सोहराब आलम/पूर्वी चंपारण, मोतिहारी। नवरात्र के पावन अवसर पर पूरे बिहार में श्रद्धा और भक्ति का माहौल बना हुआ है लेकिन मोतिहारी शहर में स्थित भैरव स्थान इस बार विशेष रूप से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन गया है। यहां पहली बार माँ दुर्गा की ऐसी अनोखी प्रतिमा स्थापित की गई है जिसमें उनके नौ स्वरूपों को एक साथ दर्शाया गया है।

नौ रूप, एक प्रतिमा

इस विशेष प्रतिमा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें माँ दुर्गा के सभी नौ स्वरूप शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक को एक ही मूर्ति में समाहित किया गया है। पूजा समिति के सदस्य राजकुमार ने जानकारी दी कि हमारे भैरव स्थान में बीते 50 वर्षों से माँ की पूजा होती आ रही है लेकिन इस बार कुछ अलग करने का विचार था। इसलिए माँ के सभी रूपों को एक ही प्रतिमा में दिखाने का निर्णय लिया गया। हमें गर्व है कि यह प्रतिमा पूरे बिहार में पहली बार स्थापित की गई है।

श्रद्धालुओं में भारी उत्साह

इस अनोखी प्रतिमा को देखने के लिए मोतिहारी ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। दिन हो या रात पूजा पंडाल में लोगों की भीड़ लगी रहती है। श्रद्धालु इस प्रतिमा को अद्वितीय दिव्य और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली मान रहे हैं। स्थानीय निवासी विमला देवी ने बताया मैं हर साल माँ के दर्शन करने आती हूँ लेकिन इस बार जो प्रतिमा देखी वैसी पहले कभी नहीं देखी थी। ऐसा लगा जैसे सभी देवियों का आशीर्वाद एक साथ मिल गया हो।

परंपरा से हटकर, नई पहल

आचार्य बीरू पुरोहित जो वर्षों से इस पूजा स्थल से जुड़े हैं बताते हैं कि सामान्यतः नवरात्र के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। लेकिन इस बार परंपरा से हटकर सभी स्वरूपों को एक साथ स्थापित कर एक नई मिसाल पेश की गई है। उन्होंने कहा यह न सिर्फ एक धार्मिक पहल है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इससे नई पीढ़ी को भी माँ दुर्गा के नौ रूपों के बारे में एक साथ जानकारी मिल रही है।

नवरात्रि के माहौल में नई ऊर्जा

भैरव स्थान में इस अनोखी प्रतिमा की स्थापना ने पूरे शहर के माहौल को भक्तिमय और उत्सवमय बना दिया है। नवरात्रि के दौरान जहां पूजा-पाठ हवन और आरती की गूंज गली-गली में सुनाई दे रही है वहीं यह प्रतिमा सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही है। पूजा समिति का कहना है कि आने वाले वर्षों में भी इस तरह के नवाचार जारी रखे जाएंगे ताकि धार्मिक परंपरा के साथ-साथ सांस्कृतिक जागरूकता भी बढ़े।