कुमार इंदर, जबलपुर। Shardiya Navratri 2025: संस्कार धानी जबलपुर में स्थित बाजनामठ मंदिर विश्व के प्रमुख प्राचीन मंदिरों में से एक है। देशभर में केवल तीन तांत्रिक मंदिर है, जिसमें जबलपुर का बाजनामठ मंदिर भी एक है। इस मंदिर की स्थापना 15वीं शताब्दी में गोंडवाना काल में मौजूदा शासक राजा संग्राम शाह ने करवाया था। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि राजा शंकर शाह ने इस मंदिर बनाने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्हें अजय होने का वरदान मिला और उन्होंने उसके बाद कोई युद्ध नहीं हारा।
तंत्र साधना के लिए मशहूर है बाजनामठ भैरव मंदिर
शारदीय नवरात्र के दिन चल रहे हैं। कहा जाता है की शारदीय नवरात्र और दिवाली में ही सबसे ज्यादा तंत्र-मंत्र किया जाता है। जबलपुर स्थित बाजनामठ भैरव मंदिर जिसे बटुक भैरव मंदिर भी कहा जाता है, जो खासकर तंत्र-साधना के लिए जाना जाता है। इस मंदिर को देश के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां पूजन के लिए वैसे तो हर दिन भक्त पहुंचते हैं। लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां बड़ी संख्या में भक्तों का जमावड़ा रहता है।

1520 ई. में राजा संग्राम ने कराया था निर्माण
मेडिकल कालेज से कुछ ही दूरी पर स्थित यह मंदिर प्राकृतिक छटा के बीच बना हुआ है। बाजनामठ मंदिर का निर्माण लगभग 1520 ईस्वी में राजा संग्राम शाह द्वारा भैरव मंदिर के नाम से कराया गया था। बताते हैं कि उनके राज्य में ये मंदिर अति प्रचलित था और राज्य के ज्यादातर लोग यहां पूजन करने आते थे।
गुंबद के त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से जागृत होती है शक्ति
कहते हैं कि इस मठ के गुंबद के त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि-तरंगों से शक्ति जागृत होती है। इस मंदिर की बनावट भी अद्भुत है, जो हर मंदिर में देखने नहीं मिलती। क्योंकि इसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है। ऐसे मंदिर पूरे देश में कुल तीन हैं, जिनमें एक बाजनामठ तथा दूसरा काशी और तीसरा महोबा में हैं।
तेल-पुष्प चढ़ाने से शनि-राहु की पीड़ा से मिलती है राहत
यहां आने वाले भक्त बताते हैं कि बाजनामठ में पूजा-अर्चना से लोगों को चमत्कारिक लाभ हुए हैं। यहां तेल व पुष्प चढ़ाने से शनि व राहु की पीड़ा से राहत मिलती है। इसी उम्मीद से हजारों की संख्या में भक्त आते हैं और उनकी मुराद पूरी भी होती है।
बाबा भोले नाथ के बाल स्वरूप हैं विराजमान
कहा जाता है कि, इस मंदिर में अन्य मंदिरों की अपेक्षा सिद्धियां जल्दी सिद्ध हो जाती है। बटुक भैरव जो बाबा भोले नाथ का बाल स्वरूप है। लिहाजा वो जल्दी मान जाते हैं और यही वजह है कि यहां सिद्धियां जल्दी सिद्ध हो जाती है। मंदिर की बनावट की बात की जाए तो मंदिर में एक भी छेद नहीं है, जिसकी वजह से यहां हल्की सी आवाज भी गूंजने लगती है। मंदिर में प्रवेश करते ही धुआं और अंधेरा नजर आता है। यहां से निकलने के लिए भी एक ही दरवाजा है।
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