दिल्ली की हालिया बाढ़ ने जहां लोगों को बेहाल किया, वहीं यमुना नदी के लिए यह संकट एक राहत बनकर सामने आया। DPCC की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2025 में यमुना का पानी 2013 के बाद से सबसे स्वच्छ स्तर पर दर्ज किया गया। बाढ़ के दौरान तेज बहाव ने नदी में जमा प्रदूषकों को बहा दिया और गंदे पानी (सीवेज) को पतला कर दिया। कई बार जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर रहा, लेकिन इस बीच नदी का प्रदूषण स्तर ऐतिहासिक रूप से कम हो गया। बाढ़ ने भले ही तबाही मचाई हो, लेकिन यमुना को अस्थायी रूप से साफ कर दिया।

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दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) की रिपोर्ट बताती है कि 2013 से शुरू हुई निगरानी में सितंबर 2025 का डेटा अब तक का सबसे बड़ा और असरदार सुधार है। पहली बार ऐसा हुआ कि तेज बाढ़ के दौरान ही पानी के नमूने लिए गए। 2023 में जब यमुना का जलस्तर 11 जुलाई को रिकॉर्ड 208.66 मीटर तक पहुंचा था, तब नमूने सिर्फ महीने की शुरुआत में लिए गए थे, यानी चरम स्तर से पहले। इस बार की बाढ़ के नमूनों ने दिखाया कि तेज बहाव ने नदी की सफाई में अहम भूमिका निभाई और प्रदूषकों को बड़ी मात्रा में बहा दिया।

3 सितंबर को, जब भारी बारिश और हथनीकुंड बैराज से बड़े पैमाने पर पानी छोड़ा गया, तब यमुना का बहाव तेज हो गया। इसी दौरान राजधानी के आठ निगरानी बिंदुओं में से छह पर पानी के नमूने लिए गए और नतीजे चौंकाने वाले रहे।

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मुख्य संकेतक और निष्कर्ष:

फेकल कॉलिफॉर्म (Faecal Coliform):

पल्ला: 790 MPN/100 ml

ओखला बैराज: 3,500 MPN/100 ml (अनुमेय सीमा: 2,500 के करीब)

तुलना: अगस्त में 54,000 और जुलाई में 92 लाख (9.2 मिलियन)। दिसंबर 2020 में अब तक का सबसे ऊंचा स्तर 1.2 अरब दर्ज हुआ था।

घुलित ऑक्सीजन (DO):

स्तर 3.7–5.1 mg/l रहा।

जलीय जीवन के लिए न्यूनतम 5 mg/l जरूरी।

खास बात यह कि वजीराबाद के बाद जहां यह ऑक्सीजन आमतौर पर गायब हो जाती थी, इस बार पूरे हिस्से में दर्ज की गई।

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बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD):

ओखला बैराज: 13.5 mg/l (अगस्त में 24 और जुलाई में 70 था)। ITO: सिर्फ 4 mg/l वजीराबाद के नीचे पिछले एक दशक में पहली बार इतना कम स्तर देखा गया। विशेषज्ञों के मुताबिक यमुना में इस बार दर्ज हुआ सुधार कोई संयोग नहीं बल्कि बाढ़ के दौरान बने हालात का नतीजा है। 4 सितंबर को यमुना का जलस्तर 207.48 मीटर तक पहुंच गया, जो दिल्ली में अब तक का तीसरा सबसे ऊंचा स्तर है। पानी की अधिक मात्रा ने नदी में जमा प्रदूषकों को पतला (dilute) कर दिया और तेज बहाव उन्हें बहाकर ले गया। बाढ़ नियंत्रण के तहत कई नालों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया, जिससे गंदा पानी (सीवेज) सीधे नदी में नहीं जा पाया। नतीजा यह हुआ कि नदी में प्रवेश करने वाला सीवेज कम हो गया और पानी की गुणवत्ता में असाधारण सुधार देखने को मिला। यमुना की मौजूदा स्थिति पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। यमुना कार्यकर्ता पंकज कुमार ने कहा, “यह पिछले 10 सालों में पहली बार है जब नदी के पूरे हिस्से में घुलित ऑक्सीजन (DO) मौजूद है और बीओडी (BOD) का स्तर नदी के निचले हिस्सों में इतना कम हुआ है।”

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उन्होंने इस सुधार का श्रेय दो कारणों को दिया:

बाढ़ से हुई प्राकृतिक सफाई (Flood-driven flush)

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) में हाल के सुधार

पंकज कुमार के मुताबिक, अब STPs पहले से बेहतर गुणवत्ता वाला पानी नदी में छोड़ रहे हैं, जिससे प्रदूषण घटाने में मदद मिली।

वहीं DPCC का कहना है कि बाढ़ के कारण निजामुद्दीन ब्रिज और असगरपुर से नमूने नहीं लिए जा सके।

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उल्लेखनीय है कि 31 अगस्त से 4 सितंबर तक हथनीकुंड बैराज से लगातार पांच दिनों तक हर घंटे 1,00,000 क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया। इसके चलते नदी का बहाव तेज हुआ और यमुना अस्थायी तौर पर साफ हो गई।

जहां बाढ़ ने यमुना को अस्थायी राहत दी है, वहीं विशेषज्ञ इस सुधार को लंबे समय तक टिकाऊ नहीं मानते। भीम सिंह रावत (SANDRP) ने कहा “नमूने उस समय लिए गए थे जब बाढ़ का भारी पानी दिल्ली में था और उसने प्रदूषकों को बहा दिया था। लेकिन जैसे ही बहाव कम होगा, गंदा पानी (अपशिष्ट) फिर से हावी हो जाएगा।”

उन्होंने दो अहम बिंदुओं पर जोर दिया. यमुना को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पर्याप्त ई-फ्लो (e-flows) जरूरी है.जिसकी सिफारिश कम से कम 23 क्यूसेक की गई है। दिल्ली को सबसे बड़ी चुनौती नालों से बहते बिना उपचारित (untreated) सीवेज को रोकने की है।

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