43 फीसदी अफसरों के खिलाफ महज छह साल में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर अपराध दर्ज किया गया। राज्य गठन से लेकर अब तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो आंखों की पुतली की चौड़ाई ही बढ़ जाएगी। इसलिए इस पर चर्चा फिर कभी। मूल बात यह है कि ईओडब्ल्यू में अफसरों के विरुद्ध दर्ज मामलों पर कार्रवाई आखिर कहां जाकर ठहर जाती है? दरअसल ईओडब्ल्यू प्रकरण दर्ज करता है, लेकिन अफसरों के विरुद्ध सीधी कार्रवाई का अधिकार ईओडब्ल्यू को नहीं है। किसी अफसर के विरुद्ध अभियोजन चलाने की अनुमति सरकार से मांगनी होती है। ज्यादातर मामलों में ईओडब्ल्यू में दर्ज प्रकरणों पर सरकार से जांच की अनुमति नहीं मिली। सो अफसरों के खिलाफ जांच ठहर गई। अब सरकार को भेजी गई ईडी की चिट्ठी में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ही जांच की सिफारिश की चर्चा है। मालूम नहीं इसका क्या होगा? खैर, आईजी अमरेश मिश्रा की अगुवाई वाली ईओडब्ल्यू ने जरूर कुछ अफसरों के खिलाफ अपनी आंखें तरेर रखी है। ये बदली हुई ईओडब्ल्यू दिखती है, पर सारा दारोमदार सरकार पर है।
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नए मुखिया
आखिरकार सरकार ने राज्य के नए प्रशासनिक मुखिया के नाम का ऐलान कर दिया। 1994 बैच के आईएएस विकासशील प्रशासन तंत्र का नेतृत्व करेंगे। जब वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए थे, तब हालात कुछ और थे। आज कुछ और हैं। इस बीच अफसरशाही में 360 डिग्री का बदलाव आया है। उनके लिए मैदान जरूर पुराना है, लेकिन कामकाज के नए नियम कायदे लागू हो गए हैं। पिछली सरकार ने मुख्य सचिव के ओहदे को अंडर रेटेड कर रखा था। साय सरकार जब पटरी पर आई, तब से अब तक लगातार हालात बदलने की कोशिश की गई। फिलहाल नए मुख्य सचिव की हैसियत से विकासशील को पिच पर जमने में शायद थोड़ा वक्त लगे। नए बैट्समैन को पिच समझने के लिए एक-दो ओवर तक बाल को ठुचुक-ठुचुक करना पड़ता है। तब जाकर लाइन लेंथ समझ आती है। वैसे विकासशील कायदे के अफसर हैं। उनके हिस्से राज्य और केंद्र के अलावा एडीबी में अंतरराष्ट्रीय पोस्टिंग का अनुभव है। जाहिर है, सुशासन के रास्ते दौड़ रही सरकार को इसका फायदा होगा। पांच अफसरों को सुपरसीड करते हुए सरकार ने उन्हें यह ओहदा दिया है। सरकार यह समझती है कि कब, किसे, कहां और क्यों बिठाना है? दूर की कौड़ी खेलना सरकार बखूबी जानती है। यूं नहीं छत्तीसगढ़ ‘विकासशील’ बन जाता है।
सुगबुगाहट
आधा दर्जन जिलों के कलेक्टर-एसपी बदलने की सुगबुगाहट तेज है। कुछ रूटीन में बदले जाएंगे, तो कुछ के काम पर सरकार की भौंह तनने की वजह से उन्हें हटाया जाएगा। सूची बन रही है। नए मुख्य सचिव के साथ प्रशासनिक कामकाज को गति देने के इरादे से सरकार अहम बदलाव करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सरकार के पास काम दिखाने के लिए डेढ़-दो साल का ही वक्त रह गया है। इसके बाद का वक्त राजनीतिक दांव पेंच का होगा। राजनांदगांव कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मुंबई जा रहे हैं। जाहिर है, उनकी जगह नई पोस्टिंग होगी और इस पोस्टिंग आर्डर के साथ-साथ कई और जिलों के कलेक्टर इधर से उधर होंगे। अब तक की चर्चा में कोरबा, सरगुजा, सक्ती, बेमेतरा, बलरामपुर-रामानुजगंज, कबीरधाम, सारंगढ़ जैसे जिलों के नाम हैं। बस्तर कलेक्टर की भूमिका भी बदल सकती है। उनके केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने की खबर है। इसी तरह कुछ एसपी भी इधर से उधर किए जा सकते हैं। चर्चा है कि करीब दो साल से एक ही जिले में जमे एसपी हटाए जा सकते हैं। इनमें से अच्छा परफॉर्म करने वाले एसपी दूसरे जिले में भेजे जा सकते हैं। कुछ से जिला छिना जा सकता है। सरकार ने एसपी की परफार्मेंस रिपोर्ट तैयार की है। पोस्टिंग का आधार यही रिपोर्ट होगी।
छूटी हुई कुर्सी
राजनीति में महत्वाकांक्षा कोई दोष नहीं है। यह तो वह ईंधन है, जिससे सत्ता की गाड़ी चलती है। लेकिन जब यह महत्वाकांक्षा संयम की सीमा लांघ जाए, तब नेता के दिल में दुख घर कर जाता है। भाजपा के एक नेता जब विधायक बने, तब उन्हें लगने लगा कि मंत्री बनना उनका राजनीतिक अधिकार है। विधायक बनना उन्हें मंत्रिमंडल का प्रवेश पत्र लगने लगा था। मंत्रिमंडल विस्तार तक उनकी आशा जगी रही, लेकिन जब विस्तार हुआ तब उनकी जगह दूसरे चेहरों ने शपथ ले ली। विधायक जी की आशा पूरी तरह निराशा में बदल गई। अब उनकी खीझ बाहर आ रही है। पिछले दिनों एक उप मुख्यमंत्री की समझाइश को उन्होंने डांट फटकार समझ लिया। सार्वजनिक रूप से कहने लगे कि कल का लड़का मुझे हड़का रहा है, जबकि राजनीति में मैं उससे वरिष्ठ हूं। वह मेरा जूनियर है। दरअसल उप मुख्यमंत्री ने अपने एक विभाग से जुड़े किसी मसले पर विधायक के दिए गए बयान पर नाराजगी जताई थी। मंत्री की कुर्सी विधायक से छूट गई है। अब यही छूटी हुई कुर्सी उनके पीड़ा की वजह बन रही है। इस पीड़ा में वह भूल गए हैं कि वह भाजपा के विधायक हैं। अब जिस पार्टी में अच्छे-अच्छे नेता भीगी बिल्ली बनकर रहते हैं, वहां उनका बड़बोलापन कहीं उन्हें खतरे में ना डाल दे।
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नाली से कमीशन
एमएलए मैनेजमेंट रूलिंग पार्टी के लिए सिरदर्द बन रहा है। कई विधायक बेलगाम हो गए हैं। रोके नहीं रुक रहे। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें विधायक की मौजूदगी में एक सरपंच यह आरोप लगाता सुना गया है कि विधायक कार्यालय में दस फीसदी कमीशन दिए बगैर कुछ काम नहीं होता। गांव की सड़क-नाली के काम के लिए भी दस फीसदी की रकम तय कर दी गई है। क्या हाल है। विधायकों को अब नालियों में भी कमीशन दिखने लगा है। रेत, जुआ-सट्टा, शराब, ठेका यहां तक तो सब ठीक है। यह पूर्व प्रचलित व्यवस्था है, लेकिन नाली से भी कमीशन। हद है भाई। खैर, भ्रष्टाचार के बढ़ते मामलों और नेताओं के सामने आते नाम जब आम लोगों को नहीं चौंकाते, तब क्या ही किया जा सकता है। अब लोगों को चौंकाने के लिए भ्रष्टाचार का नहीं, ईमानदारी का मामला सामने लाना होगा।