Assam Matak Community Protest: असम इन दिनों अपने मशहूर सिंगर जुबीन गर्ग की मौत का मातम मना रहा है। इसी बीच असम की हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) सरकार के सामने एक नई चुनौती आ गई है। यह चुनौती यहां की 6 आदिवासी जनजातियों का। बीते 10 दिन में असम का मटक समुदाय सड़कों पर है। मटक समुदाय दो बड़ी रैलियां कर चुका है। हर बार 30 से 40 हजार आदिवासी हाथ में मशाल लेकर सड़कों पर उतरे। रैली डिब्रूगढ़ में हुई, लेकिन इसकी धमक गुवाहाटी समेत दिल्ली तक महसूस की गई। यह समुदाय खुद के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा और सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और प्रशासनिक फैसले खुद ले सकने की मांग कर रहा है।
असम की बीजेपी सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि आंदोलन की कमान युवाओं के हाथों में है। रैली की भीड़ में ज्यादातर आबादी 30 साल से कम की है। ये वही युवा हैं, जिन्हें जेन-जी (Gen-Z) कहा जाता है। सरकार पर वायदा खिलाफी का आरोप लगाते हुए मटक समुदाय के लोगों ने सीएम की बातचीत का ऑफर ठुकरा दिया है। अकेले मटक समुदाय ही नहीं, पांच अन्य जनजातियां भी हैं, जो सड़कों पर उतरी हैं। ये राज्य की कुल आबादी का करीब 12% हैं।
ऐसे समझें… आखिर असम सरकार को क्या डर सता रहा
मटक का साथ अन्य पांच आदिवासी समुदाय चाय जनजाति, ताई अहोम, मोरन, चुटिया और कोच राजबोंगशी भी हैं। ये वही समुदाय हैं, जिन्हें 2014 का आम चुनाव जीतने के बाद भाजपा सरकार ने एसटी का दर्जा देने का वादा किया था।2011 में असम की कुल आबादी 3.12 करोड़ में 38 लाख यानी 12.4% आदिवासी हैं। यदि इन छह जनजातियों को एसटी दर्जा मिल जाता है तो ये कुल आबादी का 40% हो जाएंगे। इसलिए राज्य के गैर आदिवासियों में यह शंका है कि यदि राज्य में एसटी आबादी 50% हुई तो असम भी नगालैंड और बाकी पूर्वोत्तर राज्यों की तरह एक पूर्ण एसटी प्रदेश बन जाएगा। उसे छठी अनुसूची में शामिल करना केंद्र की मजबूरी हो जाएगी। फिर सभी कामों के लिए केंद्र सरकार को इनकी अनुमति लेनी होगी।

जानिए क्या है मटक समुदाय का इतिहास? इनकी मांगें अब तक अधूरी क्यों? क्यों उन्हें बार-बार आंदोलन करना पड़ रहा है?
मटक समुदाय का इतिहास
मटक समुदाय का संबंध असम के इतिहास से गहराई से जुड़ा है। 18वीं शताब्दी में कमजोर पड़ रहे अहोम राज्य के परिदृश्य में मटक एक ताकतवर शक्ति के रूप में उभरे। मटक लोगों का मूल क्षेत्र ऊपरी असम, विशेषकर डिब्रुगढ़ और तिनसुकिया जिलों के आसपास फैला हुआ है।
- मटक राजवंश: स्वर्गदेव सुकफा द्वारा स्थापित अहोम साम्राज्य के अंत की ओर मटक शक्ति के रूप में संगठित हुए और मोरों (एक अन्य समुदाय) के साथ मिलकर अपनी संस्कृति और राजनीतिक पहचान को मजबूत किया।
- संस्कृति और धर्म: मटक समुदाय पर महापुरुषिया संप्रदाय (श्रीमनता शंकरदेव की परंपरा) का गहरा प्रभाव है। वे अपनी विशिष्ट बोली, रीति-रिवाज और सामुदायिक जीवन के लिए पहचाने जाते हैं।
- राजनीतिक चेतना: अंग्रेज़ों के आगमन के दौरान और स्वतंत्रता संग्राम में भी मटक युवाओं और नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई।

क्यों उठी मटक आंदोलन की लहर?
हाल ही में जब मटक समुदाय ने मशाल लेकर और दिल्ली तक रैली की चेतावनी देकर सरकार के सामने अपनी मांग रखी, तो उनका मुख्य जोर रहा, एसटी दर्जे की प्राप्ति है।
- कई दशकों से यह समुदाय यह साबित कर रहा है कि वे ऐतिहासिक रूप से, सांस्कृतिक रूप से और सामाजिक-आर्थिक स्थिति में अनुसूचित जनजातियों के अन्य समूहों के समान हैं।
- वर्ष 2019 में केंद्र सरकार द्वारा छह समुदायों (मटक, मोरान, चाय जनजाति, ताई अहोम, चुटिया और कोच-राजबोंगशी) को एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया आरंभ होने की बात कही गई थी। हालांकि विभिन्न समितियों और सांसदों की सिफारिशों के बावजूद अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया।
- सरकार द्वारा बार-बार आश्वासन दिए जाने के बावजूद लंबे समय से ठोस नीति न बनने से समुदायों में नाराज़गी गहराती जा रही है।
क्या है आगे का रास्ता?
मटक और अन्य आदिवासी समुदायों की मांगें लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढांचे के भीतर आने योग्य हैं। समाधान कुछ प्रमुख स्तरों पर संभव हैः-
- नीतिगत साहस: केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट और ठोस निर्णय लेना होगा कि किन समुदायों को एसटी सूची में शामिल किया जा सकता है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश: केवल आरक्षण पर्याप्त नहीं है; आधारभूत सुविधाओं और सामाजिक क्षेत्र में बड़े सुधार जरूरी हैं।
- संस्कृति का संरक्षण: भाषाई और सांस्कृतिक पहचान बचाने के लिए सामुदायिक संग्रहालय, शिक्षा पाठ्यक्रम और सांस्कृतिक अनुदान दिए जाने चाहिए।
- सहभागिता आधारित विकास: हर निर्णय में समुदायों की सीधी भागीदारी हो, ताकि नीतियां केवल दस्तावेज़ न रह जाएं, बल्कि ज़मीन पर असर दिखाएं।
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